सरकार ने पलटा सुप्रीम कोर्ट का आदेश, SC/ST कानून के मूल प्रावधानों को बहाल करने संबंधी विधेयक को दी मंजूरी
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) कानून के मूल प्रावधानों को बहाल करने संबंधी विधेयक को मंजूरी दे दी है। यह विधेयक किसी भी अदालती आदेश से प्रभावित हुए बिना एससी/एसटी के खिलाफ अत्याचार के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत के किसी भी प्रावधान को खारिज करता है। इसमें यह भी व्यवस्था है कि आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए कोई प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है। साथ ही इस कानून के तहत गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार की मंजूरी की जरूरत नहीं है।
दलित संगठन सरकार से सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के फैसले को पलटने की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि समाज के कमजोर तबके पर अत्याचार के खिलाफ इस कानून में आरोपी की गिरफ्तारी पर अतिरिक्त बचाव ने इस कानून को कमजोर और शक्तिहीन बना दिया है। भाजपा तथा राजग के सहयोगी दलों के अनेक दलित नेताओं ने भी उच्चतम न्यायालय के आदेश को पलटने के लिए जरूरी कदम उठाने की मांग का समर्थन किया था। लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष राम विलास पासवान ने विधेयक को ऐतिहासिक करार देते हुए संवाददाताओं से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में संशोधित विधेयक को मंजूरी दी गई और इसे संसद के इसी सत्र में पेश किए जाने की संभावना है।
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार रोकथाम अधिनियम में संशोधन करने वाले विधेयक को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी और इसे संसद के इसी सत्र में विचार एवं स्वीकृति के लिए पेश किया जाएगा। लोकसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि इस महत्वपूर्ण मामले में अध्यादेश का रास्ता क्यों नहीं अपनाया गया, जबकि सरकार कई अन्य विधेयकों में छह अध्यादेश ला चुकी है।
राजनाथ ने गुरुवार को लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान कहा, मुझे नहीं पता कि अब क्यों सदस्य यह मुद्दा उठा रहे हैं। मुझे लगता है कि वे जागरूक हैं और उन्हें पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार रोकथाम संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि पूरा देश जानता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश से एससी/एसटी अधिनियम को हल्का कर दिया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि अधिनियम के दायरे में आने वाले लोगों के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए एससी/एसटी अधिनियम के तहत भी किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले उसके खिलाफ प्रारंभिक जांच की आवश्यकता है।
गृह मंत्री ने कहा, प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगर अधिनियम को किसी तरह से हल्का किया जाता है तो हम विधेयक लाएंगे। इसमें किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं है, उन्होंने (मोदी) यह वादा किया था। राजनाथ ने कहा, हम संसद के इसी सत्र में विधेयक को पेश करेंगे ताकि कानून बनाया जा सके। लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान मुद्दा उठाते हुए खड़गे ने कहा, चार महीने बीत चुके हैं लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करने के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश एससी/एसटी अधिनियम को हल्का करता है। वे छह अध्यादेश ला चुके हैं लेकिन इस महत्वपूर्ण मामले में क्यों अध्यादेश नहीं लाया गया।
खड़गे ने कहा, देश में एससी/एसटी के साथ अत्याचार के मामले बढ़ रहे हैं। कल विधेयक लाएं और हम उसे पारित करेंगे। उन्होंने कहा, सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करने के लिए कुछ भी नहीं किया है। आप प्रत्येक छोटे मुद्दों के लिए अध्यादेश ला सकते हैं तो इस मुद्दे के लिए अध्यादेश क्यों नहीं। गृह मंत्री की यह टिप्पणी एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधान को बहाल करने के फैसले के एक दिन बाद आई है। इस फैसले से आरोपी व्यक्ति को बिना प्रारंभिक जांच या प्रारंभिक मंजूरी के गिरफ्तार किया जा सकेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने इसी प्रावधान पर आपत्ति जताई थी।