ट्रिपल तलाक- सवाल पूरे हक का
किरण राय
सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले के राजनीतिक परिणाम चाहें जो भी हों लेकिन आधी आबादी को पूरा हक दिलाने की पहल के लिए सुप्रीम कोर्ट की वो पीठ तारिफ की हकदार है जिसने इस मसले को समाज के विकास और उत्थान से जोड़ा। साथ ही साफ किया कि हर मामले की सुनवाई और फैसला कोर्ट में नहीं किया जा सकता। क्योंकि ये धार्मिक आस्था का प्रश्न है इसलिए अदालत इस मामले में पूरी तरह हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। राजनीतिज्ञों को मशविरा भी दिया और नसीहत भी कि दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर फैसला लें। गेंद उन्हीं के पाले में है। हमारी न्याय व्यवस्था ने तो अपना काम कर दिया लेकिन क्या हमारे सियासतदां वही जज्बा, वही हिम्मत जुटा पायेंगे? और क्या ट्रिपल तलाक पर रोक आधी आबादी को पूरा हक दे पायेगी?
फैसला बहुमत के आधार पर तय हुआ। 5 में से तीन ने इस इस्लामिक प्रैक्टिस के खिलाफ और 2 ने इसके पक्ष में राय रखी। इस व्यवस्था को असंवैधानिक करार दिया गया। इसे लेकर कई राय जाहिर की जाएगी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समीक्षा में जुट गया है। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सवाल करने और उठाने का हक सबको है। सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी बेहद गंभीर है अब हमारे राजनीतिज्ञों को तय करना है कि वो किस तरह इस मसले पर बयान देते हैं। अच्छा होगा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग न्यायालय की तरह ही समझदारी का परिचय दें और ऊलजलूल की बयानबाजी से मुद्दे को हलका ना करें। जैसा पहले होता रहा है। इसी मसले पर यूपी के श्रम और रोजगार मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की टिप्पणी बड़ी अनोखी थी। उन्होंने पूरे समुदाय को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था।
देश के प्रधानसेवक भी उसी विचारधारा को परिलक्षित करते हैं जिसकी जड़ें कट्टर हिंदूवाद से जुड़ी हैं। उन्होंने भी मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने की बात कही। सवाल तब भी उठे अब भी उठ रहें हैं और उठते रहेंगे क्या बहुसंख्यक समाज की महिलायें किसी भी अन्याय को सह नहीं रहीं हैं। क्या बिना तलाक के परित्यक्ताओं, दहेज पीड़िताओं या फिर तलाकशुदाओं की हिंदूओं में कमी है? तो अगर आज उस धर्म विशेष की आधी आबादी को पूरे हक की बात की जा रही है तो फिर इनके हक की बात कब होगी?
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद में कहा था कि उन्हें मुस्लिम समाज की एक बात अच्छी लगती है कि कम से कम वो निकाह से पहले लड़की से पूछते तो हैं हमारे यहां तो लड़कियों को एक खूंटे से निकाल कर दूसरे में बांध दिया जाता है। दरअसल अटल जी का ये तर्क आज के संदर्भ में बहुत अहम है। ये गंभीर, सटीक और समझदारी से पूर्ण सबक है...जो सर्वधर्म संभाव की बेहतरीन नजीर है।