शांता की चिट्ठी के मायने
किरण राय
अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और आडवाणी के बाद अब शांता कुमार ने भाजपा की बेचैनी को बढ़ा दिया है। उन्होंने सवा साल के भीतर हुए घोटालों पर केन्द्र नेतृत्व की चुप्पी को कटघरे में खड़ा किया है। हालांकि चिट्ठी की टाइमिंग पर सवाल उठ रहें हैं और मोदी के खिलाफ काम कर रहे एक धड़े को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। वजह चाहें जो भी हो लेकिन पार्टी की पहली पीढ़ी के नेता की शर्मिंदगी का कुछ तो सबब है। विषय गंभीर है।
मोदी समर्थक मान रहें हैं कि दरअसल ये उन नेताओं की भड़ास है जिन्हें सरकार ने कोई खास जिम्मेदारी या मंत्री पद नहीं दिया है। इस दौर में वो हाशिए पर हैं और अपनी छटपटाहट को जब तब उजागर कर देते हैं। वैसे भी हिमाचल के पूर्व सीएम रहे शांता कुमार मोदी के पुराने विरोधी माने जाते हैं, वजह 20 साल पुरानी है। 1995 में मोदी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव थे और उन्हें हिमाचल प्रदेश की कमान सौंपी गई थी। तब वो शांता के विरोधी प्रेम कुमार धूमल के करीब रहे और कुमार को दरकिनार कर धूमल को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। शायद आज शांता उसी धूमल प्रेम का बदला ले रहें हैं। वो शांता कुमार ही थे जिन्होंने 2002 के गुजरात दंगों के बाद मुखर होकर मोदी का विरोध किया था और कहा था कि अगर वो सीएम होते तो तुरंत इस्तीफा दे देते।
हो सकता है शांता रंजिशन ऐसा कर रहें हों, हो सकता है पुराना बैर निभाने का उन्हें अचूक मौका अब मिला हो लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पीएम मोदी जिस तरह ललित गेट, व्यापम और चिक्की घोटाले को लेकर चुप बैठे हैं वो सबको साल रहा है। सवाल उठ रहें हैं कि आखिर एक भगोड़े के साथ हमदर्दी रखने वाली एक केन्द्रीय मंत्री और एक सीएम के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है, क्यों जानलेवा व्यापम के खिलाफ मोदी खामोश हैं और क्यों महाराष्ट्र के घोटाले पर वो मुंह नहीं खोल रहें हैं? वो भी तब जब देश को ऐसा ई-पीएम मिला है जो सोशल मीडिया को भुनाने में माहिर माना जाता है। जो चुनाव से पहले भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने की बात करते थे वो आज मूकदर्शक क्यों बने हैं? ऐसे में शांता कुमार ने जिन मुद्दों पर जोर दिया है वो सोचनीय है। ये ऐसे मुद्दे हैं जो पार्टी, देश और सरकार को कमजोर करने वाले हैं। सो अब समय आ गया है कि भाजपा इस पर गंभीरता से विचार करे।