राम जन्मभूमि विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने दी एक और तारीख, 5 दिसंबर 2017
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की अगली सुनवाई अब पांच दिसंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कहा कि पहले आठ भाषाओं में मौजूद संबंधित कागजातों का अंग्रेजी में अनुवाद होना चाहिए। इसके लिए तीन महीने का समय शीर्ष अदालत ने दिया है। इस मामले में सबसे पहले सिविल सूट की अर्जियों पर सुनवाई होगी। इससे पहले करीब 20 याचिकाओं पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले से जुड़े पक्षकारों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।
जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ करीब डेढ घंटे की गहन मंत्रणा के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई शुरू करने के बारे में सहमति पर पहुंची। कोर्ट ने इस मामले के सभी पक्षों से कहा कि इसमें शामिल दस्तावेज, जिनपर वे निर्भर करेंगे, का 12 सप्ताह के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद करायें क्योंकि ये आठ अलग-अलग भाषाओं में हैं।
इसके अलावा, पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वह इस मालिकाना हक के वाद के निर्णय के लिये हाईकोर्ट में दर्ज साक्ष्यों का दस सप्ताह के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद करायें। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन हिस्सों में विभक्त करके इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बांटने की व्यवस्था दी थी।
शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सभी पक्षों को कोर्ट द्वारा निर्धारित समय सीमा का पालन करना होगा और किसी भी परिस्थिति में स्थगन नहीं दिया जायेगा। राम लला की ओर से वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन और उप्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले की शीघ्र सुनवाई करने पर जोर दिया, जबकि दूसरे पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अनूप जार्ज चौधरी और राजीव धवन अगले साल जनवरी से पहले इस पर सुनवाई शुरू करने के पक्ष में नहीं थे।
उधर, शिया बोर्ड ने नई याचिका दाखिल कर ढहाए गए विवादित ढांचे को शिया वक्फ का बताया है। उसने बाबरी ढांचे को शिया वक्फ घोषित करने से इन्कार करने के फैजाबाद जिला अदालत के 1946 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी है। ये याचिका भी शुक्रवार को सुनवाई पर लगी थी। याचिका में कहा गया है कि उसका वाद खारिज करने का जिला अदालत का आदेश गलत है।