ये तो राजनीति का अपमान है
किरण राय
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कहा कि 60 वर्ष से ऊपर नेताओं को राजनीति छोड़कर समाज सेवा करनी चाहिए। तो क्या भारतीय राजनीति में सदियों से नेतागण स्वकल्याण करते आ रहे थे और अपने बयानों और बातों से जनता को महज बरगलाने का काम कर रहे थे। हमारे देश के राजनीतिज्ञों और दार्शनिकों ने राजनीति को सेवाभाव के तौर पर ही परिभाषित किया था। राजनीति में रिटाइटरमेंट जैसा कुछ नहीं होता, हमारे संविधान में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। तो भला एक हार ने कैसे शाह की समझ को इतना सिमटा दिया।
अब्राहम लिंकन ने कहा था-एक प्रजातांत्रिक सरकार, जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा चुनी गई सरकार होती है। प्रजातंत्र का सूत्रपात निस्संदेह राजनीतिक प्रक्रिया से ही होता है। और इसमे समाज के भले और जन-कल्याण की बात होती है। जो राजनीति समाज के कल्याण की बात करती है उसे समाज सेवा से अलग थलग करके कैसे देखा जा सकता है। ये तो राजनीति का ही अपमान है।
राजनीति का तो अर्थ ही है राज्य के लिए नीति बनाना, तो कैसे जनकल्याण की बात करने वाली नीति को स्वहित से जोड़ा जा सकता है। शाह सोशल मीडिया के जमाने के नेता हैं इसलिए राजनीति की नई परिभाषा में शायद यकीन रखते हैं जिसके मुताबिक नागरिक स्तर पर या व्यक्तिगत स्तर पर अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करने का सिद्धान्त एवं व्यवहार राजनीति है या फिर शासन में पद प्राप्त करना तथा सरकारी पद का उपयोग करना राजनीति है।