सुपर स्टार कल्चर पर सवाल...जरूरी था
किरण राय
रामचंद्र गुहा ने जो किया अगर वो बहुत पहले से हो रहा होता तो भारतीय क्रिकेट में सट्टेबाजी, मैच फिक्सिंग, स्पॉट फिक्सिंग जैसे दाग नहीं लगते। राजनीति नहीं होती। बड़ी मछली छोटी मछलियों को नहीं खाती और सुपर स्टार कल्चर के दम पर खिलाड़ी मैच दर मैच आगे नहीं बढ़ते। भले ही फिलहाल गुहा कि टाइमिंग को लेकर सवाल खड़े किए जा रहें हों लेकिन खेलों पर हावी होते जा रहे स्टारडम जैसे गंभीर मुद्दे को बेबाकी से उठाकर देश का भला ही किया है। क्या बड़े बड़ों को आईना दिखाना गलत है? क्या bcci के साथ अनुबंध होने के साथ ही अपनी मैनेजमेंट प्लेयर कम्पनी चलाना नैतिकता के दायरे में आता है? अगर नहीं तो गावस्कर पर अब तक उंगली क्यों नहीं उठी?
बीसीसीआई की प्रशासक कमेटी (सीओए) के सदस्य पद से इस्तीफा देने वाले रामचंद्र गुहा ने अध्यक्ष विनोद राय को जो लिखा है उसे आंखें खोलने वाला करार दिया जा सकता है। उन्होंने राहुल द्रविड़, धोनी, कोहली, सुनील गावस्कर से लेकर गांगुली तक की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं। सवाल वाजिब हैं। गावस्कर की ही तरह द्रविड़ और गांगुली भी दो पदों को सम्भाले हुए हैं जिसमें हितों के टकराव की संभावनायें हैं। गुहा ने कुंबले जैसे कोच के प्रति असंवेदनशील रवैये, विराट कोहली को कई बड़े फैसलों के लिए एक तरह से वीटो देना भी उन्हें अखरा है। वहीं उन्होंने धोनी को ग्रेड ए की श्रेणी में रखने पर भी सवाल उठाये हैं। एक सवाल और है कि क्या BCCI इतनी बड़ी हो गई है कि उस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति भी नकेल नहीं कस पा रही है? क्योंकि गुहा के सवाल प्रशासन समिति की कार्यशैली को कटघरे में खड़े करते हुए खिलाड़ियों तक पहुंचते हैं।
गुहा ने यहां बीसीसीआई को लेकर जिस तरह से अपना मत या यूं कहें अपना गुबार निकाला है दरअसल ऐसा कर दिखाने का जिगर बहुत कम लोगों को होता है। ये तो एक खेल समिति की कहानी है लेकिन हमारे देश में ऐसी अनगिनत समितियां असंख्य रसूखदार लोगों की कमी नहीं है जो मलाईदार ओहदों पर रहकर कुछ खास तो करते नहीं लेकिन कमा बहुत लेते हैं। अच्छा हो कि BCCI गुहा के ऐतराज को बगावत ना समझे और सूझ बूझ से क्रिकेट में फैली अंधेरगर्दी को दूर करने की जुगत करे... नहीं तो क्रिकेटरों को भगवान का दर्जा देने वाले सैकड़ों का भ्रम टूट जाएगा। जो ना खेल के लिए और ना सबसे अमीर बोर्ड के लिए सही होगा।