गुजरात के शाह को मात
किरण राय
गुजरात में राज्यसभा सीट के लिए हुए चुनावों में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जीत कर भी हार गए हैं। हाल फिलहाल तक अमित शाह के रणनीतिक कौशल और जोड़-तोड़ की राजनीति को लेकर कोई संशय नहीं रहा है। उत्तर पूर्व हो, गोवा हो, उत्तराखण्ड हो या फिर बिहार- भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने विरोधियों के लिए ऐसी बिसात बिछाई की सब उसमें उलझे और अपनी जमीन खोते चले गए। उनकी चालों का सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस ने ही झेला। सब हैरान है कि 8 अगस्त को देर रात तक चले पोलिटिकल ड्रामा में आखिरकार कांग्रेस मामूली अंतर से ही सही जीत कैसे गई? शाह कहां गलती कर बैठे! कई दिनों से खूंटा गाड़े बैठे शाह ने क्या प्रतिद्वंदियों को कमतर आंका या फिर शाह अंकगणित के खेल में फंस गए? भाजपा के एक विधायक की क्रॉसवोटिंग की भी खबरें हैं- तो क्या दूसरे के किले में घुसने के लिए शाह ने अपना किला खुला छोड़ दिया?
ये नाक की लड़ाई थी। इस जीत को अहमद पटेल की ही नहीं बल्कि कांग्रेस की जीत के तौर पर देखना जरूरी है। अगर ये जीत मोदी और शाह के गृहराज्य में भगवा पार्टी के वर्चस्व को लेकर थी तो कांग्रेस अध्यक्ष के लिए ये प्रतिष्ठा की लड़ाई थी। सवाल पटेल के 5वीं बार राज्यसभा पहुंचने का ही नहीं था बल्कि हर राज्य में अपना आधार खोती जा रही पार्टी के अस्तित्व पर आकर अटक गया था। कांग्रेस को इससे सबक भी मिला। उसके 57 विधायक थे। पटेल के लिए राह आसान दिख रही थी लेकिन फिर वाघेला प्रकरण, शाह की एंट्री, होर्स ट्रेडिंग जैसे मसलों ने मुश्किल पैदा कर दी। पार्टी को अब समझना होगा कि वो आराम तलब होकर काम नहीं कर सकती। उसे सबको साथ लेकर चलना होगा। युवा नेतृत्व और पुराने अनुभव के मिलान से ही नईया पार लगेगी। साल के अंत में विधानसभा चुनाव हैं उसे लेकर नई ऊर्जा और शक्ति के साथ मैदान में उतरना होगा। यानी बाहर वालों से लड़ने के लिए अपने घर को दुरुस्त करना होगा।
जहां एक तरफ पटेल अपना कद और वर्चस्व कायम रखने में सफल रहेंगे वहीं शाह को लगातार पांचवीं बार गुजरात में विजय पताका लहराने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। जिस जीत के बाद उन्हें यकीन था कि कई कांग्रेसी पाला बदलेंगे और चुनावों में वो धमक के साथ उतरेंगे फिलहाल वो आसान नहीं दिख रहा है। क्योंकि इस सेमीफाइनल के खेल ने इतना तो स्पष्ट कर दिया है कि फाइनल की टक्कर रोमांचक और कांटे की होने वाली है। जो विधायक अब तक कांग्रेसी पाले में हैं वो यहीं रहेंगे और दल बदलने की कवायद कम दिखेगी। कोशिश मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने की थी जिसमें आखिरकार भाजपा के 'चाणक्य' को मात और कांग्रेस के चाणक्य की विजय हुई।