500 करोड़ रुपये से अधिक कर्जे वाली कंपनियों का अब खुलेगा राज
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह उन कॉरपोरेट इकाइयों की सूची दे जिन पर 500 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज बकाया है। इसके साथ ही सरकार से वसूली के उन मामलों के बारे में व्यावहारिक आंकड़ा भी उपलब्ध कराने को कहा गया है जो ऋण वसूली न्यायाधिकरणों व उनके अपीलीय निकायों में एक दशक से लंबित हैं। देश की शीर्ष अदालत ने बैंकों के बढ़ते फंसे कर्ज का संज्ञान लेते हुए यह निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायाधीश ए.एम. खानविलकर तथा डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने डीआरटी व ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरणों (डीआरएटी) में बुनियादी ढांचे व श्रम बल की कमी पर खिन्नता जताई। न्यायालय ने कहा कि इस तरह के मामलों के त्वरित निपटान के लिए विधायी बदलाव तब तक प्रभावी नहीं होंगे जब तक काम के बोझ के हिसाब से बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं करवाया जाता।
न्यायालय ने केंद्र से कहा है कि विभिन्न सम्बद्ध मुद्दों के बारे में एक हलफनामा दाखिल करे। इसके साथ ही न्यायालय ने केंद्र से कहा है वह एक दशक से अधिक समय से लंबित मामलों के बारे में प्रायोगिक आंकड़ा तथा 500 करोड़ रुपये से अधिक राशि की कर्जदार कॉरपोरेट इकाइयों की सूची सौंपे।
डीआरटी व डीआरएटी में बुनियादी ढांचे की कमी के संदर्भ में न्यायालय ने पूछा, डीआरटी व डीआरएटी में कर्मचारियों की स्थिति व न्यायिक अधिकारियों सहित मौजूदा बुनियादी ढांचे के साथ क्या संशोधित कानून में तय समय सीमा को हासिल किया जा सकता है।
न्यायालय यह भी जानना चाहता है कि क्या इन निकायों में ढांचागत सुविधाओं के बारे में कोई वैज्ञानिक अध्ययन हुआ है और डीआरटी व अपीलीय न्यायाधिकरणों में ढांचागत सुविधाएं बढाने के लिए केंद्र सरकार क्या कदम उठाने की मंशा रखती है। इस बुनियादी ढांचे में न्यायिक अधिकारी व गैर न्यायिक कर्मचारी भी शामिल हैं। न्यायालय ने अपने फैसले में डीआरटीए, इलाहाबाद के चेयरपर्सन की घटना का ज्रिक किया जिन्होंने मुख्य न्यायाधीश को लिखा कि बुनियादी ढांचे व सुविधाओं के अभाव के चलते वे अपने पद से त्यागपत्र देने को मजबूर हैं।
इससे पहले न्यायालय ने कहा था कि गैर-निष्पादित आस्तियों का आंकड़ा कई लाख करोड़ रुपये का है और इसकी वसूली की प्रक्रिया तर्कसंगत नहीं है। इसके अलावा बैंकों और वित्तीय संस्थानों के ऋण की वसूली के लिए बनायी गई डीआरटी और ऋण वसूली अपलीय न्यायाधिकरण (डीआरएटी) की व्यवस्था खराब हालत में है।
इससे पहले न्यायालय ने जनहित याचिका में उठाए गए एक मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। यह डीआरटी और डीआरएटी में ढांचागत सुविधाएं, श्रमबल एवं अन्य सुविधाओं में कमी से संबंधित था। गौरतलब है कि डीआरटी और डीआरएटी बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के फंसे कर्ज की वसूली याचिकाओं का निपटारा करते हैं।
न्यायालय सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। यह याचिका वर्ष 2003 में दाखिल की गई थी जिसमें सरकारी कंपनी आवास एवं शहरी विकास निगम (हडको) द्वारा कुछ कंपनियों को बांटे गए रिण का मुद्दा उठाया गया है। याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2015 में करीब 40,000 करोड़ रुपये के कॉरपोरेट ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया गया।