नहीं रहे बेगूसराय के सांसद भोला बाबू : वामपंथ से दक्षिण पंथ तक के सफर का हुआ अवसान
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : बेगूसराय से भाजपा सांसद और वामपंथ से दक्षिण पंथ तक की राजनीति के कद्दावर राजनेता डॉ. भोला सिंह का शुक्रवार शाम को दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 79 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। भोला सिंह बिहार की राजनीति का एक जाना-पहचाना चेहरा थे। उनका जन्म बेगूसराय जिला स्थित गढ़पुरा के दूनही गांव में 3 जनवरी 1939 को हुआ था।
भोला सिंह के निधन की खबर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़े नेताओं ने शोक जताया है। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, बेगूसराय से सांसद भोला सिंह जी के निधन की खबर से दुखी हूं। उन्हें समाज के लिए किए गए उनके कार्यों की वजह से याद किया जाएगा। दुख की इस घड़ी में मेरी उनके परिवार और समर्थकों के प्रति गहरी संवेदना है। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भोला सिंह के निधन पर दुख जताते हुए कहा कि उनकी मृत्यु बिहार के लिए बड़ी क्षति है। सिंह सामाजिक कार्य में सक्रियता से भाग लेते थे और उनके जाने से इस क्षेत्र को बड़ा नुकसान हुआ है।
समाज और देश को पार्टी हित से ऊपर मानते थे
भोला सिंह के बारें में यह बात सबको पता है कि उनकी जो सोच थी और जब वह बोलते थे तो यह भूल जाते थे कि वह भाजपा के सांसद हैं या वह किसी पार्टी से जुड़े हैं। उनकी सोच में समाज और देश पहले होता था। पिछले साल एक कार्यक्रम के दौरान भोला सिंह ने जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार की तुलना क्रांतिकारी भगत सिंह से की थी। उनके बयान की भाजपा और मोदी सरकार के भीतर काफी आलोचना भी हुई थी। हालांकि, वह अपने बयान पर अड़े रहे। लोकसभा में उन्होंने पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी योजना स्मार्ट सिटी पर भी सवाल उठाए थे। भोला सिंह ने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में तब कहा था कि स्मार्ट सिटी परियोजना से पहले से विकसित शहरों का ही विकास होगा। इससे पिछड़े शहरों और अति विकसित शहरों के बीच की खाई बढ़ेगी और विषमताओं के पहाड़ खड़े होंगे।
भोला बाबू ने सभी राजनीतिक दलों को आजमाया
भोला सिंह बिहार की राजनीति का एक जाना-पहचाना चेहरा थे। उनका जन्म बेगूसराय जिला स्थित गढ़पुरा के दूनही गांव में 3 जनवरी 1939 को हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से एमए और डॉक्ट्रेट की उपाधि हासिल करने वाले भोला बाबू बिहार सरकार में मंत्री रहने के अलावा बेगूसराय से 8 बार विधायक रहे। इस दौरान उन्होंने बारी-बारी से बिहार की सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में खुद को ढालने की कोशिश की लेकिन कहीं टिके नहीं। 1967 में वह पहली बार बेगूसराय सीट से वामदलों के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधायक चुने गए थे। पहला चुनाव जीतने से पहले वह इतिहास के प्रोफेसर थे। 1972 में सीपीआई के चुनाव चिह्न पर वह दूसरी बार विधायक चुने गए। उसके बाद 1977 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए। 1988-89 में बिहार सरकार में वह शिक्षा मंत्री रहे। 2003-2005 के बीच बिहार विधानसभा में डिप्टी स्पीकर के पद को भी उन्होंने सुशोभित किया। 2008-2009 में बिहार के शहरी विकास मंत्री के पद पर रहे। उन्होंने चंद्रशेखर सिंह के कैबिनेट में राज्यमंत्री के रूप में अपनी सेवा दी। 1990 और 1995 में वह लालू की पार्टी आरजेडी के टिकट पर जीते। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। 2009 में नवादा लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद चुने गए और 2014 में बेगूसराय सीट से दोबारा भाजपा सांसद बनकर संसद पहुंचे थे।