अर्थतंत्र और बिगड़ा; वित्त वर्ष की पहली तिमाही में GDP घटकर हुई 5 प्रतिशत, 6 वर्षों में सबसे कम
प्रवीण कुमार
नई दिल्ली : भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सुस्ती के आंकड़ों को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों ने भी समर्थन दिया है। निजी अंतिम खपत व्यय (पीएफसीई) से अर्थव्यवस्था में मांग का पता चलता है जो 2019-20 की पहली तिमाही में पिछली 17 तिमाही के निचले स्तर 3.14 प्रतिशत पर पहुंच गया है। इसके पहले की तिमाही यानी 2018-19 की चौथी तिमाही में पीएफसीई में 5.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। एक साल पहले की समान अवधि में यह वृद्धि दर 7.31 प्रतिशत थी।
शुक्रवार को जारी राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-जून 2019 के लिए भारत की वृद्धि दर पिछले साल की इसी अवधि के 8 प्रतिशत की तुलना में घटकर 5 प्रतिशत रह गई है। पिछले 25 तिमाहियों में सबसे कम वृद्धि दर का कारण विनिर्माण क्षेत्र में तेज गिरावट और कृषि उत्पादन में गिरावट को माना जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के पन्नों को पलटें तो पिछले छह सालों में ये सबसे कम जीडीपी वृद्धि दर है। इससे पहले वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर इतनी ही कम थी। बीते 8 अगस्त को भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में 5.8-6.6 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया था, जो जून के 6.4-6.7 फीसदी के अनुमान से नीचे था। कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों में खराब प्रदर्शन के कारण 2018-19 के जनवरी-मार्च तिमाही में वृद्धि दर पांच साल के न्यूनतम स्तर 5.8 प्रतिशत तक फिसल गई थी। यह 20 तिमाहियों में सबसे कम वृद्धि दर थी और इसकी वजह से लगभग दो साल बाद विकास दर के मामले में भारत चीन से पीछे हो गया था।
विनिर्माण उत्पादन वृद्धि घटकर 0.6 फीसदी पर
मौजूदा वर्ष की पहली तिमाही में विनिर्माण उत्पादन वृद्धि दर घटकर 0.6 फीसदी रह गई जबकि 2018-19 की चौथी तिमाही में यह 3.1 फीसदी थी। इसके मुकाबले पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 12.1 फीसदी थी। 2018-19 में विनिर्माण क्षेत्र ने 6.9 फीसदी की वृद्धि दर्ज की थी जो उससे पिछले वित्त वर्ष की 5.9 फीसदी वृद्धि दर से अधिक है। विनिर्माण क्षेत्र के ठप पडऩे को लेकर अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कम उपभोक्ता मांग का वाहन और संबंधित क्षेत्रों के साथ-साथ उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ा है। दूसरी ओर उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के नीति निर्माताओं की राय है कि इसके लिए कमजोर घरेलू मांग, वैश्विक अनिश्चितता के कारण निर्यात की कमजोर होती मांग और कम निवेश के माहौल के बरकरार रहने सहित कई कारक जिम्मेदार हैं।
नए आंकड़े बताते हैं कि इस समय भारत की विकास दर कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए-2 के समय 2013-14 के जनवरी-मार्च तिमाही के विकास दर 5.3 फीसदी से भी कम हो गई है। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद यानी कि जीडीपी की वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रही, जो पिछले वित्त वर्ष के 7.2 प्रतिशत से कम थी। ये 2014-15 के बाद से जीडीपी की सबसे धीमी वृद्धि दर थी क्योंकि पिछली सबसे कम दर 2013-14 में 6.4 प्रतिशत थी। साल 2018-19 की दूसरी तिमाही से ही विकास दर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही अप्रैल-जून के दौरान ये दर आठ फीसदी पर थी। इसके बाद जुलाई-सितंबर में ये घटकर सात फीसदी पर आ गई। तीसरी तिमाही अक्टूबर-दिसंबर में ये और घटकर 6.6 फीसदी पर आ गई। वित्त वर्ष 2018-19 की आखिरी तिमाही में भारी गिरावट हुई और जनवरी-मार्च में जीडीपी वृद्धि दर 5.8 फीसदी रही। वित्त वर्ष 2019-20 में भी गिरावट का यह सिलसिला जारी है।
यात्री और वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री, पूंजीगत सामान, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं, इस्पात और सीमेंट का उत्पादन, हवाई यात्रा जैसे उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों में अप्रैल-जून तिमाही में गिरावट आई है या उनकी वृद्धि दर बहुत कम रही है। हालांकि देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने अर्थव्यवस्था में सुस्ती के लिए वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को जिम्मेदार ठहराते हुए ट्वीट किया, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी और चीन तथा अमेरिका के बीच व्यापार संघर्ष के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। प्रधानमंत्री की अर्थशास्त्रियों की समिति के अध्यक्ष विवेक देवरॉय ने उम्मीद जताई कि मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक विकास दर 6.5 फीसदी रहेगी। दुनिया के कई देश सकारात्मक विकास दर के लिए संघर्ष कर रहे हैं, इसलिए इसे कमतर नहीं माना जा सकता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर 2019 में 3.2 फीसदी रहने का अनुमान है।
कई विशेषज्ञों ने अर्थव्यवस्था की बदहाली पर चिंता जताई है। इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, ढांचागत और चक्रीय मुद्दों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। कृषि के बाद निर्माण/रियल एस्टेट क्षेत्र सबसे बड़ा नियोक्ता है और निवेश तथा खपत बढ़ाने में इसकी अहम भूमिका है। अप्रैल-जून के दौरान विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर पिछले साल के समान तिमाही की तुलना में महज 0.6 फीसदी रही। 2017-18 से इस क्षेत्र की रफ्तार बेहद धीमी रही है। अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान करने वाले सेवा क्षेत्र की वास्तविक रूप से बढ़ोतरी सात फीसदी से कम रही।