बैकफुट पर 'सरकार'
शायद ये चुनावी मौसम ना होता तो रामकिशन ग्रेवाल की खुदकुशी पर कोई चूं तक ना करता। लेकिन हंगामा बरपा और ऐसा कि फिलहाल केन्द्र बैकफुट पर और विरोधी खेमा फ्रंट फुट पर खेलता दिख रहा है। हालांकि मानना पड़ेगा कि जिस अंदाज में विपक्ष ने मुद्दे को लपका और शोर मचाया उतनी ही ढिलाई का परिचय केन्द्र की ओर से दिखा। आम आदमी पार्टी से लेकर कांग्रेस नफे-नुकसान की राजनीति में लग गए हैं। एनडीए सरकार के मंत्री भी कोशिश तो कर रहें हैं लेकिन अब तक की सभी कोशिशें नाकाफी लग रहीं हैं।
यह 'राजनीतिक बेईमानी' की पराकाष्ठा है
युवा जोश की युवा सोच के जरिये विकास की राजनीति करने का दावा करने वाली उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार और उनके पिता-चाचा मुलायम-शिवपाल का समाजवादी कुनबा बिखराव की कगार पर आ खड़ा हुआ है। सत्ता और संगठन के बीच छिड़ी यह जंग उत्तर प्रदेश की राजनीति को किस ओर ले जाएगी, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं कि यह राजनीति का धर्म कतई नहीं है। यह तो राजनीतिक बेईमानी की पराकाष्ठा है जिसमें जनता खुद को ठगा सा महसूस कर रही है।
24 साल का साथ यूं ही तो नहीं छूटा
रीता बहुगुणा जोशी को जाना ही था। कांग्रेस में जिस तरह वो लगातार अपना कद गिरता देख रहीं थीं उससे उनका पलायन निश्चित ही लग रहा था। कई दिनों से उनके इस संभावित कदम को लेकर चर्चाएं भी थीं और भाई विजय बहुगुणा भी अपने बयानों से इसकी तस्दीक कर रहे थे। वहीं कहा जाता है कि पार्टी उनसे भाई विजय बहुगुणा को भाजपा में जाने से रुकवाना चाहती थीं, जो वो नहीं कर पाईं। इससे उन पर दबाव बहुत था और इस वाकये के बाद उनकी हैसियत भी घटी थी।
ब्रिक्स ने नहीं समझी भारत की बात
गोवा में 8वां ब्रिक्स सम्मेलन संपन्न हो गया, लेकिन सम्मेलन की मेजबानी करने के बावजूद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को अंजाम तक पहुंचाने में भारत पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया। अड़ंगा फिर चीन ने ही लगाया। उसने अपने दोस्त पाकिस्तान की खातिर भारत की मुहिम को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने गोवा घोषणा पत्र में भारत के साथ एकजुटता दिखाते हुए अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से मुकाबले के लिए व्यापक रणनीति पर जोर दिया। लेकिन इसकी किसी पंक्ति में सीमा पार आतंकवाद का जिक्र नहीं किया गया। जबकि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ताकत तो पूरी झोंकी थी।
जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं...
एक दिन में ताबड़तोड़ एक नहीं दो नहीं बल्कि चार-पांच संवाददाता सम्मेलन। इसकी वजह सिर्फ अपने दाग को दूसरे के दाग से कम दिखाने की रही। भाजपा और कांग्रेस दो ऐसी राष्ट्रीय पार्टियां जो एक दूसरे पर निशाना साधने के साथ ही खुद को दूसरे से बेहतर साबित करने में लगी है। रौ में सभी बह रहें हैं। मौका सभी को जबरदस्त मिला है। जानते हैं कि सेना का मुद्दा हवा का रुख मोड़ने का माद्दा रखता है सो इसे ही बार-बार हवा दी जा रही है। राजनीति किसी गहन मुद्दे पर नहीं बल्कि भावनाओं को कैश करने की हो रही है। निगाहें कहीं भी हो लेकिन निशाने पर अगले साल होने वाले विधानसभा के चुनाव हैं।
चातुर्य से किया चित
पाकिस्तान ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि भारत के पैराकमांडोज उसके 'पाले' गए आतंकियों को LOC पार नेस्तनाबूद कर देंगे। उरी हमले के बाद भारत के भीतर एक छटपटाहट थी। प्रशंसा करनी होगी पीएम नरेन्द्र मोदी, उनकी टीम और एनएसए अजीत डोभाल की, जिन्होंने संयम और चातुर्य का बेहतरीन प्रदर्शन किया। पहले तो पाकिस्तान को कूटनीतिक तरीके से बेहाल किया फिर सही मौका देखकर सर्जीकल स्ट्राइक के जरिए बेदम कर दिया।
पाक को सख्त संदेश, अगर समझे तो...
यूएन महासभा में जिस तरह से भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपना पक्ष पूरी सरलता, सहजता से रखा उसने यकीनन हमारी सोच, हमारी बेचैनी की वजहों को स्पष्ट तौर पर दुनिया के सामने रख दिया। सुषमा के किसी वाक्य से नहीं लगा कि वो यूं ही अपनी बात रख रहीं है उनके शब्दों में ईमानदारी की छाप साफ थी। उन्होंने 20 मिनट के अपने भाषण में भारत-पाक रिश्तों की सच्चाई बयान कर दी।
खालिस देसी बिजनेस मैन हैं बाबा
योग गुरु बाबा रामदेव अब बिजनेस टाइकून बनने की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। सरकार उनके पसंद की है और योग से पहले ही वो टीवी के जरिए लोगों के ड्राईंग रूम तक पहुंच चुके हैं। उनकी स्ट्रेटजी काम करती दिख रही है। किसी शातिर बिजनेसमैन की तर्ज पर वो मार्केट के उतार-चढ़ाव को परखते रहे और मौका लगते ही चौका मार दिया।
कैमरून का सबक
ब्रेग्जिट मामले में मिली हार ने कैमरून को सेचने पर मजबूर कर दिया कि वो अब उस ओहदे पर बने रह नहीं सकते जिसकी जनता ताकत होती है। उन्हें ऐहसास हो गया कि यही वो समय है जब राजनीति से संन्यास ले लिया जाए। जैसा जिगर जैसा जज्बा कैमरून ने दिखाया क्या हमारे नेता ऐसा करने की हिम्मत रखते हैं?
राज्यतन्त्रात्तं नीतिशास्त्राम्
चाणक्य नीति का एक सूत्र है कि समाज में सुन्दर व्यवस्था बनाए रखना राजा का काम है। यदि राज्य में कानून व्यवस्था सही ना हो प्रजा दुखी हो तो इसे सरकार का निकम्मापन माना जाएगा। इन दिनों हमारे देश के हालात कुछ ऐसे ही हैं। नेता मस्त हैं और जनता पस्त है।