असली जेडीयू की जंग जीते नीतीश, शरद की उल्टी गिनती शुरू
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : चुनाव आयोग ने मंगलवार को साफ कर दिया है कि जनता दल यूनाइटेड पार्टी और उसका चुनाव चिह्न नीतीश कुमार के पास ही रहेगा। चुनाव आयोग ने शरद यादव की याचिका को तकनीकी कारणों से खारिज कर दिया। इसी के साथ अब शरद यादव के राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें शुरू हो गई हैं और राज्यसभा सदस्यता की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है।
बिहार में महागठबंधन से अलग होकर जेडीयू के भाजपा के साथ चले जाने के बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शरद यादव की लड़ाई पार्टी पर दावे तक पहुंच गई थी। एक ओर जहां जेडीयू ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मिलकर उनकी राज्यसभा की सदस्यता रद्द करने की मांग की, तो शरद यादव का खेमा पार्टी पर दावा जताने के लिए चुनाव आयोग के पास पहुंच गया था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शरद यादव को लेकर कहा था, अगर वह नई पार्टी बनाना चाहते हैं तो कोई उन्हें रोक सकता है क्या...?
वैसे, शरद यादव अब सितंबर के अंतिम सप्ताह में चार-दिवसीय दौरा कर जनता से सीधे संवाद करने जा रहे हैं। 25 सितंबर से शुरू हो रही इस यात्रा में शरद यादव के सभी कार्यक्रम 'संवाद यात्रा' के अंतर्गत ही आयोजित किए जाएंगे और वह भोजपुर, बक्सर, कैमूर, रोहतास, गया और औरंगाबाद जाकर जनता से मिलेंगे। उधर, जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का कहना है कि शरद यादव की इस यात्रा का कोई अर्थ नहीं रह गया है।
जेडीयू ने बीते साल ही पार्टी की राष्ट्रीय परिषद में शामिल सदस्यों की सूची चुनाव आयोग को दी है, जिसमें कुल 193 सदस्य हैं। यह सूची राजगीर सम्मेलन के समय जारी की गई थी और इसी सम्मेलन में शरद यादव के प्रस्ताव के बाद पार्टी ने नीतीश कुमार को अध्यक्ष बनाया था। राष्ट्रीय परिषद की सूची पर जेडीयू महासचिव जावेद रज़ा के हस्ताक्षर हैं और अब वह शरद यादव के साथ खड़े हैं लेकिन कुल सदस्यों में से ज्यादातर नीतीश कुमार के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। यह नई सूची जेडीयू के दूसरे महासचिव केसी त्यागी की ओर से चुनाव आयोग की दी गई थी। केसी त्यागी, नीतीश कुमार के समर्थन में खड़े हैं, जबकि करीब 30-40 सदस्य केरल के सांसद वीरेंद्र कुमार के साथ हैं जो जेडीयू से अलग हो चुके हैं।
चुनाव आयोग किसी भी पार्टी में वर्चस्व को लेकर सबसे पहले यही देखता है कि पार्टी सदस्य, पदाधिकारी, सांसद और विधायक किसके साथ ज्यादा संख्या में खड़े हैं। जेडीयू के संविधान के मुताबिक भी कोई सदस्य दो बार से ज्यादा पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रह सकता है, जबकि शरद यादव लगातार तीन बार अध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा यह भी किसी से छिपा नहीं है कि भाजपा के साथ जाने के फैसले पर पार्टी के ज्यादातर विधायकों का समर्थन है।