इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक का दावा- 2013 में रूक सकता था पीएनबी घोटाला
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: पीएनबी महाघोटाले पर परत दर परत होते खुलासों के बीच इलाहाबद बैंक के पूर्व निदेशक दिनेश दूबे ने कुछ ऐसा कहा है जिससे सियासी तापमान में इजाफा होना तय है। उन्होंने कहा है कि ये घोटाला यूपीए सरकार से चला आ रहा है, और आज 10 से 50 गुना तक बढ़ गया है। उन्होंने दावा किया कि 2013 में ही उन्हें इस घोटाले की भनक लग गई थी और उन्होंने उच्चाधिकारियों को इसके बारे में बताया था लेकिन उन्हें चुप करा दिया गया। जिसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
दिनेश दुबे की मानें तो देश के बैंकिंग क्षेत्र को हिला देने वाले पीएनबी घोटाले की शुरुआत 2013 में इलाहाबाद बैंक की निदेशक मंडल की बैठक में ही हो गई थी। नई दिल्ली में हुई उस बैठक में गीतांजलि ज्वेलर्स के मालिक मेहुल चौकसी को 550 करोड़ रुपये देने की मंजूरी दी गई थी। मेहुल चौकसी रिश्ते में घोटालेबाज नीरव मोदी का मामा है। बाद में मामा-भांजे ने मिलकर बैंकों को हजारों करोड़ का चूना लगाया। चौकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान किया गया था।
और मामला दब गया...
दूबे ने इस घोटाले की कहानी को ब्योरे के साथ जाहिर किया और बताया कि घोटाले की जानकारी RBI तक को हो गई थी। उन्होंने कहा- नई दिल्ली के होटल रेडिसन में 14 सितंबर, 2013 को इलाहाबाद बैंक के निदेशक मंडल की बैठक हुई। इस बैठक में दिनेश दुबे भी भारत सरकार की ओर से नियुक्त निदेशक की हैसियत से शामिल हुए। इस बैठक में दिनेश दुबे ने मेहुल चौकसी को 550 करोड़ लोन देने का विरोध किया। 16 सितंबर को इस बैठक की जानकारी दुबे ने भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती और तत्कालीन वित्त सचिव राजीव टकरू को दी। इसके बाद बैंक अधिकारियों को तलब भी किया गया, लेकिन इसके बावजूद मेहुल चौकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान कर दिया गया। केंद्रीय वित्त सचिव और आरबीआइ को इस फैसले की भनक लगते ही हड़कंप मच गया था। उधर, बैंक के अधिकारी मेहुल चौकसी को सैकड़ों करोड़ देकर खुद भी करोड़ों रुपये डकारने में लगे थे, जिसके चलते मामला दब गया। दिनेश दुबे के मुताबिक जब उन्होंने चौकसी को लोन देने का विरोध किया तो उनपर दवाब बनाने से लेकर उन्हें धमकाने की भी कोशिश की गयी थी।
टकरू की सफाई
वहीं दूबे के बयान के बाद तत्कालीन वित्त सचिव राजीव टाकरू ने सफाई दी है। उन्होंने दूबे की बात से इत्तेफाक नहीं रखा है। कहा है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी और इस शख्स से वो अपने जीवन में महज एक बार मिले हैं। तब वो अपना इस्तीफा सौंपने आए थे। उन्होंने कहा था कि वो किसी बात से नाराज हैं। मैंने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया था। मैंने उनसे कोई बात नहीं की।
जावड़ेकर का सवाल
केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने तत्कालीन यूपीए सरकार को निशाने पर लिया है। उन्होंने कहा है कि मामला बेहद गंभीर है। जांच होनी चाहिए कि आखिर यूपीए शासनकाल में उनके वित्तीय सचिव ने किसके कहने पर जांच नहीं कराई, दूबे पर दबाव डाला और दूबे को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। जावड़ेकर ने कहा कि एनपीए समेत कई घोटाले हमें विरासत के तौर पर पूर्व सरकार से मिले हैं।