ब्रिक्स ने नहीं समझी भारत की बात
किरण राय
गोवा में 8वां ब्रिक्स सम्मेलन संपन्न हो गया, लेकिन सम्मेलन की मेजबानी करने के बावजूद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को अंजाम तक पहुंचाने में भारत पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया। अड़ंगा फिर चीन ने ही लगाया। उसने अपने दोस्त पाकिस्तान की खातिर भारत की मुहिम को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने गोवा घोषणा पत्र में भारत के साथ एकजुटता दिखाते हुए अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से मुकाबले के लिए व्यापक रणनीति पर जोर दिया। लेकिन इसकी किसी पंक्ति में सीमा पार आतंकवाद का जिक्र नहीं किया गया। जबकि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ताकत तो पूरी झोंकी थी। उन्होंने पाकिस्तान प्रायोजित आतंक को एक्सपोज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पाकिस्तान पर परोक्ष रूप से हमलावर होते हुए उसे आतंकवाद की जन्मभूमि तक करार दिया। भारत को उम्मीद थी कि इतना सब कुछ सुनने के बाद भारत में सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों का घोषणा पत्र में जिक्र किया जाएगा लेकिन इन आतंकी संगठनों के जिक्र करने पर आम सहमति नहीं बन सकी।
सवाल उठता है कि आखिर क्यों ऐसा हुआ? चीन के अलावा और क्या कारण था? दरअसल, इसकी बड़ी वजह किसी का इससे प्रभावित ना होना है। सर्वविदित है कि पाकिस्तान में जड़ जमाए इन आतंकी सगठनों के निशाने पर सिर्फ भारत है इसलिए ब्रिक्स के दूसरे सदस्य देशों के लिए यह चिंता का सबब नहीं है। यह भारत के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। क्योंकि गोवा घोषणापत्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी समूहों मसलन इस्लामिक स्टेट और जबात-अल-नुसरा का उल्लेख किया गया है। घोषणा पत्र के शब्दों पर गौर करें तो... 'हम हाल में भारत समेत कुछ ब्रिक्स देशों में हुए हमले की कड़ी निंदा करते हैं। हम रह तरह के आतंकवाद का पुरजोर विरोध करते हैँ और सैद्धांतिक, धार्मिक, राजनीतिक, नस्लीय और किसी भी अन्य वजहों से की गई किसी भी आतंकवादी गतिविधियों को उचित नहीं ठहराया जा सकता। हमने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से मुकाबले के लिए द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सहयोग मजबूत करने पर सहमति जताई है।' साफ है कि सीमा पार आतंकवाद जिसकी तरफ भारत बार-बार इशारा कर रहा था को जान बूझकर छोड़ दिया गया। हालांकि सरकार के स्तर पर कोई भी इस पर बात करने से बच रहा है। करे भी कैसे जिस ब्रिक्स को लेकर भारत में इतनी उम्मीदें जगाई गईं थीं वो पूरी नहीं हो पाईं और सरकार को इस मसले (सीमा पार आतंकवाद) पर मुंह की खानी पड़ी। अब यह भी कहा जा रहा है कि भारत घोषणा पत्र में आतंकवाद के बढ़ते खतरे की अवधारणा को शामिल करवाने में सफल रहा।
ब्रिक्स समिट सेक्रेटरी (इकनॉमिक रिलेशंस) और इंडिया ब्रिक्स टीम की अगवाई कर रहे अमर सिन्हा की मानें तो 'संदेश साफ है और हर शब्द को रेखांकित करने की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों के खतरे को लेकर पूरी दुनिया को अहसास है। कुछ जुमलों को शामिल नहीं किया जाना आतंकवाद को कम कर आकंने का मामला नहीं है। हमने कॉन्सेपट को आगे बढ़ाने की कोशिश की और हम सफल रहे।' दरअसल पाकिस्तान के साथ रिश्तों के कारण चीन भी सीमा पार आतंकवाद जैसे 'जुमले' को लेकर सहज नहीं है।