कावेरी विवाद: बेंगलुरू की जरूरतों को पूरा करने के लिए SC ने तमिलनाडु के हिस्से में की कटौती, कर्नाटक ने किया स्वागत
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: 122 साल पुराने कावेरी जल विवाद पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला कहीं खुशी तो कहीं गम लेकर आया। कोर्ट के आदेश से जहां कर्नाटक ने राहत की सांस ली वहीं तमिलनाडु का किसान निराश दिखा। ताजा फैसले में बेंगलुरु की पानी संबंधी जरूरतों को समझते हुए कोर्ट ने तमिलनाडु के हिस्से में कटौती की। एक तरफ इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेश सरकार इसे बड़ी जीत के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है वहीं तमिलनाडु में मुख्य विपक्षी पार्टी डीएमके ने इसे वर्तमान सरकार की कमजोरी के कारण मिला झटका करार दिया है।
कोर्ट ने कर्नाटक को आदेश दिया कि वह अपने बिलिगुंडलू डैम से तमिलनाडु के लिए 177.25 टीएमसी (थाउजेंट मिलियन क्यूबिक) फीट पानी छोड़े। 2007 में कावेरी ट्रिब्यूनल के अवॉर्ड में 192 टीएमसी फीट पानी छोड़ने का ऑर्डर दिया गया था। कोर्ट ने इसमें 14.75 टीएमसी फीट कटौती कर दी। यह विवाद तमिलनाडु-कर्नाटक और केरल के बीच था। तीनों राज्यों ने ट्रिब्यूनल के अवॉर्ड को फरवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अदालत ने पिछले साल 20 सितंबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। कर्नाटक और तमिलनाडु एक-दूसरे को कम पानी देना चाहते थे, जिससे अपनी जरूरतें पूरी कर सकें।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि कर्नाटक को अब 284.75 टीएमसी फीट पानी मिलेगा। केरल को 30 टीएमसी फीट और पुड्डूचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी मिलता रहेगा। उसमें कोई बदलाव नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के कावेरी बेसिन में जमीन के नीचे मौजूद 20 टीएमसी फीट पानी में से 10 टीएमसी फीट पानी इस्तेमाल करने की भी इजाजात दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा बेंगलुरु में ग्राउंड वॉटर के लिए 10 टीएमसी फीट और शहर के लोगों के पीने के लिए 4.75 टीएमसी फीट पानी की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि पीने के पानी को सबसे ऊंचे लेवल पर रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि उसका यह फैसला 15 साल के लिए लागू रहेगा।
कावेरी नदी कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में बहती है। समुद्र में मिलने से पहले ये पांडिचेरी के कराइकल से भी गुजरती है। 800 किलोमीटर लंबी कावेरी नदी पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी पर्वत से निकलती है। यह इलाका कर्नाटक के कुर्ग क्षेत्र में आता है।
फैसले के बाद तमिलनाडु में प्रदर्शन
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद तमिलनाडु में प्रदर्शन शुरू हो गया है। लोग सड़कों पर आकर इस फैसले का विरोध कर रहें हैं। जहां एक तरफ कर्नाटक में जश्न का माहौल दिखा वहीं तमिलनाडु के हिस्से के कम होने की खबर के साथ ही यहां तंजौर और थिरूवर जिले में लोग प्रदर्शन करने लगे। AIADMK के राज्यसभा सांसद नवनीतकृष्णन ने कहा कि ये फैसला तमिलनाडु के लिए बहुत बड़ा झटका है। आगे की कार्रवाई आदेश को पढ़ने के बाद तय की जाएगी। दूसरी ओर डीएमके नेता एम स्टालिन ने मुख्यमंत्री पलानीसामी से तुरंत सर्वदलीय बैठक बुलाने की अपील की जिसमें किसान संगठनों के नेताओं से भी इस विषय पर विमर्श की राय दी। स्टालिन ने कहा- ये डीएमके नेता करुनानिधि के कठिन परिश्रम के बाद हासिल किए गई सफलता को इस सरकार ने यूं ही गवां दिया। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर सरकार अपने पक्ष को रखने में नाकाम रही।
डीएमके वरिष्ठ नेता एस दुरैमुर्गन ने कहा, 'हम अचंभित हैं। पानी में कमी राज्य के साथ अन्याय है। एआईएडीएमके सरकार सुप्रीम कोर्ट में ठीक तरीके से अपना पक्ष रखने में असमर्थ रही।' कांग्रेस ने भी कहा है कि इस फैसले से असंतोष बढ़ेगा। उधर, भाजपा ने इस फैसले के लिए डीएमके और एआईएडीएमके को जिम्मेदार ठहराया है।
क्या है विवाद?
कावेरी नदी में चारों राज्यों की नदी-तालाबों से भी पानी डाला जाता है। जानकारों के मुताबिक, इसका 740 टीएमसी फीट पानी इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होता है। कर्नाटक 462 टीएमसी फीट पानी डालता है। उसमें से उसे 270 टीएमसी फीट पानी इस्तेमाल करने की इजाजत थी। तमिलनाडु 227 टीएमसी फीट पानी डालता है। उसे 419 टीएमसी फीट इस्तेमाल करने की इजाजत थी। केरल 51 टीएमसी फीट पानी डालता है। उसे 30 टीएमसी फीट पानी मिलता था। 14 टीएमसी फीट पानी पर्यावरण के लिए छोड़ना पड़ाता है। इसके मुताबिक, कर्नाटक नदी में सबसे ज्यादा पानी डालकर भी उससे कम पानी पा रहा था। ट्रिब्यूनल के फैसले के मुताबिक, उसे अपना 192 टीएमसी फीट पानी तमिलनाडु को देना था। इसका वह विरोध करता था।
कब शुरू हुआ विवाद?
मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच यह विवाद 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत थी। 1924 में इन दोनों के बीच एक समझौता हुआ, लेकिन बाद में इस विवाद में केरल और पांडिचेरी भी शामिल हो गए। 1976 में चारों राज्यों के बीच समझौता हुआ। लेकिन इसका पालन नहीं किया गया।