राफेल डील में PMO की दखलंदाजी का द हिंदू ने किया खुलासा, रक्षा मंत्रालय ने जताई थी आपत्ति
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : अंग्रेजी दैनिक द हिंदू ने इस बात का खुलासा कर घमासान मचा दिया है कि भारत और फ्रांस के बीच 7.87 अरब यूरो के विवादित राफेल सौदे को लेकर हुई बातचीत में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से समानांतर वार्ता का रक्षा मंत्रालय ने विरोध किया था। अखबार ने खुलासा किया है कि सौदे में पीएमओ ने फ्रांस सरकार से समानांतर बातचीत की थी। यह स्पष्ट करता है कि पीएमओ की ओर से इस तरह की समानांतर बातचीत ने इस सौदे पर रक्षा मंत्रालय और भारतीय वार्ताकार टीम की बातचीत को कमजोर किया।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 24 नवंबर, 2015 के रक्षा मंत्रालय के एक पत्र के जरिए इस घटनाक्रम को तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के संज्ञान में लाया गया था। इस पत्र में कहा गया, 'हमें पीएमओ को सलाह देनी चाहिए कि कोई भी अधिकारी जो इस सौदे के लिए भारत की ओर से वार्ताकार टीम का हिस्सा नहीं है, उसे फ्रांस सरकार के अधिकारियों के साथ समानांतर वार्ता से दूरी बनाए रखनी चाहिए। यदि रक्षा मंत्रालय की ओर से की जा रही बातचीत के नतीजों से पीएमओ संतुष्ट नहीं है तो एक उचित स्तर पर पीएमओ के नेतृत्व में नई वार्ता हो सकती है।' सुप्रीम कोर्ट में अक्टूबर 2018 में सरकार की ओर से दर्ज रिपोर्ट में कहा गया था कि सौदे को लेकर बातचीत डिप्टी चीफ ऑफ एयर स्टाफ के नेतृत्व में सात सदस्यीय टीम ने की थी। इस बातचीत में पीएमओ की ओर से किसी भी तरह की भूमिका का कोई उल्लेख नहीं था।
फिलहाल, उपलब्ध आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि रक्षा मंत्रालय ने राफेल सौदे में पीएमओ की दखलंदाजी का विरोध किया था। पीएमओ की ओर से लिए गए फैसले रक्षा मंत्रालय और वार्ताकार टीम द्वारा लिए गए फैसलों से अलग थे। तत्कालीन रक्षा सचिव जी. मोहन कुमार ने लिखा था, रक्षा मंत्री इस पर कृपया ध्यान दें। इस तरह की बातचीत से पीएमओ को बचना चाहिए क्योंकि यह हमारी वार्ता की गंभीरता को कम करता है। इस नोट को उप सचिव (एयर-2) एसके शर्मा ने तैयार किया था, जिसे खरीद प्रबंधक व संयुक्त सचिव (एयर) और खरीद प्रक्रिया के महानिदेशक दोनों ने ही समर्थन दिया था।
इस नोट में कहा गया, इस तरह की समानांतर बातचीत हमारे हितों के लिए हानिकारक हो सकती है क्योंकि फ्रांसीसी सरकार अपने फायदे के लिए इसका लाभ उठा सकती है और भारतीय वार्ताकार टीम की स्थिति को कमजोर कर सकती है। इस मामले में बिल्कुल ऐसा ही हुआ है। रक्षा मंत्रालय ने उदाहरण का उल्लेख करते हुए कहा कि जनरल रेब ने अपने पत्र में कहा था कि फ्रांस के कूटनीतिक सलाहकार और प्रधानमंत्री के संयुक्त सचिव के बीच जो बातचीत हुई है, उसमें तय हुआ कि कोई बैंक गारंटी नहीं दी जाएगी, लेटर ऑफ कंफर्ट ही काफी है। उसे कंपनी की तरफ से गारंटी के तौर पर माना जाए।
नोट में कहा गया कि यह रक्षा मंत्रालय के रुख से अलग था और भारत की वार्ताकार टीम की ओर से इससे वाकिफ कराया गया था कि किसी भी व्यावसायिक समझौते के लिए सरकारी या बैंक गारंटी होनी चाहिए। पीएमओ की ओर से इस समानांतर बातचीत का रक्षा मंत्रालय से एकदम जुदा रुख का एक और उदाहरण इस सौदे में मध्यस्थ व्यवस्था भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2015 में पेरिस में इस समझौते का ऐलान किया था। 26 जनवरी 2016 को जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि भारत आए थे तब इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।
रक्षा मंत्रालय के नोट के मुताबिक, पीएमओ की ओर से यह समानांतर बातचीत फ्रांस की वार्ताकार टीम के प्रमुख जनरल स्टीफन रेब के 23 अक्टूबर 2015 को लिखे पत्र से सामने आई। इस पत्र में पीएमओ में संयुक्त सचिव जावेद अशरफ और फ्रांस के रक्षा मंत्रालय में कूटनीतिक सलाहकार लुइस वेसी की टेलीफोन वार्ता का भी उल्लेख है। रक्षा मंत्रालय द्वारा जनरल रेब के पत्र को पीएमओ के संज्ञान में लाया गया। इस सौदे के लिए भारत की ओर से वार्ताकार टीम के प्रमुख एयर मार्शल एस.बी.पी. सिन्हा ने प्रधानमंत्री के संयुक्त सचिव अशरफ को भी पत्र लिखा।
अशरफ ने 11 नवंबर 2015 को एयर मार्शल सिन्हा को जवाब देते हुए पुष्टि की कि उन्होंने फ्रांस के रक्षा मंत्री के कूटनीतिक सलाहकार लुइस वेसी से बातचीत की थी। उन्होंने कहा कि लुइस वेसी ने फ्रांस के राष्ट्रपति कार्यालय की सलाह पर मुझसे बात की थी।
गौरतलब है कि ओलांद ने कहा था कि अरबों डॉलर के इस सौदे में भारत सरकार ने अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को डास्सो एविएशन का साझीदार बनाने का प्रस्ताव दिया था। ओलांद के हवाले से कहा गया था, भारत सरकार ने इस समूह का प्रस्ताव दिया था और दासो एविएशन ने (अनिल) अंबानी समूह के साथ बातचीत की। हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, हमने वह वार्ताकार लिया जो हमें दिया गया। यह पूछे जाने पर कि साझीदार के तौर पर किसने रिलायंस का चयन किया और क्यों? ओलांद ने कहा, इस संदर्भ में हमारी कोई भूमिका नहीं थी।
उच्च पदस्थ सूत्रों ने एक वेबसाइट को बताया था कि यह आधिकारिक रूप से सरकारी फाइलों में दर्ज है कि रक्षा मंत्रालय के राफेल करार की शर्तों को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) समझौता कर रहा था। रक्षा मंत्रालय 2015 के अंत तक सौदे के विभिन्न संवेदनशील पहलुओं पर चर्चा कर रहा था। रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकारी फाइलों (आंतरिक ज्ञापनों) में यह दर्ज है कि रक्षा मंत्रालय की टीम के राफेल समझौता शर्तों को लेकर पीएमओ समस्या पैदा कर रहा था। प्रक्रिया के अनुसार, रक्षा मंत्रालय की कॉन्ट्रैक्ट वार्ता समिति में ऐसे विशेषज्ञ होते हैं जो रक्षा उपकरणों की खरीद का पूरी तरह से स्वतंत्र मूल्यांकन करते हैं। इसके बाद समिति के निर्णय और आंकलन को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) को भेज दिया जाता है। लेकिन ताजा मीडिया रिपोर्ट से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि जिस सौदे को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय की थी, उसे पीएमओ ने पूरा किया। यह एक तरह से संविधान प्रदत्त दिशा-निर्देशों का सीधा उल्लंघन है।