मोदी सरकार ने 10 एजेंसियों को दिया देश के सभी कंप्यूटरों की निगरानी का अधिकार, सर्कुलर जारी
कांग्रेस ने कहा- यह नागरिक स्वतंत्रता और लोगों की निजता में दखलंदाजी है
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार ने अपने मातहत प्रमुख 10 एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटरों की सूचनाओं का इंटरसेप्शन, निगरानी और डिक्रिप्शन का अधिकार दे दिया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि खुफिया ब्यूरो (आईबी), मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), सीबीआई, एनआईए, कैबिनेट सचिवालय, रॉ, डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पास देश में चलने वाले सभी कंप्यूटर की निगरानी करने का अधिकार होगा।
सरकार के इस आदेश को लेकर काफी विवाद हो रहा है। इस मामले में विपक्षी दलों द्वारा विरोध दर्ज कराने पर शुक्रवार को राज्यसभा स्थगित कर दी गई। कांग्रेस ने देश की प्रमुख एजेंसियों को सभी कंप्यूटरों की कथित तौर पर निगरानी का अधिकार देने संबंधी सरकार के आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि यह नागरिक स्वतंत्रता और लोगों की निजी स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। पार्टी ने यह भी आशंका जताई कि इस आदेश का दुरुपयोग हो सकता है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने ट्वीट कर कहा, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी की अनुमति देने का सरकार का आदेश नागरिक स्वतंत्रता एवं लोगों की निजी स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। उन्होंने कहा, एजेंसियों को फोन कॉल और कंप्यूटरों की बिना किसी जांच के जासूसी करने का एकमुश्त ताकत देना बहुत ही चिंताजनक है। इसके दुरुपयोग की आशंका है। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार बताया है। भारत सरकार 20 दिसंबर की मध्यरात्रि में आदेश जारी कर कहती है कि पुलिस आयुक्त, सीबीडीटी, डीआरआई, ईडी आदि के पास यह मौलिक अधिकार होगा कि वे हमारी निजता में दखल दे सकें। देश बदल रहा है।
क्या हिन्दुस्तान एक सर्विलांस स्टेट बन गया है?
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने शुक्रवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि राफेल घोटाले में एक चर्चा शुरू हुई कि चौकीदार भागीदार है। अब कंप्यूटर निगरानी का जो आदेश आया है, उससे ये स्पष्ट होता है कि चौकीदार जासूस भी है। चौकीदार आवाज लगाता है- जागते रहो, मोदी सरकार ने आदेश दे दिया है कि झांकते रहो। अहम बात ये है कि सरकार का यह आदेश असंवैधानिक है, गैर कानूनी है, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 जिसके तहत इसको जारी किया गया है, ये उसके अनुसार भी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों का जो फैसला है, जो राइट टू प्राइवेसी के मामले में आई थी, उसकी भी इस आदेश ने धज्जियां उड़ा दी। आपके लिए यह जानना अहम है कि इस सेक्शन-69 के चार पहलू और चार स्तंभ हैं।
पहला, कि कब-कब इस आदेश को जारी किया जा सकता है। सिर्फ केस बॉय केस बेसिस, अर्थात् सरकार एक खुला अधिकार, एक बेलगाम अधिकार, एक बेलगाम पॉवर नहीं दे सकती, आपको केस बाय केस ऐसे आदेश जारी करने पड़ेंगे। दूसरा, ऐसा आदेश केवल जनहित में जारी किया जा सकता है। तीसरा, जब देश की अखंडता को खतरा हो, सुरक्षा को खतरा हो, तभी ऐसा आदेश जारी किया जा सकता है। चौथा, अगर सरकार को कोई जानकारी है कि कोई गुनाह, कोई जुर्म, कोई हमला होने वाला है, तब ऐसा आदेश जारी किया जा सकता है।
इस आदेश का असर देखिए, मोदी जी के कान और आंखें अब घर-घर में हैं। मोदी जी हर फोन पर हुई बातचीत, हर वॉट्सअप पर हुई बातचीत, हर एसएमएस पर हुई बातचीत सुन सकते हैं। कोई मां अगर अपने बेटे से स्काइप पर बात कर रही है तो मोदी जी सुन सकते हैं, कोई पत्नी अपने पति से बात कर रही है तो मोदी जी सुन सकते हैं, कोई पिता अपने बेटे से बात कर रहा है तो मोदी जी सुन सकते हैं, कोई पत्रकार मोदी सरकार की नीतियों पर टिप्पणी कर रहा है तो मोदी जी सुन सकते हैं, कोई किसान मोदी जी की किसान विरोधी नीतियों पर कुछ कह रहा है, मोदी जी सुन सकते हैं, कोई देश का युवा, स्टूडेंट गूगल कर रहा है, हाउ मोदी गवर्नमेंट फेल्ड, मोदी जी वो भी सुन सकते हैं। तभी कहा है कि 2014 में मोदी जी सत्ता में जिस नारे से आए- घर-घर मोदी, अब जब सत्ता जा रही है, 2019 में वो नारा बन गया है, घर-घर जासूसी।
शेरगिल ने कहा कि गृह मंत्रालय का ये आदेश कानून के तहत जनहित में नहीं, सिर्फ मोदी जी के हित में जारी किया गया है। ये आदेश देश की अखंडता, सुरक्षा और किसी तरह के खतरे से बचने के लिए नहीं किया गया, बल्कि ये आदेश मोदी सरकार को वोट की चोट के खतरे से बचाने के लिए किया गया है। तीन राज्यों के जो चुनाव हुए हैं, उसकी हार से बौखला कर 2019 में जो भाजपा का कमल का फूल मुरझाने वाला है और कांग्रेस के विकास का परचम लहराने वाला है, उससे घबराकर वोट के चोट के खतरे से बचने के लिए ये आदेश जारी किया गया है।
दूसरी अहम बात, सरकार का ये आदेश एक पेज का है, जबकि इसपर सुप्रीम कोर्ट की 547 पेज की जजमेंट है। कहने का मतलब यह कि आज इस एक पेज के आदेश ने सुप्रीम कोर्ट के 547 पेज की जजमेंट, राइट टू प्राइवेसी वाली जजमेंट की धज्जियां उड़ा दी और कुचल दिया। इस 547 पेज की जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट के 9 न्यायाधीशों ने राइट टू प्राइवेसी का अधिकार आर्टिकल 21 संविधान के अनुसार हर देशवासी के हाथ में थमा दिया और इस आदेश के तहत वही दिया हुआ अधिकार, हर देशवासी का जो संवैधानिक अधिकार था, होम मिनिस्ट्री ने उसको छीन लिया और जांच एजेंसियों को एक खुली जासूसी करने का अधिकार दे दिया।
देश को ये जानना जरूरी है कि इन 547 पेज में क्या लिखा गया था। पहली बात, राइट टू प्राइवेसी, जो आपके जीने का अधिकार आर्टिकल 21 संविधान का है, उसका एक अहम हिस्सा है। अगर निजता का अधिकार मनुष्य के पास नहीं है तो मनुष्य और जानवर में कोई अंतर नहीं रह जाता, ये सुप्रीम कोर्ट ने लिखा है। दूसरा, 9 के 9 जजों ने एक बात दोहराई थी कि ये इस सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट से हम सरकार और जनता के बीच एक संवैधानिक दीवार खड़ी कर रहे हैं, ताकि जनता की जो निजी जिंदगी है, सरकार उस दीवार को लांघ कर, ऊपर चढ़कर या झांक कर ना देख पाए और आज इस आदेश ने सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट की जो अहम बातें थीं, उसको दर किनारे करते हुए ये असंवैधानिक निर्णय लिया है।
इस संदर्भ में कांग्रेस पार्टी के सरकार से कुछ सवाल हैं- पहला यह कि मोदी सरकार ये स्पष्ट करे कि वो कौन सा जनहित है, जिसमें ये तानाशाही तुगलकी फरमान जारी किया है, जो मेरी निजता के अधिकार को पूरी तरह कुचलता है? दूसरा, क्या मोदी सरकार को इस देश के मतदाताओं से घबराहट हो रही है, डर लग रहा है कि उन्होंने ऐसा आदेश जारी किया है? तीसरा, क्या ये आदेश मोदी हित में जारी हुआ या कि जनहित में जारी हुआ है? चौथा अहम प्रश्न, क्या अब हिंदुस्तान एक पुलिस स्टेट बन गया है, एक सर्विलांस स्टेट बन गया है?