एक बेअदब जीत!
किरण राय
एमसीडी चुनावों के परिणाम सामने हैं। इस बार के ये चुनाव ऐसे रहे मानो दिल्ली विधानसभा की सीटों के लिए दल अपनी साख दांव पर लगाये बैठे हों। भारतीय जनता पार्टी उत्साहित थी क्योंकि उसने हाल ही में उत्तर प्रदेश फतह किया था। पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल चरम पर था, तभी निकाय चुनावों के लिए भी केन्द्रीय मंत्रियों की फौज प्रचार में झोंक दी गई। आम आदमी पार्टी को शायद अंदाजा था कि उसके लिेए डगर 2015 जैसी नहीं होगी। कांग्रेस के लिए तो खोने के लिए कुछ ज्यादा था नहीं। सवाल कई उठते हैं। क्या दिल्ली के लिए भ्रष्टाचार मुक्त शासन- प्रशासन की बात बेमानी हो गई है? पिछले दो साल से राष्ट्रीय राजधानी में कूड़ों का अम्बार लगा रहा, लेकिन ठीकरा दिल्ली सरकार के माथे फोड़ गया। तो क्या भाजपा के बच निकलने की तरकीब लोगों को समझ में नहीं आई? अगर ऐसा हुआ है तो वाकई इन नतीजों का संदेश बेहद खतरनाक हैं।
स्पष्ट है कि इस चुनाव से भी देश के राजनीतिक भविष्य का फैसला होगा। आने वाले दिनों में भाजपा या सही मायनों में मोदी नाम का सिक्का अन्य राज्यों में भी असर दिखायेगा। भाजपा के लिए ये जीत इसलिए भी अहम है क्योंकि तमाम तरह के भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद वो एमसीडी पर लगातार तीसरी बार कब्जा जमाने में कामयाब रही। ये भी एक बड़ी उपलब्धि है। शायद पहले पार्टी भी इसके लिए संशकित थी। इस चुनाव ने फिर साफ कर दिया है कि भगवा पार्टी की नईया अब भी मोदी नाम के सहारे पार लगाई जा रही है और यही आने वाले समय में भी होगा। एक बात और भाजपा भी पुराने और कुछ हद तक आरोपी मंत्रियों संतरियों को मार्गदर्शक मण्डल के बहाने ठिकाने लगाने में जुट गई है। जिस तरह से दिल्ली में पुराने धुरंधरों का टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव लगाया गया...ये उसी की एक नजीर है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी यानी कांग्रेस के बुरे दिन खत्म नहीं हो रहें हैं। कांग्रेस को डूबती नईया समझ कर कई तो पहले ही उतर गए हैं और कई ऐसे हैं जो अपने बागी बयानों से पार्टी की पेशानी पर बल डाल रहें हैं। कांग्रेस को भी खुद को समेटना होगा, क्योंकि इससे ज्यादा की टूट खुद हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सही नहीं है। कांग्रेसियों को शीर्ष स्तर पर मंथन और चिंतन की जरूरत है। उसे भी कुछ पुराने लोगों से मोह भंग करना होगा जो पार्टी को भ्रमित कर रहें हैं। एक कौकस है जिससे निपट कर ही कांग्रेस खुद को निखार या संभाल सकती है।
वहीं आम आदमी पार्टी के लिए ये जनता की तरफ से चेतावनी है। जो बताना चाहती है कि भ्रष्टाचार को लेकर जिस मुहिम को केजरीवाल एण्ड कम्पनी आगे बढ़ी थी उस पर अब वो पूरी तरह से भरोसा करने को तैयार नहीं है। अरविंद केजरीवाल को अब दोषारोपण की राजनीति से परे कुछ सोचना होगा। उन्हें फोकस होकर काम करने की जरूरत है। दिल्ली वालों को फिर से भरोसा दिलाना होगा कि वो भटकेंगे नहीं। सत्ता पाने के चक्कर में पंजाब, गोवा या फिर उत्तर प्रदेश नहीं भागेंगे।
नतीजे बता रहें हैं कि दिल्ली सरकार को बदनाम करने की गहरी और सोची समझी रणनीति पर विगत दो सालों में काम किया गया। एमसीडी में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा लेकिन प्रबंधन के खुले खेल ने बाजी पलटने का माद्दा दिखाया। नतीजों ने तो मोदी जी के स्वच्छता अभियान की भी बेअदबी कर दी। एक तरफ देश के पीएम झाड़ू उठाते दिखे तो दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी द्वारा संचालित नगर निगम ने पूरी दिल्ली को कूड़े से पाट दिया। कुल मिलाकर परिणाम चौंकाने के साथ ही डराने वाले हैं। सवाल उठता है कि क्या अब इसी तर्ज पर पूरे देश में मूल समस्या को किनारे कर एक 'हाइप' रच कर पर लड़ाई लड़ी जाएगी?