भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका, विकास दर घटकर तीन साल के निचले स्तर 5.7 फीसदी पर पहुंची
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : मोदी सरकार के विकास के तमाम दावों के बीच मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की विकास दर घटकर केवल 5.7 फीसदी रह गई। एक साल पहले समान तिमाही में यह 10.7 प्रतिशत था। पिछले तीन साल की किसी भी तिमाही का यह सबसे बुरा प्रदर्शन है। इससे पिछली तिमाही (जनवरी-मार्च 2017) में जीडीपी की वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रही थी। 2016-17 की पहली तिमाही की संशोधित वृद्धि दर 7.9 प्रतिशत थी। इस तरह पिछले साल भर में विकास दर में दो फीसदी से ज्यादा की कमी हो चुकी है।
पहली तिमाही के जीडीपी के आंकड़ों पर चिंता जताते हुए जेटली ने कहा कि विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर अपने निचले स्तर तक पहुंच चुकी है। इसकी वजह वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का क्रियान्वयन है। जीएसटी से पहले स्टॉक निकालने का काम लगभग पूरा हो चुका है। जीएसटी के परिचालन में आने के बाद जहां तक विनिर्माण का सवाल है, यह अपने निचले स्तर तक पहुंच चुका है। क्या यह इससे नीचे नहीं जाएगा के जवाब में जेटली ने कहा कि हम निश्चित रूप से कम वृद्धि को लेकर चिंतित हैं। लेकिन 2017-18 में 7 फीसदी की वृद्धि दर हासिल की जा सकती है, मैं इसकी उम्मीद करता हूं।
विनिर्माण गतिविधियों में सुस्ती के बीच लगातार तीसरी तिमाही में नोटबंदी का असर दिखाई दिया है। इसके अलावा जो मुख्य वजह बताई जा रही है वह यह कि एक जुलाई को जीएसटी के लागू होने की वजह से कंपनियां उत्पादन के बजाय पुराना स्टॉक निकालने पर ध्यान दे रही थीं। अलग से जारी एक अन्य आधिकारिक आंकड़े के अनुसार, जुलाई महीने में आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर घटकर 2.4 प्रतिशत पर आ गई है। मुख्य रुप से कच्चे तेल, रिफाइनरी उत्पादों, उर्वरक और सीमेंट उत्पादन में गिरावट से बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर घटी है।
नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था जीएसटी को लेकर अनिश्चितता की वजह से कार, एफएमसीजी और परिधान कंपनियों का ध्यान अपना स्टॉक निकालने पर था। मुख्य सांख्यिकीविद टीसीए अनंत ने जीएसटी से पहले स्टॉक घटने को जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट की प्रमुख वजह बताया है। कंपनियों को नई व्यवस्था के अनुरुप अपने मौजूदा स्टॉक की नए सिरे से लेबलिंग करनी पड़ी।
बता दें कि बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक ने लंबे इंतजार के बाद नोटबंदी के आंकड़े जारी किए थे। आरबीआई की रिपोर्ट कहती है कि नोटबंदी के बाद चलन से बाहर किए गए 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों में से लगभग 99 फीसदी बैंकिंग सिस्टम में वापस लौट आए हैं। इस आंकडे से नोटबंदी के उद्देश्य और सफलता को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। वैसे नोटबंदी को लेकर आरबीआई की ओर से जारी आंकड़ों पर घिरी सरकार के लिए अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार पर बचाव करना मुश्किल होगा।
उद्योग जगत में निराशा का माहौल
उद्योग जगत ने देश की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट को लेकर निराशा जताई है। फिक्की के अध्यक्ष पंकज पटेल ने कहा, वृद्धि का आंकड़ा कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में नरमी का संकेत देता है। माल एवं सेवा कर के क्रियान्वयन को लेकर अनिश्चितता से पहली तिमाही में औद्योगिक उत्पादन पर असर पड़ा। हालांकि हमें भरोसा है कि यह प्रभाव आने वाले महीनों में समाप्त हो जाएगा। साथ ही कुल मिलाकर वृद्धि की स्थिति अनुकूल बनी हुई है और चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक गतिविधियों में तेजी की उम्मीद है।
उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स पीएचडीसीसीआई ने कहा कि व्यापार सुगमता अब भी चिंता का विषय बना हुआ है क्योंकि विनिर्माण कंपनियां खासकर श्रम गहन इकाइयां कई कड़े कानून एवं अनुपालन लागत से प्रभावित हुई हैं। पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष गोपाल जिवराजका ने एक बयान में कहा, आने वाले समय में जीएसटी में सफलता के बाद श्रम कानूनों में सुधार किया जाना चाहिए और देश भर के लिये एक समान श्रम कानून बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी की वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रही जो चिंताजनक है क्योंकि उद्योग 2016-17 की अंतिम तिमाही में कम वृद्धि दर से बाहर निकलने की उम्मीद कर रहा था।
एसोचैम ने सुझाव दिया है कि नीति निर्माताओं को निजी निवेश को पटरी पर लाने के लिये तत्काल कदम उठाने चाहिए। उद्योग मंडल ने कहा कि खाड़ी क्षेत्र में संकट के कारण कच्चे तेल के दाम में वृद्धि के रूप में वृद्धि के नीचे जाने का जोखिम बना हुआ है। देश की जीडीपी वृद्धि दर अप्रैल-जून तिमाही में 5.7 प्रतिशत रही जो तीन साल का न्यूनतम स्तर है। क्रिसिल के अर्थशास्त्री डीके जोशी ने भी कहा कि जीडीपी आंकड़ा निराशाजनक है क्योंकि वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान था। पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणब सेन ने कहा कि जीएसटी के कारण पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि कमजोर रहने की आशंका थी।