कॉरपोरेट्स को ये छूट क्यों?
किरण राय
केन्द्र ने वित्त विधेयक को लोकसभा में पारित करा ही लिया। सरकार ने राज्यसभा द्वारा सुझाये संशोधनों और मशविरे को सिरे से नकार दिया और जता दिया कि कॉरपोरेट्स द्वारा राजनीतिक दलों की फंडिंग पर कैप या उस पर प्रतिबंध की शर्तें वो अपनी सुविधा और विवेक से ही लगायेगा। हालांकि सांसद सीताराम येचुरी की सलाह की बात में दम था, फिर भी कॉरपोरेट्स के हक में कुछ नियम की ढिलाई बरतने में सरकार ने कोई कमी नहीं रख छोड़ी। सवाल उठता है कि आखिर कॉरपोरेट्स को ये छूट क्यों?
येचुरी का तर्क था कि कॉरपोरेट्स द्वारा राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने का खुलासा ना करना राजनीति के लिए ठीक नहीं होगा। इससे राजनीतिक दलों को फंडिंग पारदर्शी नहीं रहेगी। जिसका सरकार ने बचाव किया और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि अच्छा है कि कॉरपोरेट किस पार्टी को कितना चंदा देता है इसका खुलासा ना ही करे...इससे हो सकता है कि अन्य दल उस पर उगाही के लिए दबाव डालने लगे। इसके साथ ही सरकार ने विपक्ष से कुछ और नए सलाह मांगते हुए अपने बिल को हरी झंडी दिखा दी।
जेटली का तर्क बिलकुल वाजिब और मानने योग्य है। लेकिन फिर सवाल उठता है कि राजनीतिक पार्टियों के चंदे को लेकर पारदर्शिता की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी के बोल क्या महज जुमलेबाजी थे? क्या इससे स्पष्ट नहीं होता कि कॉरपोरेट और राजनीतिक पार्टियों के बीच एक अनदेखा लेकिन सर्वविदित गठजोड़ है? क्या इसी परस्पर लेन-देन के खेल की वजह से सरकार जोखिम नहीं उठा रही? हालांकि बात पारदर्शिता, भ्रष्टाचार मुक्त सिस्टम की जोर-शोर से की जा रही है! केन्द्र ने पहले 20,000 की जगह 2,000 तक की फंडिंग तक के कैश की बात की फिर दानकर्ताओं को चेक या इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों को प्रयोग करने की सलाह दी। यहां तक सब ठीक था लेकिन वित्त विधेयक पारित कराने के लिए दिखाई जल्दबाजी ने केन्द्र सरकार की मंशा को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
सब जानते हैं कि कॉरपेरेट्स आज की तारीख में किसके साथ खड़ा रहेगा। वो अपनी बेहतरी के लिए सत्ता पक्ष को नजरअंदाज नहीं कर पायेगा। ऐसा पहले भी होता आया है। लेकिन इससे नुकसान क्या देश का नहीं होगा? क्या गुप्त चंदा देने वाले घराने अपनी सुविधा और फायदे के मुताबिक सरकार पर दबाव नहीं बनायेंगे? क्या इससे उसी परम्परा को फलने-फूलने का मौका नहीं मिलेगा जिसे लेकर दोषारोपण का खेल बरसों से चलता रहा है? फिलहाल सरकार की दरियादिली पारस्परिक गठजोड़ की ओर ही इशारा कर रही है।