साख और राजनीतिक पुनरोत्थान की जंग
ओपिनियन पोल सामने हैं। भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर सरकार बनाने की कगार पर बताई जा रही है और कांग्रेस अपने अंक तो बढ़ाती दिख रही है लेकिन सरकार बनाने का आंकड़ा उससे दूर है। जो ट्रेंड सामने आए हैं वो इंगित करते हैं कि पाटीदार और दलित आंदोलनों के बावजूद गुजरात के बेटे 'मोदी' की लोकप्रियता असर दिखाएगी। भाजपा पिछले 22 सालों से गुजरात से बेदखल नहीं हुई है और इस बार फिर जी जान से जुटी है उसके लिेए ये जीत साख का सवाल है तो कांग्रेस के लिए राजनीतिक पुनरोत्थान का।
भारतीय राजनीति में राहुल 'अवतार'!
कांग्रेस में राहुल गांधी की बतौर अध्यक्ष ताजपोशी लगभग तय है। जल्द ही वो उस ग्रैंड ओल्ड पार्टी के सर्वोच्च पद पर आसीन हो जाएंगे जिसकी सुगुबुगाहट विगत 13 साल से महसूस की जा रही थी। कई बार टालते-टालते कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में आखिरकार प्रस्ताव पारित हो ही गया। लेकिन प्रस्ताव पारित होने में इतनी देरी की वजह क्या थी? क्या खुद पार्टी राहुल को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थी- जिसमें वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष और राहुल की मां सोनिया गांधी शामिल हैं या फिर राहुल खुद तैयार नहीं थे?
ये जीत! देशहित में है
कांग्रेस 2014 में लगभग हर जगह परास्त हुई। राजनीतिक पंडितों के लिए भी मोदी लहर में कांग्रेस की ऐसी हार, अप्रत्याशित थी। उसके बाद कई राज्यों में चुनाव हुए जहां कांग्रेस अपनी पुरानी छवि के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई। लेकिन अब जिस तरह देश के अलग अलग राज्यों में विधानसभा उप चुनावों में रूलिंग पार्टी के अलावा अन्य पार्टियां जीत दर्ज करा रही हैं ये जितना इन दलों के लिए अच्छा है उतना ही हमारे लोकतंत्र के लिए भी।
विकास नहीं अब छेड़ा जाएगा राष्ट्रवाद और आतंकवाद का राग
गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले मुद्दे जुटाने और उन्हें क्रियेट करने की होड़ सी लग गई है। मुकाबला जाहिर है दो राष्ट्रीय पार्टियों में है। तो जुबानी हमले की जद में भी बड़े राष्ट्रीय लीडर आ रहें हैं। अहमद पटेल इसका ताजा उदाहरण हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार के तौर पर पहचाने जाते हैं।
भूख है तो सब्र कर...
झारखण्ड में एक 11 साल की बच्ची की मौत दरअसल, हमारी सरकारों की अकर्मण्यता और सिस्टम की नाकामी का उदाहरण है। कैसे हम डिजिटल इंडिया और बढ़ता भारत की बात कर सकते हैं जब हमारे देश का भविष्य खिलने से पहले दम तोड़ देता है। तो क्या एक जान की कीमत एक कार्ड बन कर रह गया है? क्या वाकई भूख के लिए सब्र करना पड़ेगा? लेकिन कब तक?
प्रधानमंत्री जी! हिम्मत नहीं, विमर्श अहम है
सुब्रमण्यम स्वामी, मोहन भागवत, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी ये सब कुछ ऐसे नामी गिरामी शख्सियतें हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री को अर्थव्यवस्था की बिगड़ी डगर के बारे में आगाह करने का जोखिम उठाया, लेकिन पीएम ने पलट कर इन्हें नसीहत दे डाली और ऐसे लोगों को निराशावादी करार दे दिया। हिम्मत सिर्फ हमने दिखाई कह कर चुप कराने का जिगर दिखा डाला। लेकिन क्या ऐसा कह मोदी गांधारी बनने की कोशिश नहीं कर रहे?
बीएचयू में जो हुआ वो शर्मनाक
बीएचयू में लड़कियों के साथ छेड़खानी हुई, उन्होंने विरोध किया तो उन पर लाट्ठियां बरसाईं गईं- आखिर हम कौन से लोकतांत्रिक व्यवस्था में रह रहें हैं? जहां सरेआम छात्राओं को अपमानित किया जाता है सुरक्षा के लिए तैनात गार्ड मूक दर्शक बना रहता है और पुलिस आती है तो डंडा उसी के खिलाफ उठाती है जो भुक्तभोगी हैं।
'वैशाखनंदन' पर शोर क्यों?
जब वैशाख महीने में सब कुछ अस्त-व्यस्त होता है सभी जीव जंतु हरियाली के बाद कमजोर होने लगते हैं तो गधा ही एक ऐसा सीधा सच्चा प्राणी है जो फल फूल रहा होता है। उसे वैशाखनंदन की उपाधि शास्त्रों ने प्रदान की। उसकी तुलना उन मनुष्यों से की जो उपलब्धियों पर इतराते हैं और जीवन के असली उद्देश्य से अनजान रहते हैं।
राजनीति से प्रेरित है निजी स्कूलों की मनमानी
रेयान इंटरनेशनल स्कूल में 7 साल के प्रद्युम्न ठाकुर की नृशंस हत्या हमारे बिगड़ते सामाजिक व्यवहार का उदाहरण तो है ही साथ ही हमारे लिए एक संकेत भी है। इशारा कि केवल सामाजिक तानेबाने को कोसने या फिर किसी संस्थागत कमी की लकीर को पीटने भर से कुछ नहीं होगा बल्कि बात तो तब बनेगी जब हम पोलिटिकल रिफॉर्म पर बहस करेंगे।
हां, मैं आजाद नहीं!
गौरी लंकेश निर्भीक, साहसी और मुखर शख्सियत का नाम था। जिसने वही किया जो उसके दिलोदिमाग ने कहा, वही कहा जो पत्रकारिता के लिहाज से सही था और वहीं जिआ जिसमें खुद यकीन किया। फिलहाल यही बेबाकी, कट्टर हिंदूवादी सोच की मुखालफत उनकी हत्या की वजह बताई जा रही है। बेंगलुरू कि इस कन्नड़ टेबलॉयड की संपादक की मौत से हैरानी कम और कष्ट और गुस्सा ज्यादा आ रहा है। सवाल कौंध रहा है कि आखिर हम किस समाज में रह रहें हैं? क्या इस आजाद देश में हमें अपनी बात, अपने हिसाब से रखने की भी इजाजत नहीं! क्या हम अगर परम्पराओं से इतर बोलेंगे तो हमें गोलियों का सामना करना पड़ेगा?