राज्यतन्त्रात्तं नीतिशास्त्राम्
किरण राय
नीति शास्त्र राज्यतंत्र के अधीन है।
चाणक्य की नीति कहती है कि समाज में सुन्दर व्यवस्था बनाए रखना राजा का काम है। यदि राज्य में कानून व्यवस्था सही ना हो प्रजा दुखी हो तो इसे सरकार का निकम्मापन माना जाएगा... और इन दिनों हमारे देश के हालात कुछ ऐसे ही हैं। नेता मस्त और जनता पस्त है। हाल ही में एक के बाद एक ऐसे कई मसले सामने आए हैं जिसमें सरकार की उदासीनता साफ नजर आ रही है। हर राज्य की कहानी कमोबेश एक जैसी है। जनता रो रही है और इमाम बेशर्मी का प्रदर्शन कर रहें हैं। लोगों की मूलभूत आवश्यकतायें पूरी हो ना हो लेकिन हमारे राजनेताओं की आय में द्रुत गति से इजाफा जरूर हो रहा है। अब हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकार ने अपने विधायकों की सैलरी में जबरदस्त बढ़ोतरी का प्रस्ताव पारित कर दिया है। वहीं दिल्ली के एक मंत्री की अय्याशी ने साफ सुथरी पार्टी के दावों की पोल खोल कर रख दी है। राज्य में कानून-व्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था बेहतर है या नहीं इसकी सुध किसी को नहीं है, राज करने वालों को सबसे ज्यादा अपनी फिक्र है।
पहले बात स्वास्थ्य सेवाओं की करते हैं। जिसका हमारे देश में बुरा हाल है। अभी कालाहांडी में पत्नी के शव को कंधों पे ढोते पति की छवि धूमिल भी नहीं हुई थी कि कानपुर में 12 साल के अंश के शव को कंधों पर लादे एक पिता की तस्वीर ने देश की आत्मा को कंपा दिया। लेकिन ये तस्वीर हमारे उन नेताओं के लिए नहीं थी जिन्हें इसके महज दो दिनों बाद अपनी आमदनी बढ़ाने की फिक्र थी। पहले मंत्रियों का वेतन बढ़ा उसके बाद इस जद में विधायकों को भी शामिल कर लिया गया। अब विधायकों की आय में 60 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। क्या ही अच्छा होता कि इनमें से किसी एक की आत्मा जागी होती और उन्होंने प्रदेश को शर्मसार करने वाली घटना को ध्यान में रखते हुए बढ़ा हुआ प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति समर्पित कर दिया होता। एक नजीर तो बनती लेकिन यहां अच्छे उदाहरण तो सिर्फ राजनीतिक जवाबतलबी से होते हैं। सिसकती जनता की चिंता कोई करे तो करे क्यों? इससे सरकारी खजाने पर अगर 128 करोड़ का बोझ पड़े तो कैसी फिक्र। ये एक ऐसा बिंदू है जिस पर सपा के सभी माननीय एकमत हैं। ये है इनकी राजनीति ! हैरानी की बात है कि स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में हमारी हालत वियतनाम, अलजीरिया और पाकिस्तान जैसे देशों से भी खराब हैष WHO के मुताबिक भारत में 5,00,000 चिकित्सकों की कमी है। इससे सम्बंधित रिपोर्ट इसी साल मार्च में संसद के सामने भी रख दी गई है।
बात हरियाणा की, यहां भी उप्र की तर्ज पर विधानसभा सदस्यों की आय बढ़ाने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। अब विधायकों के वेतन और भत्ते बढ़कर 1.5 लाख रूपए हो जाएंगे। हाल ही में प्रदेश को शर्मसार कुछ ही घण्टों की बारिश ने कर दिया। सड़क पर जलजमाव ने मिलेनियम सिटी की मिट्टी पलित कर दी। इस दौरान हुए ट्रैफिक जाम में आम जनता ने लगभग 24 घण्टों तक का कष्ट झेला। देश के भीतर और बाहर छिछालेदर हुई सो अलग। खैर जनता के खैरख्वाहों को इसकी कैसी फिक्र? खूब हो-हल्ला मचा लेकिन एक दूसरे पर कीचड़ फेंकने के अलावा कुछ खास नहीं होता दिखा। जब आय बढ़ने का प्रस्ताव पारित हुआ तो किसी ने नहीं सोचा कि क्यों नहीं मिलेनियम सिटी के रूतबे को बरकरार रखने वाला ही प्रस्ताव पारित कर दिया जाए, जिससे भविष्य में लोगों को वो ना झेलना पड़े जो महज कुछ घण्टों की बारिश में झेल लिया।
अब जिक्र राजनीति में गिरते चरित्र का। आम आदमी पार्टी ने ईमानदारी और शुचिता की बुनियाद पर लोगों के दिलों में जगह बनाई, लेकिन हैरानी होती है कि एक के बाद एक लोगों के भरोसे को चोट पहुंचाई जा रही है। दिल्ली में सेक्स स्कैण्डल हो रहा है, फर्जीवाड़े का आरोप मंत्री पर लग रहा है, आए दिन दिल्ली सरकार और एलजी के अधिकारों पर बहस छिड़ रही है लेकिन जनता को उसके हिस्से की खुशी कैसे मुहैया करायी जाए इस पर सब मौन है। यहां भी खोट व्यवस्था पर मढ़ा जा रहा है लेकिन सवाल यही है कि व्यवस्था की डोर किसके हाथ में है? इससे दुरूस्त करने का जिम्मा किसका है? राज की नीति को गढ़ने का काम किसका है और इस सबसे अहम जनता के सुख की चिंता किसे करनी चाहिए? अपने सुख की चिंता में प्रजा के हितों की अनदेखी को निकम्मापन ना कहा जाए तो और क्या कहा जाए?