बेमेल 'बियाह' का हश्र, क्या तय था!

किरण राय
बिना मेल के ब्याह, कनपटी भर सेनुर...भोजपुरी बेल्ट की ये कहावत भारतीय जनता पार्टी और पीडीपी पर सटीक बैठती है। पहले दिन से ही इस बेमेल गठजोड़ को लेकर संदेह था। तीन साल तक साथ चला लेकिन अब भाजपा ने अचानक ही अपने हाथ खींच लिए। लेकिन ये हैरान करने वाला फैसला यूं ही नहीं लिया गया। तैयारी कई दिनों से थी। संदेश परोक्ष रूप से दिए जा रहे थे (जैसे उप-मुख्यमंत्री का बदलाव)। भाजपा ने जो वजहें गिनाई, वो तो घाटी में पहले दिन से ही जमी थीं तो आखिर एक पत्रकार की हत्या और सिपाही औरंगजेब को मारने के बाद ऐसा क्या अलग हो गया? जवाब बेहद आसान है। राजनीतिक समझ रखने वाला कोई भी शख्स इसे 2019 के आम चुनावों से पहले की तैयारी बता सकता है।
पहले दिन से ही दो ऐसी पार्टियों का विलय अटपटा था जिसमें दोनों की पहचान कट्टरता से जुड़ी है। दोनों ध्रुवीकरण की राजनीति के माहिर। भाजपा को भीतर और बाहर, दोनों ओर से लगातार मुखालफत झेलनी पड़ रही थी। फिलहाल उसे इससे निजात मिल गई है। पार्टी का थिंक टैंक जानता है कि 2019 में उन्हें मुस्लिम बाहुल्य श्रीनगर से कुछ खास हासिल नहीं होना है उसका वोट बैंक जम्मू में ही है। तभी तो समर्थन खींचते-खींचते महासचिव राम नाईक जम्मू की अनदेखी का सिक्का उछाल गए।
भाजपा के नेता जानते थे कि हिन्दुत्व को लेकर लड़ाई पीडीपी के साथ रहकर लड़ी नहीं जाएगी सो उसे सरकार को कुर्बान करना ही था। इसे तुफान से पहले की खामोशी कहें या सोची समझी रणनीति की भाजपा ने हाल फिलहाल घाटी में हुई वारदातों को लेकर चुप्पी साधी ना तो सरकार से जवाब तलब किया और ना ही खुलकर विरोध किया। सहयोगी दल को आभास ही नहीं होने दिया उन्हें तैयारी का समय ही नहीं दिया और एक झटके में समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया। यही वहीं भाजपा है जिसने 2015 में पीडीपी को काफी समझा बुझाकर अपने पाले में किया था और प्रदेश में ये बेमेल गठबंधन हुआ था।
इधर केन्द्र की कश्मीर में कुछ ना कर पाने को लेकर भी फजीहत हो रही है। लोग प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने से पहले वाले भाषण को शेयर कर रहें हैं जिसमें उन्होंने एक जवान की सिर के बदले दुश्मन देश के सिपाही का सिर कलम करने की बात कही थी। तब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कटघरे में खड़ा किया था। अब तक चुनी हुई कश्मीरी सरकार के चलते केन्द्र के हाथ थोड़े बंधे थे, शायद इसी बहाने वो अब घाटी में खुलकर सुरक्षाबलों, आर्मी का प्रयोग कर पाए। भाजपा जानती है कि 2019 ज्यादा दूर नहीं है और अब उसे जनता को जवाब देना है। सवाल देश की सुरक्षा से लेकर अस्मिता को लेकर भी है ऐसे में भाजपा बड़े फायदे के लिए तुरंत में छोटे नुकसान को झेलने के लिए तैयार बैठी है। प्रेस कान्फ्रेंस में पार्टी के तेवरों से स्पष्ट हो गया है कि अब बात सॉफ्ट नहीं बल्कि हार्ड कोर हिन्दुत्व की होगी।