रायसीना हिल्स में भाजपा के राम
किरण राय
स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जीत कर रायसीना हिल्स की शोभा बढ़ायेंगे। रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति के तौर पर उम्मीद के मुताबिक चुने जा चुके हैं। एक बार फिर इस उम्मीदवारी की पटकथा लिखी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। हमेशा की तरह सबको चौंकाते हुए एक ऐसे शख्स को आगे किया जिसके बारे में चर्चा तक नहीं थी। एक तीर से कई निशाने साधे। दलितों की राजनीति करने वालों को दलित प्रेमी होने का एहसास कराया तो भविष्य में होने वाले चुनावों के लिए खास वोट बैंक को भी साधने का प्रयास किया है। सवाल उठता है तो क्या राष्ट्रपति कोविंद रायसीना में भाजपा के राम बन कर ही रहेंगे? शायद यही उनके लिए सबसे बड़ी और कठिन चुनौती होगी। भाजपा और स्वयंसेवक संघ के समर्पित कार्यकर्ता के ठप्पे को हटाना जरूरी होगा।
हालांकि राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद कोई भी राजनीतिज्ञ किसी दल का पहरूआ नहीं होता है बल्कि वो उस संवैधानिक पद की शोभा बढ़ाता है जो किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या दल से ऊपर होता है। कोविंद के लिए सबसे अहम चुनौती यही होगी। विरोधियों के उस तर्क को झुठलाना होगा जो नामांकन के साथ ही रबड़ स्टाम्प जैसे तमगों को याद करने लगा था। जैसे उनके लिए बीबीसी को दिए एक बयान में लेखक-सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रभान प्रसाद ने कहा है कि दलित होते हुए भी मैंने कभी भी कोविंद को दलितों की राजनीति करते नहीं देखा। अपेक्षा यही है कि देश के इस सर्वोच्च पद पर पहुंच कर वो दलगत और जातिगत राजनीति से दूरी बनाए रखेंगे और चुनौतियों का बखूबी सामना करेंगे।
जब एक ही पार्टी के बड़े पदों पर आसीन लोग एक ही तरह की राजनीतिक सोच वाले परिवार से हों तो सवाल और आशंकायें बढ़ने लगती हैं। सवाल उठते हैं कि क्या 30 सालों में प्रचण्ड बहुमत से बनी सरकार बाकी संस्थानों पर हावी नहीं होगी- यहां न्यायपालिका का जिक्र जरूरी है। जहां विधायिका और न्यायपालिका का आपसी टकराव खबरों में लंबे समय से बना हुआ है। मामला जजों की नियुक्ति पर अटका है। इस पर सहमत और असहमत होने का हक राष्ट्रपति को हमारा संविधान देता है। जैसा मीरा कुमार ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था वो बेहद सराहनीय है। उन्होंने कहा कि ये विचारधारा की लड़ाई थी, मैंने अंतरात्मा की आवाज पर चुनाव लड़ा देखते हैं आगे क्या होता है। अब नतीजे सामने हैं देश को अपना नया राष्ट्रपति मिल गया है। देखना बेहद दिलचस्प होगा कि नए महामहिम कैसे और कितनी अंतरात्मा की आवाज सुनते हैं और संविधान और देश हित में फैसला लेते हैं।