सीबीआई में घमासान; छुट्टी पर भेजे गए निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के दो वरिष्ठतम अधिकारियों- आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया गया है। इस कार्रवाई के बाद सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के नई दिल्ली स्थित सीबीआई मुख्यालय के दफ़्तरों को भी सील कर दिया गया है।
सीबीआई के संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को तत्काल प्रभाव से सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त किया गया है। अगले आदेश तक सीबीआई की कमान नागेश्वर राव के हाथ में ही होगी। हालांकि आलोक वर्मा ने छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार भी हो गया है। आगामी शुक्रवार यानी 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई करेगा। आलोक वर्मा के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि केंद्र सरकार ने बुधवार सुबह आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया जो कई संवेदनशील मामलों की जांच कर रहे थे।
मालूम हो कि हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में मीट कारोबारी मोईन क़ुरैशी को क्लीन चिट देने में कथित तौर पर घूस लेने के आरोप में सीबीआई ने बीते दिनों अपने ही विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कराई है और सीबीआई ने अपने ही दफ़्तर में छापा मारकर अपने ही डीएसपी देवेंद्र कुमार को गिरफ्तार किया है। डीएसपी देवेंद्र कुमार को सात दिन की हिरासत में भेज दिया गया हैं। देवेंद्र ने अपनी गिरफ़्तारी को हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
दूसरी ओर दिल्ली हाईकोर्ट ने 29 अक्टूबर तक राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया। 29 अक्टूबर को मामले की सुनवाई होगी जहां पर सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को अस्थाना के खिलाफ लगे आरोपों का जवाब देना होगा। अस्थाना पर आरोप है कि उन्होंने मीट कारोबारी मोईन कुरैशी भ्रष्टाचार मामले में हैदराबाद के एक व्यापारी से दो बिचौलियों के जरिये पांच करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी है। सीबीआई का आरोप है कि लगभग तीन करोड़ रुपये पहले ही बिचौलिये के जरिये अस्थाना को दिए जा चुके हैं।
इसके बाद राकेश अस्थाना ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर भी दो करोड़ रुपये का घूस लेने का आरोप लगाया था।
कहा जा रहा है कि सीबीआई के दोनों वरिष्ठतम अधिकारियों के बीचे मचे इस घमासान से जांच एजेंसी की विश्वसनीयता पर उठे सवालों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर यह कार्रवाई की गई है। दरअसल कार्मिक मंत्रालय के अधीन ही सीबीआई काम करती है और अभी इस मंत्रालय के प्रभारी नरेंद्र मोदी हैं। मालूम हो कि अस्थाना की सीबीआई में नियुक्ति विवादित रही है। इनकी नियुक्ति के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी लगाई गई है। ये भी आरोप है कि सीबीआई में अस्थाना की नियुक्ति बहुत ही जल्दबाज़ी में की गई थी। राकेश अस्थाना को केंद्र की मोदी सरकार का करीबी माना जाता है।
क्या मोदी सरकार का फैसला कानून सम्मत है?
सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजने को लेकर सवाल उठने लगे हैं। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने केंद्र की भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि राकेश अस्थाना को बचाने और राफेल सौदे की जांच से बचने के लिए मोदी सरकार ने ऐसा किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार सीबीआई निदेशक को इस तरह अचानक छुट्टी पर भेज सकती है? क्या कानून में ऐसी कोई प्रक्रिया दी गई है? वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि चूंकि निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर आरोप लगाए हैं। इसलिए निष्पक्ष जांच के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग की सलाह पर दोनों को छुट्टी पर भेजा गया है। हालांकि दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 की धारा 4अ(1) के तहत सीबीआई निदेशक को उस चयन समिति की सहमति के बिना नहीं हटाया जा सकता है जिसने निदेशक की नियुक्ति की सिफारिश की थी। इस चयन समिति में प्रधानमंत्री, संसद में विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होते हैं। कानून के मुताबिक सीबीआई निदेशक का तबादला भी बिना चयन समिति की सहमति के नहीं किया जा सकता है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर सीवीसी की सिफारिश को चयन समिति के सामने क्यों नहीं रखा गया और क्यों सरकार ने आनन-फानन में आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया। केंद्र सरकार अपने बचाव में ये तर्क दे रही है कि सीवीसी की सलाह पर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा गया है। हालांकि डीएसपीई अधिनियम, 1946 की धारा 4(1) के तहत सीवीसी उसी स्थिति में सीबीआई पर अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है जब भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया हो। लेकिन हकीकत ये है कि आलोक वर्मा के खिलाफ इस अधिनियम के तहत कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है।
कौन हैं सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा
आलोक वर्मा 1979 बैच के एजीएमयूटी (अरुणाचल, गोवा, मिजोरम, केंद्र शासित प्रदेश) कैडर के अधिकारी हैं। सीबीआई निदेशक का पद संभालने से पहले आलोक वर्मा दिल्ली पुलिस के कमिश्नर, दिल्ली कारागार निदेशक, मिजोरम और पुदुचेरी के डीजीपी जैसे पदों पर रह चुके थे। वर्मा सीबीआई के एकमात्र ऐसे निदेशक हैं जो एजेंसी के अंदर काम किए बगैर सीधे नियुक्त किए गए थे। वर्मा को 17 जनवरी 2017 को सीबीआई निदेशक नियुक्त किया गया था। आलोक वर्मा की नियुक्ति के लिए जो समिति बनाई गई थी उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्ष के नेता मल्लिकाअर्जुन खड्गे और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर थे। ध्यान देने वाली बात ये है कि खड्गे वर्मा की नियुक्ति को लेकर सहमत नहीं थे और उन्होंने मीटिंग में विरोध पत्र (डिसेंट नोट) भी दिया था।
सीबीआई निदेशक को हटाने या तबादले के नियम
दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा 4बी के तहत सीबीआई निदेशक कार्यकाल दो साल के लिए होता है। इससे पहले निदेशक को हटाया नहीं जा सकता है। अधिनियम के मुताबिक, निदेशक, सेवा की शर्तों से संबंधित नियमों के विपरीत किसी भी चीज के बावजूद, उस पद से दो साल के लिए रहेगा जिस तारीख से वह पदभार ग्रहण करता है। इसके अलावा धारा 4बी(2) के तहत सीबीआई निदेशक का तबादला भी इतनी आसानी से नहीं किया जा सकता है। अगर निदेशक का तबादला करना है तो उस कमेटी से सहमति लेनी होगी जिसने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए नाम की सिफारिश की थी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में विनीत नारायण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में कहा था कि सीबीआई निदेशक, उसकी वरिष्ठता की तारीख के बावजूद, का कार्यकाल कम से कम दो साल का होगा. इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी मामलों में उपयुक्त एक अधिकारी को केवल इस आधार पर अनदेखा नहीं किया जा सकेगा क्योंकि उसकी नियुक्ति की तारीख की वजह से दो साल से कम समय तक ही काम कर पाएगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेहद जरुरी स्थिति में अगर सीबीआई निदेशक का तबादला करना है तो उसमें चयन समिति की सहमति होनी चाहिए।
क्या है मौजूदा मामला?
इस मामले की शुरुआत साल 2017 से होती है जब मोदी सरकार ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की सिफारिश के बावजूद कुछ आईपीएस अधिकारियों की नियुक्ति सीबीआई में नहीं की। अक्टूबर 2017 में राकेश अस्थाना की नियुक्ति को लेकर सीवीसी के साथ हुई बैठक में सीबीआई निदेशक वर्मा ने एक गोपनीय पत्र दिया था। कथित रूप से उस पत्र में स्टर्लिंग बायोटेक मामले को लेकर अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत थी। आरोप है कि कंपनी के परिसर में पाई गई एक डायरी के मुताबिक अस्थाना को कंपनी द्वारा 3.88 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। स्टर्लिंग बायोटेक पर 5,000 करोड़ रुपये से ऊपर के लोन की हेराफेरी की जांच चल रही है। इस साल जून में सीबीआई निदेशक वर्मा ने एक बार फिर अस्थाना पर निशाना साधा। निदेशक ने सीवीसी को लिखा कि उनकी अनुपस्थिति में राकेश अस्थाना सीवीसी मीटिंग में सीबीआई नियुक्ति के दौरान उनका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। वर्मा ने कहा कि अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को लेकर जांच चल रही है। हालांकि अस्थाना ने भी निदेशक पर पलटवार किया। अस्थाना ने कैबिनेट सचिव को अगस्त में पत्र लिखा कि आलोक वर्मा उनकी जांच में हस्तक्षेप कर रहे हैं और आईआरसीटीसी घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ छापेमारी रोकने की कोशिश की। इस मामले के दो महीने के अंदर ही वर्मा ने अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज कराया।