मेघालय से पूरी तरह और अरुणाचल के कुछ इलाकों से हटा विवादित कानून अफस्पा
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: जिस AFSPA को लेकर लंबे समय तक पूर्वोत्तर में प्रदर्शन होता रहा। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने उस विवादित कानून को ही मेघालय से पूरी तरह हटा दिया है। वहीं अरुणाचल प्रदेश के आठ थानों से इसे हटा दिया गया है। सितम्बर 2017 तक मेघालय के 40 फीसदी हिस्से में ये कानून लागू था। गृह मंत्रालय ने एक बयान जारी कर इसकी जानकारी दी।
गृह मंत्रालय ने कहा कि राज्य में सुरक्षा स्थिति में उल्लेखनीय सुधार देखते हुए यह फैसला लिया गया है। अरुणाचल प्रदेश के 16 थाना क्षेत्रों में से केवल आठ में ही अफस्पा लागू रहेगा। ये आठ थाना क्षेत्र अस म से सटे हैं।जम्मू एवं कश्मीर के साथ ही उत्तरपूर्व के विभिन्न संगठन कानून में संशोधन की मांग कर रहे थे। संगठनों का कहना है कि इसके तहत सुरक्षा बलों को नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई करने के असीमित अधिकार दिए गए हैं।
नगालैंड में कई दशक पहले से ही अफस्पा लागू है। असम में 1990 के दशक के शुरू में इसे लागू किया गया। तीन अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में नगा उग्रवादी समूह एनएससीएन-आइएम महासचिव थुइंगलेंग मुइवा और सरकार के वार्ताकार आरएन रवि के बीच समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भी नगालैंड से अफस्पा नहीं हटाया गया है।
सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम के तहत सुरक्षा बलों को जम्मू एवं कश्मीर और पूर्वोत्तर के विवादित इलाकों में विशेष अधिकार प्रदान किया गया है। इस कानून की धारा चार के तहत सुरक्षा बलों को किसी भी परिसर की तलाशी लेने और बिना वारंट किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार है। विवादित इलाकों में सुरक्षा बल किसी भी स्तर तक शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं। संदेह होने की स्थिति उन्हें किसी भी गाड़ी को रोकने, उसकी तलाशी लेने और उसे कब्जा में लेने का अधिकार होता है।
क्या है अफस्पा?
अफस्पा को 1 सितंबर 1958 को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड सहित भारत के उत्तर-पूर्व में लागू किया गया था, इन राज्यों के समूह को सात बहनों के नाम से जाना जाता है। इसे भारतीय संघ से अलग पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा रोकने के लिए लागू किया गया था। विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच मतभेद या विवादों के कारण राज्य या केंद्र सरकार किसी क्षेत्र को “डिस्टर्ब” घोषित करती है।
इस कानून के अंतर्गत सशस्त्र बलों को तलाशी लेने, गिरफ्तार करने व बल प्रयोग करने आदि में सामान्य प्रक्रिया के मुकाबले अधिक स्वतंत्रता है तथा नागरिक संस्थाओं के प्रति जवाबदेही भी कम है। अफ्सपा कानून के तहत सेना के जवानों को किसी भी व्यक्ति की तलाशी केवल संदेह के आधार पर लेने का पूरा अधिकार प्राप्त है।
अफस्पा के तहत आने वाले राज्य
मई 2015 में, त्रिपुरा में कानून व्यवस्था की स्थिति की संपूर्ण समीक्षा के बाद, 18 सालों के बाद अंत में अफस्पा को इस राज्य से हटा दिया गया था, लेकिन पूर्वोत्तर के असम, नगालैंड, मणिपुर (नगरपालिका क्षेत्र इंफाल को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश (केवल तिरप, चंगलांग और लोंगडींग जिले और असम की सीमा के 20 किलोमीटर की बेल्ट तक), मेघालय (असम की सीमा से 20 किलोमीटर की बेल्ट तक सीमित) राज्यों में यह कानून लागू है।
इरोम ने किया 16 साल तक संघर्ष
इस कानून का विरोध करने वालों में मणिपुर की कार्यकर्ता इरोम शर्मिला का नाम प्रमुख है, जो इस कानून के खिलाफ 16 वर्षों से उपवास पर थी। उनके विरोध की शुरुआत सुरक्षा बलों की कार्यवाही में कुछ निर्दोष लोगों के मारे जाने की घटना से हुई। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग के कमिश्नर नवीनतम पिल्लई ने 23 मार्च 2009 को इस कानून के खिलाफ जबरदस्त आवाज उठायी थी और इसे पूरी तरह से बंद कर देने की मांग की थी।