कैम्पस को तो बख्श दो
किरण राय
जेएनयू और डीयू फिर सुर्खियों में है। मुद्दा फिर राष्ट्रभक्त बनाम राष्ट्रदोह। कैम्पस में जो कुछ सीखने, कुछ सबक लेने जाते हैं वही आज अनर्गल सी बातों और विचारों को लेकर मैदान-ए-जंग में है। खुद को दूसरे से बेहतर बताने की जुगत में मर्यादाओं, संस्कृति और संस्कारों की आहुति दी जा रही है। अपने दिल में छुपे गुब्बार को सोशल प्लेटफॉर्म पर कुछ इस तरह परोसा जा रहा है जिसमें ना शालीनता झलकती है और ना तथाकथित राष्ट्रप्रेम। कैम्पस की इस लड़ाई ने बड़े लोगों को भी अपनी राजनीति को चमकाने का मौका दे दिया है। राजनीति के खिलाड़ी छात्रों की लड़ाई लड़ने लगे हैं। अपनी सुविधानुसार धड़ों को चुन भी लिया है। ये सोचे बगैर की इस से फायदा भले उनका हो रहा है लेकिन नुकसान एक पूरी पीढ़ी का हो रहा है।
हैरानी होती है कि जिन छात्रों के लिए कैम्पस के भीतर की अव्यवस्था मुद्दा होनी चाहिए थी, शिक्षा-व्यवस्था को लेकर जिन्हें सजग होना चाहिए था... उनके लिए अहम अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर एक दूसरे का सिर फुटौव्वल हो गया है। उनके लिए सांस्कृतिक सद्भावना के मायने नहीं रह गए हैं बल्कि संस्कृति के नाम पर बवाल अहम हो गया है। क्या कैम्पस की राजनीति यही है? क्या स्वस्थ बहस नाम की कोई चीज अब स्टैंड नहीं करती? कैम्पस को क्यों अखाड़े में तब्दील कर दिया गया है? यहां जिसका मन करता है, जैसे मन करता है- आता है और अपने विचारों को हवा देकर चला जाता है।
रामजस कॉलजे में जो कुछ हुआ उसमें दोनों पक्ष अपनी जगह सही और गलत हो सकते हैं और हैं भी। लेकिन क्या वो सही हैं जो जो खुद को राष्ट्रभक्त और दूसरे को राष्ट्रद्रोही बताने पर तूले पड़े हैं? क्या वो बता पायेंगे कि जिस देश को भारत माता कहने और कहलवाने के लिए उनकी जुबान नहीं थकती वही इस देश की बेटी गुरमेहर के खिलाफ जहर क्यों उगलते हैं? क्या खुद को बीस दिखाना इतना जरूरी है कि हमारी (भारत) मां की बेटी को ही अपनी कुंठित मानसिकता का शिकार बना लिया जाए? ये सभ्य समाज और सरकार दोनों के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है...सरकार जिसका मुखिया अपने भाषणों में गुंडागर्दी को उखाड़ फेंकने की वकालत तो करता है लेकिन जब देश की बेटी की आन पर आती है तो शब्द बौने पड़ जाते हैं। ये उस समाज के लिए भी शोचनीय है जो घर की बेटी की तरफ ऊंगली उठाने वालों के खिलाफ तो बोलने से गुरेज करते हैं लेकिन कुतर्क के साथ आये विचारों को चुपचाप सुन भी लेते हैं।