भारत को कूटनीतिक जीत तो मिली, लेकिन...!
किरण राय
भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की पाकिस्तानी सैन्य अदालत से मिली फांसी की सजा पर फिलहाल रोक लगाकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने भारत के न्याय पक्ष को बड़ी राहत दी है। हेग स्थित इस अदालत के फैसले से वैश्विक मंच पर भारत को बड़ी कूटनीतिक सफलता मिली है, वहीं पाकिस्तान का झूठ एक बार फिर से बेनकाब हुआ है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान आईसीजे के इस फैसले को मानने के लिए बाध्य है?
अंतरराष्ट्रीय अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जब तक सभी विकल्पों पर विचार नहीं हो जाता और इस मामले में वह अपना अंतिम आदेश जारी नहीं करता, जाधव को सजा-ए-मौत नही दी जाए। आईसीजे संयुक्त राष्ट्र के 1945 के घोषणापत्र के तहत चलने वाली संस्था है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य इससे संबंधित हैं। पाकिस्तान भी संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है। इसलिए उसे भी इस निर्णय को मानना चाहिए। लेकिन तकनीकी स्थिति यह है कि हर सदस्य देश ने यह घोषणा कर रखी है कि किन मामलों में वह आईसीजे के अधिकार-क्षेत्र को स्वीकार करेगा। आईसीजे निर्णय/आदेश देते वक्त इस दायरे को जरूर ध्यान में रखता है।
आईसीजे ने कुलभूषण जाधव के मामले में हस्तक्षेप करने की भारत की गुजारिश मंजूर की, तो ऐसा उसने अपने अधिकार-क्षेत्र पर गौर करते हुए ही किया होगा। यह कहा जा सकता है कि भारत अपना पक्ष मजबूती से रखने में सफल रहा। भारत ने 46 साल बाद आईसीजे की पनाह ली है। यह कामयाबी बताती है कि अगर ठोस तैयारी से अपनी बात रखी जाए, तो पाकिस्तान जैसे देश को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग किया जा सकता है।
बहरहाल, राहत की इस खबर के बीच यह जरूर ध्यान में रखना चाहिए कि जाधव की फांसी पर अभी सिर्फ रोक लगी है। उनकी रिहाई का रास्ता अभी साफ नहीं हुआ है। पाकिस्तान ने जाधव जैसे निर्दोष व्यक्ति को उत्पीड़ित करने की अमानवीय हरकत की है यह तो साफ हो ही गया है। इसलिए भारत के लिए यह एक बड़ा मौका है, जब पाक के नापाक तौर-तरीकों को दुनिया के सामने बेपर्दा करने में कोई कसर बाकी न रखी जाए। भारत को कुलभूषण की रिहाई तक इस लड़ाई को लड़ते रहना होगा तभी असली कूटनीतिक जीत मानी जाएगी।