मोदी की नई राज-नीति : क्रीम लेयर की सीमा बढ़ाने के साथ OBC कोटे में कोटा देने की तैयारी
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : अगले साल कई राज्यों में विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने फैसला किया है कि केन्द्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी के भीतर अलग-अलग जातियों को आरक्षण देने के लिए अब हर जाति का कोटा तय किया जाएगा। यानी पिछड़ा वर्ग के लिए जो आरक्षण है उसमें अब आरक्षण के भीतर आरक्षण की व्यवस्था होगी। इसके साथ ही ओबीसी क्रीमी लेयर की सीमा भी 2 लाख रुपये तक बढ़ाने का फैसला कैबिनेट ने लिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत अन्य पिछड़ा वर्गों के उप-वर्गीकरण के मुद्दे पर विचार के लिए एक आयोग गठित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। यह आयोग अपने अध्यक्ष की नियुक्ति की तिथि से 12 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। इस आयोग को अन्य पिछड़ा वर्गों के उप वर्गीकरण पर विचार करने वाले आयोग के नाम से जाना जाएगा।
आयोग की सेवा शर्तों में कहा गया है कि यह ओबीसी की व्यापक श्रेणी समेत जातियों और समुदायों के बीच आरक्षण के लाभ के असमान वितरण के बिन्दुओं पर विचार करता है जो ओबीसी को केंद्र सूची में शामिल करने के संदर्भ में होगा। आयोग को ऐसे अन्य पिछड़ा वर्ग के उप वर्गीकरण के लिए वैज्ञानिक तरीके वाला तंत्र, प्रक्रिया, मानदंड और मानक का खाका तैयार करने के साथ केंद्र सूची में दर्ज ओबीसी के समतुल्य संबंधित जातियों, समुदायों, उप जातियों की पहचान करने की पहल करनी है और उन्हें संबंधित उप श्रेणियों में वर्गीकृत करना है।
दरअसल, मोदी सरकार की मंशा बिहार, झारखंड सहित 11 राज्यों की तर्ज पर पिछड़ी जातियों और अति पिछड़ी जातियों की उप श्रेणियां बनाने की हैं। इसके बाद केंद्र सरकार की नौकरियों में भी आरक्षण का लाभ उठाने से वंचित कुछ जातियों को सीधा लाभ होगा। एक और फैसले में मोदी कैबिनेट ने आरक्षण का लाभ पाने के लिए क्रीमी लेयर की आमदनी का दायरा 6 लाख से बढ़ाकर 8 लाख सालाना कर दिया है। यानी जिन परिवारों की सालाना आमदनी 8 लाख रुपए तक है वह क्रीमी लेयर के भीतर नहीं आएंगे और उन्हें आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा। कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि ओबीसी के आरक्षण का फायदा इसके भीतर आने वाली सभी जातियों को बराबरी से मिल सके।
पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का फैसला कर चुकी मोदी सरकार ने अब ओबीसी कोर्ट के अंदर कोटे की व्यवस्था कर पिछड़ी जातियों में शुमार उन जातियों को राहत देने की तैयारी की है, जिन्हें आरक्षण का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। अब मंत्रिमंडल ने सिफारिशों के अनुरूप नई व्यवस्था के लिए आयोग गठित करने का फैसला किया है। यूपीए सरकार के दौरान वर्ष 2013 में इसकी समीक्षा की गई थी मगर कोई फैसला नहीं लिया गया था।
गौरतलब है कि नब्बे के दशक में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद से ही ओबीसी आरक्षण व्यवस्था की सिफारिश की मांग उठती रही है। जेटली ने बताया कि यूपीए शासनकाल के दौरान वर्ष 2011 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने ओबीसी में उप-श्रेणियां बनाने की सिफारिश की थी। उसके बाद वर्ष 2012-13 में संसद की स्थाई समिति ने भी इसी आशय की सिफारिश की थी।
ओबीसी में उपश्रेणियां बनाने की पहल सबसे पहले 70 के दशक में बिहार में कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने की थी। उस दौरान ओबीसी कोटे में कोटा देने के लिए अनुसूची एक और अनुसूची दो की व्यवस्था की गई थी। इसके तहत ओबीसी को पिछड़ी जाति और अत्यंत पिछड़ी जाति (ईबीसी) के रूप में बांटा गया।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम भारत सरकार मामले में 16 नवंबर 1992 को अपने आदेश में व्यवस्था दी थी कि पिछड़े वर्गों को पिछड़ा या अति पिछड़ा के रूप में श्रेणीबद्ध करने में कोई संवैधानिक या कानून रोक नहीं है, अगर कोई सरकार ऐसा करना चाहती है। देश के नौ राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुडुचेरी, कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में पहले ही अन्य पिछड़ा वर्ग का उप वर्गीकरण किया जा चुका है। ऐसी व्यवस्था लागू करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश शामिल नहीं है।
बहरहाल, क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ाने के अलावा उपश्रेणियां बनाने के लिए आयोग गठन के फैसले को मोदी सरकार का दोहरा सियासी दांव माना जा रहा है। दरअसल मिशन 2019 के लिए भाजपा और मोदी सरकार की पहले से ही पिछड़ी जातियों में पैठ बढ़ाने पर नजर है। सरकार और पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इस दांव से ओबीसी में आरक्षण का पूरा लाभ लेने से वंचित जातियां पार्टी के पक्ष में खड़ी होगी।