किसानों की आत्महत्या का अंतहीन सिलसिला
किरण राय
मध्य प्रदेश में कर्ज का बोझ और सूदखोरों से परेशान किसानों की आत्महत्या का अंतहीन सिलसिला जारी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जनपद सीहोर में एक और किसान ने सोमवार सुबह अपने घर में फांसी लगाकर जान दे दी। गिनती करें तो सीहोर में पिछले 8 दिनों में चौथे किसान ने खुदकुशी की है। और मंदसौर में गोलीबारी की घटना के बाद आठ दिनों में 12 किसानों ने जान दी है। यह एक भयावह स्थिति है। आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बढ़ने का मतलब साफ है कि उसका सरकार में भरोसा पूरी तरह से खत्म हो चुका है और जीवन जीने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा है। किसानों की आत्महत्या कोई एक मध्यप्रदेश का दर्द नहीं है, कमोवेश सभी राज्यों से इस तरह की घटना सुनने को मिल रही है।
किसानों का आत्महत्या करने को मजबूर होना किसी भी सरकार और समाज के लिए अभिशाप माना जाता है। इस अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए जरूरी है कि सरकार समस्या की जड़ को समझे और फिर ठोस ईमानदार नीतिगत कदम उठाये। अकसर प्राकृतिक आपदाएं ही फसल नष्ट कर किसान को आत्महत्या सरीखा कदम उठाने को मजबूर करती हैं, लेकिन सामान्य परिस्थितियों में भी उसे खेती से इतनी आय नहीं होती कि अपना जीवनयापन करते हुए बच्चों की शिक्षा और शादी आदि दायित्वों का निर्वाह बिना कर्ज लिये कर सके। गांव और किसानों के प्रति हमारे बैंकों का जैसा रवैया रहा है, उसके मद्देनजर कर्ज के लिए उन्हें अक्सर साहूकार के ही पास जाना पड़ता है, जो शोषण करने में कोई कसर नहीं छोड़ता।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘सवा सेर गेहूं’ महज एक कहानी नहीं है, ग्रामीण भारत का भयावह सच भी है। ऐसे में अगर फसल भी नष्ट हो जाये, तब किसान की हताशा का अंदाजा सुख-सुविधा संपन्न शहरी जीवन जीने वाले राजनेता या नौकरशाह नहीं लगा सकते। तभी तो धन्नासेठ डिफॉल्टरों के मामले में असहाय नजर आने वाले बैंक कर्जदार किसानों के चित्र सार्वजनिक कर उन्हें अपमानित करने में भी संकोच नहीं करते। कहने का मतलब यह कि आज की तारीख में बैंक और साहूकार दोनों मिलकर किसानों का इस कदर शोषण कर रहे हैं कि उनके लिए जीवनलीला समाप्त करने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखता। समय रहते सरकार ने इस अन्नदाता की तकलीफ पर ध्यान नहीं दिया तो आत्महत्या का यह अंतहीन सिलसिला जारी रहेगा और वो दिन दूर नहीं जब देश में किसानी करने वाले अन्नदाता खत्म हो जाएंगे। सोचिए! तब क्या होगा?