पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन बोले, नोटबंदी का फैसला बड़ा मौद्रिक झटका था
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : चुनावी मौसम में मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी की सफलता के दावों के बीच पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने नोटबंदी को एक बड़ा झटका बताते हुए उसकी आलोचना की है। उनका कहना है कि नोटबंदी का फैसला एक बड़ा मौद्रिक झटका था जिससे अर्थव्यवस्था सात तिमाहियों में नीचे खिसककर 6.8 फीसदी पर आ गई। यब नोटबंदी के फैसले से पहले 8 फीसदी थी।
सुब्रमण्यन कहते हैं कि 8 नवंबर को एक नाटकीय टेलीविजन भाषण को मैंने नॉर्थ ब्लॉक के अपने कमरे में सुना जहां प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि 500 और 1000 रूपये के नोट अब नहीं चलेंगे। ये एक ऐसा अप्रत्याशित कदम था जो किसी भी देश ने हाल के वर्षों में नहीं उठाया था। सुब्रमण्यन के इस कथन से कयास लगाए जा रहे है कि क्या मुख्य आर्थिक सलाहकार होने के बावजूद भी उन्हें प्रधानमंत्री की घोषणा के बारे में पता नहीं था?
वे चार साल तक भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार के पद पर रहे हैं।
सुब्रमण्यन ने कहा, नोटबंदी एक सख्त, बड़ा और मौद्रिक झटका था। इससे बाजार से 86 फीसदी मुद्रा एक झटके में हटा दी गई। उनका कहना है कि इसका सीधा असर सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) पर भी हुआ। ये बात उन्होंने अपनी किताब 'ऑफ काउंसल : द चैलेन्जेस ऑफ मोदी जेटली इकॉनमी' में लिखी है जोकि पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया ने प्रकाशित किया है।
इस किताब के चैप्टर 'द टू पज़ल्स ऑफ डिमोनेटाइजेशन- पॉलिटिकल एंड इकॉनमी' में सुब्रमण्यन लिखते हैं कि नोटबंदी से पहले छह तिमाहियों में विकास दर औसतन 8 फीसदी था जबकि इस फैसले के लागू होने के बाद यह औसतन 6.8 फीसदी रह गई थी। साथ ही वे ये जानने की भी कोशिश करते हैं कि इतने बड़े फैसले का क्या राजनीतिक और आर्थिक असर हुआ। सुब्रमण्यन कहते हैं कि नोटबंदी के तुरंत बाद हुए चुनावों पर इसका असर न दिखना सवाल पैदा करता है कि क्यों जिन लोगों पर इसका सबसे बुरा असर हुआ उन्होंने ही वोट देकर इसका समर्थन किया।
किताब के मुताबिक, एक जवाब ये दिया गया कि गरीब अपनी तकलीफ़ को ये समझ के भूलने को तैयार होते हैं कि हमको नुकसान हो रहा है तो कोई बात नहीं अमीरों का पसीना भी छूट रहा है। पर ये पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं लग रहा क्योंकि अमीरों को तो टैक्स बढ़ाने जैसे कदमों से भी दर्द पहुंचाया जा सकता था। बहस इस पर नहीं है कि नोटबंदी से विकास दर कम हुई है, बहस ये है कि कितनी कम हुई है। क्योंकि इस समय में कई और कारण भी थे जैसे जीएसटी और तेल की बढ़ती कीमतें जिनका असर अर्थव्यवस्था पर हुआ। इस सब में नोटबंदी की भूमिका का उन्होंने आंकलन करने की कोशिश की है।
सुब्रमण्यन कहते हैं, एक मोनेटरी इकोनोमिस्ट होने के नाते जो बात सबसे ज़्यादा चौकाने वाली है कि इतने बड़े कदम का इतना कम झटका कैसे लगा। अरविंद के अनुसार, अगर नरम शब्दों में कहें तो भारत में मोदी सरकार द्वारा लिया गया यह फैसला अनोखा था। इस फैसले के कुछ ही समय बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बारे उन्होंने कहा कि इसे जनता के नोटबंदी पर दिए फैसले के रूप में देखा गया था। सुब्रमण्यम के अनुसार, एक बड़े उद्देश्य को पाने के लिए गरीबों को हुई अपूरणीय क्षति को टाला जा सकता था। सुब्रमण्यन फिलहाल हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट में अतिथि प्राध्यापक और पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनोमिक्स में सीनियर फेलो हैं।