'इलेक्टोरल बॉन्ड संविधान के साथ धोखाधड़ी और राजनीतिक भ्रष्टाचार को वैध बनाने का तरीका है'
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने चुनावी बांड को पहले ही अदालत में चुनौती दे चुकी है और फिर शनिवार को कहा कि यह राजनीतिक भ्रष्टाचार को वैध बनाने का तरीका है जो राजनीतिक दलों और कॉरपोरेट के बीच समझौता बनाने को प्रश्रय देगा। इतना ही नहीं, यह संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक के रूप में योग्य नहीं होने के बावजूद धन विधेयक के रूप में पारित करके संविधान के साथ धोखाधड़ी की गई।
माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने यहां मीडिया को बताया, माकपा का हमेशा मानना रहा है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार को मिटाने का पहला कदम कॉरपोरेट द्वारा राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदे पर रोक लगाना होगा। यह भ्रष्टाचार का आपूर्ति वाला पक्ष है। जब तक इसे रोका नहीं जाता, राजनीतिक भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, इसके बजाए भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक भ्रष्टाचार को वैध बना रही है। चुनावी बांड और कुछ नहीं है, बल्कि राजनीतिक भ्रष्टाचार को वैध बनाने का तरीका है।
सुप्रीम कोर्ट ने माकपा की याचिका पर बीते शुक्रवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था, जिसमें चुनावी बांड को चुनौती दी गई थी, जिसे एक अधिसूचना के जरिए उसी दिन क्रियान्वित किया गया था। येचुरी ने कहा, यह (चुनावी बांड प्रणाली) खतरनाक है, क्योंकि कोई भी विदेशी कंपनी अब राजनीतिक दलों को चंदा दे सकती है और किसी को यह जानकारी नहीं होगी कि कौन चंदा दे रहा है और किस पार्टी को चंदा मिल रहा है।
येचुरी ने कहा, उन्होंने पहले की धाराओं और शर्तो को हटा दिया है, जिसमें कॉरपोरेट द्वारा राजनीतिक दलों को दी जानेवाली चंदे की रकम की सीमा निर्धारित थी। इसका मतलब है कि शेल (फर्जी) कंपनियों का गठन किया जाएगा और मनी लांड्रिंग (काले धन को सफेद बनाने का धंधा) की जाएगी। उन्होंने बांड की निंदा करते हुए कहा कि यह संविधान द्वारा दिया गया 'जानने के अधिकार' (अनुच्छेद 19 (1)(ए)) और अनुच्छेद 14 (कानून के सामने सभी समान है) का उल्लंघन है और संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक के रूप में योग्य नहीं होने के बावजूद इसे एक धन विधेयक के रूप में पारित करके संविधान के साथ धोखाधड़ी की गई।
उन्होंने वित्त विधेयक 2018 के माध्यम से विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (फेरा) में संशोधन की भी आलोचना की, जिसने 1976 के बाद से राजनीतिक दलों में किए गए सभी विदेशी योगदान को मान्य करार दिया है। 1976 में ही एफसीआरए अधिनियमित किया गया था।
येचुरी ने कहा, एक बार फिर यह काफी खतरनाक कदम उठाया गया है, जिससे विदेशी कंपनियां (जिसे कौन नियंत्रित कर रहा है, कौन मालिक है, उसने किस तरह से संसाधन जुटाए हैं आदि का पता नहीं है) राजनीतिक दलों को सौदे और समझौते के तहत चंदा देगी। यह कुछ और नहीं बल्कि उच्चतम स्तर का सांठ-गांठ वाला पूंजीवाद (क्रोनी कैपटलिज्म) है।