कोई भी नीति या बदलाव को जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता : मनमोहन
सत्ता विमर्श डेस्क
नई दिल्ली : भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि कोई भी नीति या बदलाव बिना उचित सहमति के सफल नहीं हो सकती। हमने अपने लिए लोकतांत्रिक रास्ता चुना है, इसलिए हमारे ऊपर तानाशाही थोपने की कोई गुंजाइश नहीं है। ऐसा करने से समाज के कमजोर वर्गों के लिए कठिनाइयां और पीड़ा उत्पन्न करने के अलावा सरकार में कारोबारियों का विश्वास कम होना शुरू हो जाएगा।
बीते शुक्रवार को द हिंदू बिजनेस लाइन चेंजमेकर्स अवॉर्ड्स समारोह के दौरान 1991 में उदारीकरण की शुरुआत का उल्लेख करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, समाज तभी प्रगति करता है जब रचनात्मकता को मौका मिलता है कि वह यथास्थिति को चुनौती दे सके। 1991 में हमारे देश ने एक कठिन विकल्प का सामना किया और हमें सोच को बदलना पड़ा कि हम कैसे अपने करोड़ों लोगों की जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं।
मनमोहन सिंह ने कहा, प्रधानमंत्री के रूप में आपको राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों पर नजर रखनी होती है। सार्वजनिक नीति में कोई भी नई चीज, बिना उचित सहमति के सफल नहीं हो सकती। हमने खुद के लिए लोकतांत्रिक मार्ग चुना है। इसलिए हम पर तानाशाही थोपने की गुंजाइश नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, शायद मुझे यह कहने की इजाजत दी जाए कि यह हमारे नेतृत्व की ज़िम्मेदारी है कि वह बदलाव की कठोरता को कम करे, विशेष रूप से हमारे समाज के कमजोर वर्ग के लिए। उन्होंने कहा कि यह नेताओं का काम है कि वह नागरिकों को विश्वास में लें और उन्हें बदलाव की ज़रूरत के बारे में समझाएं। हालांकि, नागरिकों को अभाव की स्थिति को स्वीकार करवाने के लिए समझाना कभी आसान नहीं होता है।
मनमोहन सिंह ने कहा, आजकल कारोबारियों को लेकर कुछ नकारात्मक धारणाएं बनाई गई हैं। कारोबारी समुदाय चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो, उसे एजेंसियों के खौफ का अनुभव कराया जा रहा है। एक विरोधी रुख बना हुआ है। इससे न सिर्फ हमारे कारोबारियों का भरोसा कम होगा बल्कि इससे विदेशी सरकारों और विदेशी कारोबारियों के मन में भी संदेह होगा। उन्होंने कहा, राजस्व अधिकारियों द्वारा ईमानदारी कारोबारियों और उद्यमियों को कभी भी प्रताड़ित नहीं होने दिया जाना चाहिए। दुर्भाग्यवश, सरकार और कारोबारियों के बीच विश्वास कम हो गया है।