जम्मू कश्मीर में मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ आईएएस अधिकारी गोपीनाथन ने दिया इस्तीफा
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार की सख्ती को आभासी आपातकाल की संज्ञा देकर देश में सबसे प्रतिष्ठित मानी जाने वाली अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। मालूम हो कि, बीते 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटा देने के बाद से वहां पर भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं, संचार सेवाएं पूरी तरह से बंद हैं और हजारों की संख्या में लोग हिरासत में हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गोपीनाथन ने कहा, यह यमन नहीं है और न ही 1970 के दशक का दौर है जिसमें आप पूरी जनता को उसके मौलिक अधिकार देने से इनकार कर देंगे और कोई कुछ नहीं कहेगा। एक पूरे क्षेत्र में सभी तरह के प्रतिबंधों को लगाकर उसे पूरी तरह से बंद किए हुए पूरे 20 दिन हो चुके हैं। मैं इस पर चुप नहीं बैठ सकता हूं चाहे खुल कर बोलने की आजादी के लिए मुझे आईएएस की नौकरी से इस्तीफा ही क्यों न देना पड़े और मैं वही करने जा रहा हूं।
2012 में आईएएस में शामिल होने वाले गोपीनाथन अरुणाचल, गोआ, मिजोरम केंद्र शासित प्रदेश कैडर से जुड़े हुए हैं। इस समय वे दादर एवं नागर हवेली सरकार के साथ जुड़े हुए थे लेकिन 21 अगस्त बुधवार को उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। वहां वे बिजली, शहरी विकास और शहर एवं देश नियोजन विभाग के सचिव थे। गोपीनाथन ने कहा, मैं सार्वजनिक तौर पर तब तक कुछ नहीं कहना चाहता था जब तक कि मेरा इस्तीफा स्वीकार नहीं हो जाता है। लेकिन यह बात तब लीक हो गई जब उनके साथियों ने यह सूचना केरल की मीडिया को बता दी जिनके साथ उन्होंने एक सोशल मीडिया ग्रुप में यह बात शेयर की थी।
गोपीनाथन ने कहा, बाहरी संकट या सशस्त्र विद्रोह होने पर संविधान आपातकाल लगाने और स्वतंत्रता को निलंबित करने की अनुमति देता है, लेकिन कश्मीर में लोगों की स्वतंत्रता को इस आधार पर रोक दिया गया है कि यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो आंतरिक गड़बड़ी हो सकती है। संविधान में 44वें संशोधन के बाद किसी भी मामले में आंतरिक गड़बड़ी को आधार बनाते हुए आपातकाल नहीं लगाया जा सकता है। निश्चित तौर पर आपातकाल की तरह यहां पर कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई। सब कुछ आईएएस अधिकारियों के कार्यकारी आदेशों पर छोड़ दिया गया है। इसके साथ ही नागरिकों के न्यायिक सहायता मांगने पर रोक भले ही न लगी हो लेकिन अदालतें उन पर कार्यवाही करने को उत्सुक नहीं दिख रही है।
गोपीनाथन खासतौर पर इस साल जनवरी में आईएएस से इस्तीफा देने वाले पूर्व आईएएस टॉपर शाह फैसल की गिरफ्तारी के तरीके को लेकर भी चिंतित हैं। इस मामले में 19 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट में एक हैबियस कॉर्पस याचिका लगाई गई। ऐसी याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की जाती है लेकिन अदालत ने कहा कि वह इस मामले पर 3 सितंबर को सुनवाई करेगी। उन्होंने कहा, अगर मैं एक अखबार का मालिक हूं, तो कल मेरी हेडलाइन सिर्फ 20 शब्दों की होगी क्योंकि यह 20वां दिन है जब कश्मीर के लोगों से उनकी स्वतंत्रता छीनकर उनपर इन प्रतिबंधों को लगा दिया गया है।
केरल के कोट्टायम के रहने वाले गोपीनाथन से जब आईएएस की नौकरी छोड़ने के बाद की योजना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, मैंने इतनी दूर का नहीं सोचा है लेकिन आज से 20 साल बाद अगर लोग मुझसे पूछेंगे कि जब देश के एक हिस्से में आभासी आपातकाल लगा दिया गया था तब आप क्या कर रहे थे तब कम से कम मैं यह तो कह सकूंगा कि मैंने आईएएस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था।