सरकार समझे मीडिया में 'डर' कोई चीज नहीं होती
'हम एक साथ काम करेंगे। आपने हमे अलग करने की कोशिश की है और कई परिवारों में लड़ाई करवाने की कोशिश की है। पर वो दिन अब खत्म हो रहे हैं। हमें अब समझ आ गया है कि आपकी कवरेज के लिए हमें एक जुट होना पड़ेगा...हमें वापस जनता का भरोसा जीतना है और निडर रिपोर्टिंग करनी है।' अमेरिकी प्रेस ने इसी अंदाज में सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठे प्रेसिडेंट ट्रम्प को ललकारा था। निडर पत्रकारिता क्या होती है इसकी मिसाल दुनिया के सामने रखने की अच्छी कोशिश की। आज ऐसा ही कुछ हमारे यहां हो रहा है। NDTV केन्द्र में है। NDTV के मालिकानों के ऊपर सीबीआई रेड गलत या सही हो सकती है। सरकार अगर कह रही है कि कानून से बड़ा कोई नहीं तो सही कह रही है।
सुपर स्टार कल्चर पर सवाल...जरूरी था
रामचंद्र गुहा ने जो किया अगर वो बहुत पहले से हो रहा होता तो भारतीय क्रिकेट में सट्टेबाजी, मैच फिक्सिंग, स्पॉट फिक्सिंग जैसे दाग नहीं लगते। राजनीति नहीं होती। बड़ी मछली छोटी मछलियों को नहीं खाती और सुपर स्टार कल्चर के दम पर खिलाड़ी मैच दर मैच आगे नहीं बढ़ते। भले ही फिलहाल गुहा कि टाइमिंग को लेकर सवाल खड़े किए जा रहें हों लेकिन खेलों पर हावी होते जा रहे स्टारडम जैसे गंभीर मुद्दे को बेबाकी से उठाकर देश का भला ही किया है। क्या बड़े बड़ों को आईना दिखाना गलत है? क्या bcci के साथ अनुबंध होने के साथ ही अपनी मैनेजमेंट प्लेयर कम्पनी चलाना नैतिकता के दायरे में आता है? अगर नहीं तो गावस्कर पर अब तक उंगली क्यों नहीं उठी?
ब्लैंकेट बैन के खिलाफ ये कैसा विरोध?
तो अब राजनीति का निवाला खुलेआम असहाय मवेशी बनेंगे, इसलिए क्योंकि वो विरोध में हल्ला नहीं मचा सकते। उन्हें आसानी से पकड़कर अपनी सनक या विरोध के अजब गजब तरीकों के लिए कत्ल कर दिया जायेगा। आखिर ये कैसी राजनीति है? एक पार्टी सत्ता में बैठकर अपना फैसला सुना देती है तो दूसरी पार्टी इसके विरुद्ध सड़क पर ही निर्ममता की सारी हदें पार कर देती हैं। मूल मुद्दे से भटकाव और लाईमलाइट में आने का बहुत घटिया और आसान तरीका अपना लिया गया है। क्या इससे पहले कोई रिजिल मक्कुट्टी नाम के युवा कांग्रेस नेता को जानता था? शायद नहीं। लेकिन एक घटना ने उसे सुर्खियों में ला खड़ा किया।
सोग़ मनाना फ़ुजूल इसलिए जश्न की बात
भाजपा ने ऐलान किया है कि मोदी सरकार की उपलब्धियों के तीन साल पूरे करने पर जश्न धुंआधार मनेगा। मंत्री संतरी सब जश्न-ए-सरकार में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेंगे। मोदीफेस्ट को भव्य बनाने की तैयारी जोरों पर है। लेकिन सवाल उठता है कि देश को चलाने में क्या सरकार सही मायनों में सफल हुई है? क्या हर दूसरे दिन हमारा सैनिक शहादत नहीं पा रहा है? क्या किसान आत्महत्या नहीं कर रहा है? क्या गौमाता के नाम पर समुदाय विशेष को निशाना बनाने का क्रम थमा है और झारखंड में हाल ही में भीड़ के पागलपन का शिकार बने युवाओं की मौत भला किस सरकार की सफलता का पैमाना हो सकती है? कुल मिलाकर देश का जवान, किसान और आम हिन्दुस्तानी खुद को फनां कर रहा है और सोग़ मनाने के बजाए इन बरबादियों का जश्न मनाने पर जोर दिया जा रहा है।
भारत को कूटनीतिक जीत तो मिली, लेकिन...!
भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की पाकिस्तानी सैन्य अदालत से मिली फांसी की सजा पर फिलहाल रोक लगाकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने भारत के न्याय पक्ष को बड़ी राहत दी है। हेग स्थित इस अदालत के फैसले से वैश्विक मंच पर भारत को बड़ी कूटनीतिक सफलता मिली है, वहीं पाकिस्तान का झूठ एक बार फिर से बेनकाब हुआ है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान आईसीजे के इस फैसले को मानने के लिए बाध्य है? भारत को कुलभूषण की रिहाई तक इस लड़ाई को लड़ते रहना होगा तभी असली कूटनीतिक जीत मानी जाएगी।
अघोषित युद्ध में लगातार मिलती मात
इसे पाकिस्तान की धृष्टता कहें या भारत का मखौल उड़ाने की जिद्द, लेकिन जिस तरह से अपने ही घर में बार-बार हमारे सैनिक, हमारे अफसर, हमारे जवान, हमारे नागरिक उनके आतंकियों का निशाना बन रहें हैं माने ना मानें लेकिन इस छद्म युद्ध में हम हर बार मात खा रहें हैं। ताजा मामला लेफ्टिनेंट उमर फयाज का है। जिसे अगवा कर गोलियों से भून दिया गया। हद तो तब हुई जब शहीद के जनाजे पर आतंक समर्थकों ने पत्थरबाजी तक की।
आप का वो माइडस टच!
इन दिनों आम आदमी पार्टी उस दौर से गुजर रही है जो उसके लिए अकल्पनीय है। ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली की सत्ता पर बम्पर जीत के साथ काबिज होना। एक दौर वो था जब सब आप के माइडस टच के कायल थे। माइडस एक यूनानी पौराणिक कथा का पात्र। कहा जाता है कि वो एक ऐसा राजा था जो जिस चीज को छूता था वो सोने का हो जाता था। आप के साथ भी कुछ वैसा था। जिस मुद्दे को पार्टी उठाती थी...उस पर सब विश्वास करते थे। यकीन होता था कि ये पार्टी विद डिफरेंस हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सकारात्मकता का संचार करेगी।
एक बेअदब जीत!
एमसीडी चुनावों के परिणाम सामने हैं। इस बार के ये चुनाव ऐसे रहे मानो दिल्ली विधानसभा की सीटों के लिए दल अपनी साख दांव पर लगाये बैठे हों। भारतीय जनता पार्टी उत्साहित थी क्योंकि उसने हाल ही में उत्तर प्रदेश फतह किया था। पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल चरम पर था, तभी निकाय चुनावों के लिए भी केन्द्रीय मंत्रियों की फौज प्रचार में झोंक दी गई। सवाल कई उठते हैं। क्या दिल्ली के लिए भ्रष्टाचार मुक्त शासन- प्रशासन की बात बेमानी हो गई है? पिछले दो साल से राष्ट्रीय राजधानी में कूड़ों का अम्बार लगा रहा, लेकिन ठीकरा दिल्ली सरकार के माथे फोड़ गया। तो क्या भाजपा के बच निकलने की तरकीब लोगों को समझ में नहीं आई? अगर ऐसा हुआ है तो वाकई इन नतीजों का संदेश बेहद खतरनाक हैं।
क्या ऐसे अमल में आएगा विजन डॉक्यूमेंट?
ज्यादा दिन नहीं बीते जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विभिन्न राज्यों के सीएम के साथ मिलकर न्यू इंडिया विजन डॉक्यूमेंट तैयार किया। जिसमें देश के आर्थिक विकास के लिए 15 वर्षीय विजन डॉक्यूमेंट, सात साल के लिए सरकार की रणनीति और 3 साल में देश का कायाकल्प करने के एक्शन प्लान पर चर्चा हुई। पीएम ने जीएसटी पास कराने के लिए विभिन्न राज्यों की सरकारों के सहयोग को अभूतपूर्व माना। लेकिन क्या ही अच्छा होता अगर पीएम इस राष्ट्र के आर्थिक विकास को तवज्जो देने के साथ ही उन मजलूमों का भी जिक्र करते जो इन दिनों गौरक्षकों के खौफ के साए में जी रहे हैं।
दवा तो है पर दर्द और मर्ज का इलाज जरूरी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को लेकर जो उद्गार व्यक्त किए वो काबिल-ए-तारिफ है। खासकर जेनेरिक दवाओं के इस्तेमाल संबंधी नियम और कायदों को लेकर। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार ऐसा कानून बनाने पर विचार कर रही है जिसके आधार पर चिकित्सक मरीजों को जेनेरिक दवाएं परचे पर लिखने के लिए बाध्य होंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके तहत चिकित्सक मरीज को लिखेगा कि वो जेनेरिक दवाओं का प्रयोग करे और उसे इसके अलावा कोई और दवाई लेने की जरूरत नहीं है। अच्छा होता कि मोदी ये दायरा केवल मरीजों और चिकित्सकों तक ही ना सीमित रखते बल्कि दवायें बेचने वाली बड़ी कम्पनियों को भी इस जद में लाने का खाका कम से कम अपनी बात के जरिए ही करते। यानी दवा का असल मर्ज क्या है इसे ढूंढना, परखना जरूरी है।