नोटबंदी के खिलाफ संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पर भाजपा सांसदों ने लगाया अड़ंगा
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : संसद की एक स्थायी समिति में शामिल भाजपा सांसदों ने नोटबंदी पर विवादित मसौदा रिपोर्ट को स्वीकार करने से मना कर दिया है। यह रिपोर्ट मोदी सरकार के नोटंबदी के निर्णय के लिहाज से काफी अहम है। इस समिति में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल हैं। वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली वित्त पर संसद की स्थायी समिति की मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी का निर्णय व्यापक प्रभाव वाला था। इससे नकदी की कमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कम-से-कम एक प्रतिशत की कमी आई और असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने मसौदा रिपोर्ट का विरोध किया और इसको लेकर मोइली को असहमति का पत्र दिया, जिसका समिति में शामिल भाजपा के सभी सांसदों ने समर्थन किया. इस समिति में कुल 31 सदस्य हैं और इसमें भाजपा सदस्य बहुमत में हैं. दुबे ने कहा, नोटबंदी सबसे बड़ा सुधार है। प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम का राष्ट्र हित में देश के सभी नागरिकों ने समर्थन किया। इस पत्र में कहा गया है कि इस निर्णय से काला धन पर लगाम लगा और मुद्रास्फीति परिदृश्य बेहतर हुई. दुबे के इस पत्र पर भाजपा के 11 अन्य सांसदों ने हस्ताक्षर किया है।
समिति में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता हैं जिसमें दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शामिल हैं। चूंकि समिति में बहुसंख्यक सदस्य भाजपा के हैं, इसलिए समिति मसौदा रिपोर्ट स्वीकार नहीं कर सकी. नोटबंदी को लेकर मसौदा रिपोर्ट की भाषा काफी आलोचनात्मक है और मांग की गई है कि सरकार नोटबंदी के लक्ष्य और उसके आर्थिक प्रभाव को लेकर एक अध्ययन कराए। समिति करीब दो साल से नोटबंदी की समीक्षा कर रही है. इस संदर्भ में उसने वित्त मंत्रालय और आरबीआई के गवर्नर को भी स्पष्टीकरण के लिए बुलाया. सरकार ने आठ नवंबर 2016 को 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से हटाने का फैसला किया था।
सरकार का कहना था कि इस पहल का मकसद कालधन पर अंकुश लगाना था। बता दें कि नोटबंदी को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आलोचनाओं के घेरे में है. भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि नोटबंदी का निर्णय बिना सोचे समझे लिया गया है।