राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर इतनी माथापच्ची क्यों?
किरण राय
अगले महीने होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासत तेज हो गई है। एक तरफ सत्ताधारी पार्टी भाजपा और दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में तमाम विपक्षी पार्टियां देश का अगला राष्ट्रपति कौन हो इसको लेकर माथापच्ची कर रहे हैं। दोनों ही पक्ष अपने-अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। भाजपा की राष्ट्रपति उम्मीदवार खोजी समिति अलग-अलग दलों के नेताओं से मिलकर समर्थन तो मांग रही है लेकिन ये नहीं बता रही कि उम्मीदवार कौन है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सभी गैर एनडीए दलों के साथ बैठक कर गुफ्तगू कर चुकी हैं और शायद उस वक्त का इंतजार कर रही हैं कि सत्ताधारी पार्टी उम्मीदवार का नाम सुझाए। एनडीए का एक अहम घटक शिवसेना लगातार उम्मीदवारों का नाम सुझा रही है। पहले सरसंघचालक मोहन भागवत का नाम आगे किया। जब भागवत ने मना कर दिया तो फिर स्वामीनाथन का नाम उछाला। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर इतनी माथापच्ची क्यों?
राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार तय करना केंद्र की सत्ताधारी पार्टी का काम होता है यानी मोदी सरकार को यह तय करना है कि देश का अगला राष्ट्रपति कौन हो। सरकार की पहली कोशिश यह होती है कि किसी ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाए जिस पर आम सहमति से निर्णय हो जाए और चुनाव की नौबत न आने पाए। लेकिन इस बार परिस्थितियां थोड़ी भिन्न है। सरकार को यह भरोसा है कि एनडीए अपने दम पर राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत सकती है इसलिए शायद समय से पहले वह अपने पत्ते नहीं खोल रही और सभी दलों के नेताओं से अलग-अलग मिलकर नब्ज टटोल रही है कि उनके अंदर क्या चल रहा है। भाजपा की खोजी समिति सभी दलों से मिलकर उम्मीदवार के पक्ष में समर्थन तो मांग रही है लेकिन यह बताने से झिझक रही है कि उम्मीदवार कौन होगा। जाहिर सी बात है, विपक्षी दलों ने दो टूक जवाब दिया कि आप उम्मीदवार का नाम तो सामने रखिए, फिर समर्थन या विरोध की बात होगी।
राजनीति कहती है कि जब आपके पास विकल्प हो तो इतनी माथापच्ची नहीं करनी चाहिए। लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की दिक्कत यह है कि जो विकल्प मौजूद हैं वह उनके मनमाफिक नहीं है। जबकि इस विकल्प में कोई चुनौती भी नहीं है। सियासी पंडितों का मानना है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी राष्ट्रपति पद के लिए सबसे सशक्त विकल्प हो सकते हैं। शायद विपक्ष की तरफ से भी आडवाणी के नाम पर सहमति बन जाएगी। लेकिन भाजपा के अंदर की राजनीति में ही आडवाणी पर सर्वसम्मति नहीं बन पा रही है। दूसरे विकल्प के तौर पर मोदी सरकार वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के नाम को ही दूसरे कार्यकाल के लिए पेश कर सकती है। इसमें भी भाजपा के लिए कोई चुनौती नहीं होगी और सर्वसम्मति से फैसला हो जाएगा।
बहरहाल. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का ऐलान करने के लिए आज भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक दोपहर 12 बजे होगी। इस बैठक में उम्मीदवार के नाम पर सहमति बन सकती है। बताया जा रहा है कि पार्टी में इस बात को लेकर रजामंदी बनी है कि किसी सक्रिय राजनीतिक हस्ती को ही देश के इस सर्वोच्च पद पर काबिज होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 जून को अमेरिका दौरे पर रवाना हो रहे हैं इसलिए एनडीए हर हाल में इससे पहले राष्ट्रपति उम्मीदवार का नामांकन दाखिल कराने की तैयारी कर रही है। कहने का मतलब यह कि आज से लेकर 22 जून तक हर हाल में यह तय हो जाएगा कि देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा और इसका फैसला सर्वसम्मति सो होगा या फिर चुनाव से।