असत्यमेव जयते
किरण राय
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे वाकई हैरान करने वाले हैं। यकीन दिलाने वाले की अगर आप में सपने बेचने की कुव्वत है तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। अगर कोई कहता है कि जनता बहकावे में रहकर सब्जबाग दिखाने वाले पर आंख मूंदकर भरोसा करती है तो चुनावों के नतीजों ने उसे साबित कर दिया। इन नतीजों ने जता दिया कि सच्चाई चूंकि कड़वी होती है इसलिए उसे जज्ब करने का हौसला लोग नहीं दिखा पाते हैं। सच तो ये है कि एक हवा चली और उसने सच के धरातल से लोगों को दूर कर दिया। बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है, किसान भी मर रहा है, नोटबंदी ने कईयों को लील लिया और सीमा पर आज भी जवान शहादत दे रहा है। मतलब कुछ भी तो अच्छे दिन जैसा नहीं हुआ तो फिऱ आखिर कैसे हुई ये बम्पर जीत?
संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेटनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) ने 2017 वर्ल्ड इम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक रिपोर्ट जारी की है...रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2017-18 में भारत में बेरोजगारी में बढ़ोतरी होगी। इसके मुताबिक भारत में बीते साल के 177 लाख बेरोजगारों के मुकाबले 2017 में बेरोजगारों की गिनती 178 लाख हो जाएगी और सन 2018 में यह 180 लाख पहुंच जाएगी। वहीं देश में पिछले सात वर्षों में पहली बार मैन्युफैक्चर्ड वस्तुओं की बिक्री में 3.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। मेक इन इंडिया का गुब्बारा भी फूट ही गया है। फिर भी कैम्पेनिंग में एक आवरण खड़े करके लोगों को मुग्ध करने की अभूतपूर्व कला ने अप्रत्याशित जीत तो दिला ही दी।
कैसे ना माना जाए की उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं रची गई? क्या जाति का, धर्म का, ओबीसी का कार्ड नहीं खेला गया? क्या उन खास लोगों को टिकट नहीं दिया गया जो जिताऊ थे लेकिन जब तक दूसरी पार्टी में थे तब तक गुण्डे थे, उपद्रवी थे, अराजक थे लेकिन भगवा चोला पहनते ही अपने सारे पाप धो बैठे? अगर ये सब कुछ हुआ तो कैसे ना कहें कि इस बार असत्य की जीत हुई है।