विकास की राजनीति पर फिदा हुई दिल्ली
किरण राय
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को एक बार फिर से बड़ा जनादेश दिया है। यह जनादेश खासतौर से उन नेताओं तथा उम्मीदवारों के मुंह पर तमाचा है जिन्होंने चुनाव के दौरान अथवा इससे पहले विवादित बयान देकर नफरत की राजनीति के बूते चुनाव जीतने की एक खतरनाक कोशिश की थी। सच जानिए तो दिल्ली जनादेश के कई मायने हैं जिसे घोर सांप्रदायिक पार्टी भाजपा समेत सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को समझने की जरूरत है।
दिल्ली जनादेश का सबसे बड़ा संदेश यह है कि मतदाताओं ने काम को महत्व दिया है। भाजपा ने शाहीन बाग को केंद्र बनाकर राष्ट्रवाद के मुद्दे को हवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हिंदू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान जैसे मुद्दों के जरिये उसने वोटों के ध्रुवीकरण की भरपूर कोशिश की। केंद्र सरकार के कई मंत्री, दो सौ से ज्यादा सांसद, अन्य राज्यों के कई राजग के मुख्यमंत्री-सबको को इस चुनाव में झोंक दिया गया था। केंद्र सरकार के मंत्री दरवाजे-दरवाजे जाकर पर्चे बांट रहे थे और भाजपा के पक्ष में वोट करने की अपील कर रहे थे। इन सबके बावजूद दिल्ली की जनता ने एक बार फिर से आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल पर भरोसा जताया तो इसका मतलब साफ है कि दिल्ली के लोग चाहते हैं कि पिछले पांच साल में जो काम हुआ है, वह आगे भी जारी रहे।
दरअसल केजरीवाल ने कॉमनमैन की पॉलिटिक्स की है। ऐसी कई योजनाएं चलाई जिसका सीधा नाता आम आदमी से है चाहे वो डीटीसी बसों में महिलाओं के मुफ्त सफर की बात हो या लोगों को मुफ्त में 200 यूनिट बिजली और हर परिवार को 700 लीटर पानी देने का मसला हो। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की या दिल्लीवासियों की सारी मुसीबतों को जड़ से मिटा दिया है, लेकिन इस सत्य से इनकार नहीं कर सकते कि दिल्ली के मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी का जो काम देखा है, उसकी काम करने की जो नीयत देखी है, उस पर अपना भरोसा जताया है। कहने का मतलब यह है कि कहीं न कहीं काम की राजनीति, सही मायने में विकास की राजनीति को लोगों ने पसंद किया है और भारतीय राजनीतिक परिवेश में यह बदलाव बहुत बड़ी चीज है, क्योंकि देश भर में इसका एक संदेश जाएगा कि जनता काम पर वोट करने लगी है।