हाईकोर्ट के फैसले के 12 साल बाद CBI को अचानक बोफोर्स की आई याद, सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : बहुचर्चित बोफोर्स तोप घोटाले में 12 साल बाद सीबीआई अचानक जाग गई है। सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ सारे आरोप निरस्त करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। 64 करोड़ रुपए का यह मामला राजनीतिक दृष्टि से काफी संवेदनशील है। सीबीआई ने शुक्रवार को हाईकोर्ट के 31 मई 2005 के फैसले के खिलाफ अपील दायर की।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यूरोप में रह रहे उद्योगपति हिन्दुजा बंधुओं और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ सारे आरोप निरस्त कर दिए थे। सीबीआई द्वारा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देना काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। खास बात यह है कि हाल ही में अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने 12 साल बाद अपील दायर नहीं करने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा था कि सीबीआई को बोफोर्स मामले में स्पेशल लीव पिटिशन फाइल नहीं करनी चाहिए। उन्होंने इसके पीछे तर्क दिया था कि यह मामला कई वर्षों से लंबित है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में इसे खारिज किया जा सकता है।
विचार-विमर्श के बाद विधि अधिकारी अपील दायर करने के पक्ष में हो गए क्योंकि सीबीआई ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज और साक्ष्य उनके सामने रखे। नए तथ्य सामने आने के बाद सीबीआई ने विशेष अनुमति याचिका दायर की है। अटॉर्नी जनरल ने भी मौखिक तौर पर सीबीआई को अपील दायर करने की इजाजत दे दी। हालांकि सीबीआई को अपील दाखिल करने में हुई देरी के बारे में कोर्ट को संतुष्ट करना होगा।
गौरतलब है कि इससे पहले बोफोर्स मामले में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली एक अन्य याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए सहमति दे दी थी जिस पर सुनवाई चल रही है। भाजपा नेता अजय अग्रवाल ने अर्जी दाखिल कर हिंदुजा बंधुओं को हाईकोर्ट से आरोपमुक्त किए जाने के फैसले को चुनौती दी थी। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अजय अग्रवाल से पूछा था कि वह बताएं कि अर्जी पर सुनवाई क्यों हो। यह आपराधिक मामला है और अपील पीड़ित या करीबी ही दायर कर सकता है। याचिकाकर्ता बताए कि तीसरा पक्ष कैसे अपील दाखिल कर सकता है?