...तो ऐसे चलेगा कांग्रेस मुक्त भारत अभियान!
गुजरात के 42 विधायक कर्नाटक के जिस रिसॉर्ट में ठहरे थे अब उस पर आयकर का छापा मारा जा चुका है। कर्नाटक के कांग्रेसी मंत्री डीके शिवकुमार के इस रिसॉर्ट पर ही केन्द्र की टेढ़ी दृष्टि नहीं पड़ी बल्कि अपने यहां गुजराती विधायकों को ठहराने का खामियाजा उन्हें इससे कहीं आगे बढ़कर चुकाना पड़ रहा है। उनके दर्जनों ठिकाने आयकर छापों की जद में हैं। मामला उच्च सदन तक पहुंचा और खूब हंगामा बरपा। इन सब कार्रवाईयों से साफ है कि भाजपा की सरकार उसी राह पर चल पड़ी है जिस पर कभी कांग्रेस चला करती थी। रास्ता कांग्रेस ने दिखाया अब उन्हीं पदचिह्नों पर मोदी सरकार चल रही है। तो क्या कांग्रेस मुक्त भारत अभियान इसी पैंतरेबाजी से अंजाम में लाया जाएगा?
मौके की यारी
नीतीश कुमार ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वह न तो जेडीयू के नेता हैं, न महागठबंधन के नेता है और न ही एनडीए के नेता हैं। वह नेता हैं तो सिर्फ 'मौके की यारी' के। बुधवार को जब नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ट्वीट कर बधाई दी। इसके जवाब में नीतीश कुमार ने पीएम मोदी को तहे दिल से शुक्रिया भी कहा। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ होगा जब किसी मुख्यमंत्री के इस्तीफे पर देश के प्रधानमंत्री ने बधाई दी हो। कुछ ही घंटों में इन दोनों नेताओं के बीच नजदीकियां इतनी बढ़ जाए, इसे मौके की यारी न कहें तो और क्या कहें?
रायसीना हिल्स में भाजपा के राम
स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जीत कर रायसीना हिल्स की शोभा बढ़ायेंगे। रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति के तौर पर उम्मीद के मुताबिक चुने जा चुके हैं। एक बार फिर इस उम्मीदवारी की पटकथा लिखी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। हमेशा की तरह सबको चौंकाते हुए एक ऐसे शख्स को आगे किया जिसके बारे में चर्चा तक नहीं थी। एक तीर से कई निशाने साधे। दलितों की राजनीति करने वालों को दलित प्रेमी होने का एहसास कराया तो भविष्य के चुनावों के लिए खास वोट बैंक को भी साधने का प्रयास किया है।
झण्डा ऊंचा रहे हमारा...
कर्नाटक जम्मू कश्मीर की राह पर चलने को तैयार है। कर्नाटक सरकार इन दिनों झण्डाबदार बनने को आतुर है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार लोगों की इच्छाओं का सम्मान करते हुए क्षेत्रिय हित में अलग झण्डा चाहती है। वैसे राष्ट्रीय मंच पर भले ही इस मुद्दे को अब हवा मिली हो लेकिन कर्नाटक में लम्बे समय से मांग जारी है। तो क्या वजह है कि अचानक सोशल मीडिया की कुछ चलताऊ, बिकाऊ खबरों की तरह यह वायरल हो गया? तूल की वजह हमेशा की तरह हमारे पोलिटिकल क्लास की बेसब्री है। जो वोट बैंक की खातिर मामले को लपक कर अपनी झोली में डालना चाहता है।
महिला स्वच्छता अधिकार की बेकद्री क्यों?
इन दिनों आधी आबादी फेसबुक पर बेहद आक्रामक अंदाज में अहिंसात्मक आंदोलन कर रही है। जीएसटी को लेकर विरोध है। जीएसटी सभी उत्पादों पर लगाई है इसे लेकर नहीं बल्कि जीएसटी जो उनके स्वच्छता के अधिकार को चुनौती दे रही है। वो अधिकार जो इस समाज इस देश की भलाई के लिए है। विरोध सेनिटरी पैड्स पर लगाए 12 फीसदी के टैक्स स्लैब पर है। औरतें ख़फा हैं उन्हें नाराजगी इस बात पर भी है कि आखिर सिंदूर, बिंदी जैसे सामान जरूरी और पैड्स गैरजरूरी कैसे हो गए?
जर्मनी की तरह हमारे देश में क्यों ना हो फेसबुक एक्ट?
सोशल मीडिया के जरिए किस कदर लोगों के जेहन में जहर फैलाया गया है इसका ताजातरीन उदाहरण है पश्चिम बंगाल। जहां ऐसी पोस्ट ने सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया जिसने कईयों की जान ली और लोगों के बीच बीज बोने का काम किया। राजनीतिक छींटाकशी का दौर जारी है लेकिन कोई इस असंतोष के मूल में झांकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा शायद इसकी वजह सोशल प्लेटफार्म से जुड़े वो सैंकड़ों लोग हैं जो राजनीतिक दलों का वोटबैंक हैं। सवाल पूछे जाने लगे हैं कि क्या सोशल मीडिया पर नकेल कसने का वक्त आ गया है?
साबरमती आश्रम से नमो संदेश के मायने
गौरक्षा और गौ-भक्ति के नाम पर देश के अलग-अलग स्थानों से उपद्रव और मुसलमानों की पीट-पीटकर हत्या कर दिए जाने की खबरों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे इंतजार के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी। प्रधानमंत्री ने गुरुवार को साबरमती आश्रम से गौ-भक्तों को सख्त संदेश दिया कि गौ-भक्ति के नाम पर इंसान की हत्या कर देना गांधी के देश में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह देश अहिंसा की भूमि है और किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। मेरा प्रधानमंत्री से सिर्फ एक सवाल है कि ऐसे सख्त संदेश देने के लिए भी क्या खास स्थल और खास अवसर का इंतजार करना चाहिए।
सोनिया गांधी का मास्टर स्ट्रोक
जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार के रूप में रामनाथ कोविंद के नाम का ऐलान कर नहला चला था ठीक उसी तरह से कांग्रेस समेत 17 विपक्षी दलों ने ख्यातिप्राप्त महिला दलित नेता मीरा कुमार के नाम का ऐलान कर दहला मारा है। निश्चित रूप से मुकाबला दलित बनाम दलित का हो गया है जो पहले कभी नहीं हुआ था। इसे सोनिया गांधी का मास्टर स्ट्रोक भी कह सकते हैं। इस मुकाबले में रामनाथ कोविंद जीत जाएं यह अलग बात होगी, लेकिन एक उम्मीदवार के रूप में मीरा कुमार की दावेदारी ज्यादा मजबूत है। हालांकि दोनों ही उम्मीदवार दलित हैं लेकिन एक वजह जो मीरा कुमार को बढ़त दिला सकती है वह है दलित के साथ उनका महिला होना। मीरा की उम्मीदवारी से नीतीश की परेशानी जरूर बढ़ गई है जो आनन-फानन में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का ऐलान कर चुके हैं। विपक्षी दलों की बैठक का इंतजार करना भी उन्होंने उचित नहीं समझा।
किसानों की आत्महत्या का अंतहीन सिलसिला
मध्य प्रदेश में कर्ज का बोझ और सूदखोरों से परेशान किसानों की आत्महत्या का अंतहीन सिलसिला जारी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जनपद सीहोर में एक और किसान ने सोमवार सुबह अपने घर में फांसी लगाकर जान दे दी। गिनती करें तो सीहोर में पिछले 8 दिनों में चौथे किसान ने खुदकुशी की है। और मंदसौर में गोलीबारी की घटना के बाद आठ दिनों में 12 किसानों ने जान दी है। आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बढ़ने का मतलब साफ है कि उसका सरकार में भरोसा पूरी तरह से खत्म हो चुका है। यह एक भयावह स्थिति है। समय रहते सरकार ने इस अन्नदाता की तकलीफ पर ध्यान नहीं दिया तो आत्महत्या का यह अंतहीन सिलसिला जारी रहेगा और वो दिन दूर नहीं जब देश में किसानी करने वाले अन्नदाता खत्म हो जाएंगे। सोचिए! तब क्या होगा?
राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर इतनी माथापच्ची क्यों?
अगले महीने होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासत तेज हो गई है। एक तरफ सत्ताधारी पार्टी भाजपा और दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में तमाम विपक्षी पार्टियां देश का अगला राष्ट्रपति कौन हो इसको लेकर माथापच्ची कर रहे हैं। राजनीति कहती है कि जब आपके पास विकल्प हो तो इतनी माथापच्ची नहीं करनी चाहिए। लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की दिक्कत यह है कि जो विकल्प मौजूद हैं शायद वह उनके मनमाफिक नहीं। सियासी पंडितों का मानना है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी राष्ट्रपति पद के लिए सबसे सशक्त विकल्प हो सकते हैं। शायद विपक्ष की तरफ से भी आडवाणी के नाम पर सहमति बन जाएगी। दूसरे विकल्प के तौर पर वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के कार्यकाल को भी आगे बढ़ा जा सकता है।