...ताकि जागें सरकारें इसलिए बदल डाला अंतिम संस्कार का तरीका
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: पिछले करीब एक महीने से तमिलनाडु के किसान जतंर मंतर पर डेरा डाले हैं। मांग एक की इन्हें इंसाफ मिले। कर्जा मिले, बदहाल व्यवस्था दुरुस्त हो। कई राजनीतिज्ञ इनसे मिल रहें हैं, आश्वासन दे रहें हैं। इनकी फिक्र तमिलनाडु हाईकोर्ट को भी है इसलिए कर्ज माफी का फरमान सरकार को सुना भी दिया है। इस बीच किसी ने ये नहीं सोचा कि अपनी बात हुक्मरानों तक पहुंचाने के लिए इन्होंने अपनी एक परम्परा को ही तिलांजलि दे दी। अंतिम संस्कार की रिवायत को ही बदल डाला। अपने स्वजनों का दाह संस्कार नहीं कर रहे बल्कि उनको दफना रहें हैं।
दरअसल, कावेरी बेसिन के सूखा-पीड़ित किसान पिछले तीन हफ्तों से इंसानी खोपड़ियों के साथ दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं। इनका दावा है कि ये खोपड़ियां उन किसानों की हैं जिन्होंने कर्ज के दुश्चक्र में फंस कर आत्महत्या कर ली या भूख ने जिनकी जान ले ली। एक नई प्रवृत्ति यह है कि यहां के लोग आत्महत्या करने वाले किसानों के शवों को जलाने के बजाय दफना रहे हैं ताकि भविष्य में उनके अवशेषों को दिखा सकें। धीरे-धीरे प्रदर्शनकारी किसानों के समर्थन में नेताओं की आवाजाही शुरू हुई और किसानों को राहत पैकेज देने की मांग जोर पकड़ने लगी है। इस बीच मद्रास हाइकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसानों के कर्ज माफ करने का आदेश दिया। इसके साथ ही अदालत ने सहकारी समितियों और बैंकों से कहा है कि वे बकाया वसूली करने से बचें।
100 की संख्या में विरोध प्रदर्शन करने वाले किसान हरी लुंगी पहन कर जंतर-मंतर में डेरा जमाए हुए हैं, वह कभी नरमुंड लेकर प्रदर्शन करते हैं, कभी मरे सांपों तो चूहों के साथ, तो कभी जमीन पर लोट-पोट होकर अपनी मांग सरकार के सामने रखते हैं। इन किसानों की मांग है कि केंद्र इन्हें 40 हजार करोड़ का सूखा राहत पैकेज दे और साथ में कर्जा भी माफ कर दिया जाए। जंतर मंतर में प्रदर्शन कर रहे इन किसानों का कहना है कि बैंकों और स्थानीय कर्जदाताओं के कर्जे से किसान तंग आ चुके हैं इसी वजह से कई किसानों ने कर्जा न चुका पाने की वजह से विवश होकर आत्महत्या भी कर ली है। रिपोर्ट्स हैं कि पिछले 4 महीनों में करीब 300 किसानों ने आत्महत्या की है।
तमिलनाडु में भारी सूखे की मार और कर्ज़ के बोझ के तले दबे करीब 100 किसान यहां भूख आंदोलन पर बैठे हैं। बताते हैं कि किसानों पर 50 हज़ार से पांच लाख तक का कर्ज़ है। महिलायें भी धरने पर हैं। जिनका दावा है कि बैंकों ने उनके जेवरों तक की नीलामी कर दी है। उनके पास पानी नहीं हैं, बीज नहीं है। कसम खा रहीं हैं कि जब तक केन्द्र से राहत नहीं मिलेगी अपने गांव नहीं लौटेंगी। किसानों को कष्ट इस बात है कि सरकार जब बड़े व्यापारिक घरानों के अरबों के कर्ज को माफ कर देती है तो इन किसानों को कर्जमुक्त क्यों नहीं करती। धरने पर बैठने की वजह से कई किसानों की तबियत भी बिगड़ रही है।
इस बीच हाईकोर्ट के फैसले से कुछ राहत महसूस कर रहें हैं। लेकिन अभी भी स्थिति को लेकर आश्वस्त नहीं है। फैसले से खुश तो हैं लेकिन इंतजार सरकार के रुख का है। इनके नेता अय्यकन्नु कहते हैं कि कोर्ट के ताजा फैसले का लाभ 4 लाख किसानों को मिलेगा। इनसे पहले करीब 16 लाख किसान प्रदेश सरकार द्वारा दी गई कर्जमाफी का लाभ उठा चुके हैं। लेकिन अभी लड़ाई खत्म नहीं हुई है क्योंकि किसानों को राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा कर्जमाफी का इंतजार है। उम्मीदें केन्द्र सरकार पर टिकी है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी तमिलनाडु के किसानों की लगातार हो रही मौतों पर चिंता जाहिर करते हुए तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया है। हाल ही में तमिलानाडु के नए सीएम ई पलानीसामी ने 2 हजार 247 करोड़ रुपए का सूखा राहत पैकेज देने की घोषणा की है। जिसको किसान नकाफी बता रहे हैं।
मौसम की मार ने मारा
नार्थ ईस्ट मानसून जिसका भारत के अन्य भाग में उतना महत्व नहीं माना जाता मगर तमिलनाडु में इसका खासा महत्व है। तमिलनाडु में इस बार अक्टूबर से दिसम्बर तक हुई बारिश 140 वर्षों के बाद सबसे कम रिकॉर्ड की गयी, पिछली बार इतनी कम वर्षा 1876 में रिकॉर्ड की गयी थी। तमिलनाडु के सभी 32 जिलों को आधिकारिक रूप से सूखा ग्रस्त घोषित कर दिया गया है। किसानों के एक संगठन के अनुसार अक्टूबर 2016 से अब तक 300 के करीब किसानों ने आत्महत्या की है यानि औसतन रोजाना दो किसान मौत को गले लगा रहे हैं। केवल कावेरी डेल्टा क्षेत्र में ही 80000 एकड़ में लगी फसलें बर्बाद हो गयी है।
ऐसा नहीं है कि तमिलनाडु में किसानों के ऐसे हालात इसी साल हुए हों, 2015 में भी तमिलनाडु में 600 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की थी। NCRB के आकड़ें बताते हैं कि 2011 से 2015 तक 5 वर्षों में तमिलनाडु में 2 हज़ार 728 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।