झण्डा ऊंचा रहे हमारा...
किरण राय
कर्नाटक जम्मू कश्मीर की राह पर चलने को तैयार है। कर्नाटक सरकार इन दिनों झण्डाबदार बनने को आतुर है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार लोगों की इच्छाओं का सम्मान करते हुए क्षेत्रिय हित में अलग झण्डा चाहती है। वैसे राष्ट्रीय मंच पर भले ही इस मुद्दे को अब हवा मिली हो लेकिन कर्नाटक में लम्बे समय से मांग जारी है। तो क्या वजह है कि अचानक सोशल मीडिया की कुछ चलताऊ, बिकाऊ खबरों की तरह यह वायरल हो गया? तूल की वजह हमेशा की तरह हमारे पोलिटिकल क्लास की बेसब्री है। जो वोट बैंक की खातिर मामले को लपक कर अपनी झोली में डालना चाहता है। अगले साल यानी 2018 मई में यहां विधानसभा चुनाव होने है, सो ये एक वजह काफी है क्षेत्रिय अस्मिता का राग अलापने को। सवाल उठता है कि क्या हमारे राजनेताओं के लिए तिरंगे, इस देश के संविधान को लेकर उत्साह खत्म होता जा रहा है? क्या हमारा एक ही झण्डा ऊंचा लहराये ये वो नहीं चाहते? अगर ऐसा है तो ये बेहद गंभीर मसला है।
बातें सीनाजोरी की हो रहीं हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भाजपा को ललकार रहे हैं कि उन्होंने जो इस संदर्भ में कमेटी बिठाई है उसकी मुखालफत भाजपाई खुलेआम करके दिखायें। बातें दोनों ओर से हो रही हैं। हास्यास्पद है जिस कांग्रेस की नईया पर सिद्धारमैया सवार होकर खुलेआम क्षेत्रियता की बात कर रहें हैं उसी के दिल्ली में बैठे नेता इससे इत्तेफाक नहीं रखते और सफाई दे रहें हैं कि अभी तो महज समिति बनी है। निर्णय सीएम के हाथ में नहीं। दूसरी ओर one state one flag का नारा बुलंद करने वाली भाजपा 2012 का दौर भूल रही है जब तत्लकालीन मुख्यमंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने बजट पेश करते हुए अलग झण्डे की तरफदारी की थी। कहा था- हर सरकारी इमारत पर ये झण्डा लहरायेगा। नोटिफिकेशन भी जारी हुआ, जिसे हाईकोर्ट के ऐतराज के बाद वापिस भी ले लिया गया।
कुल मिलाकर सभी पार्टियां मुद्दों की तलाश में क्षेत्रियता की अलख जगाने में लगी है। रण में सभी एक साथ कदम ताल करने को तैयार हैं। ये ऐसा मुद्दा है जिसके सहारे सब अपना वोट साधना चाहते हैं ये सोचे बगैर की अनेकता को एकता के सूक्त को इससे कितनी गहरी चोट लगेगी। अच्छा होता कि हमारे सभी दल इस तरह की ओछी राजनीति से परे होकर ऐसा निर्णय लें कि फिर कोई राज्य, फिर कोई सीएम, फिर कोई शख्स देश की अस्मिता का ख्याल सबसे पहले रखे। देश हित में, देश के लिए फैसला हो महज प्रोपेगेंडा ना हो।