अध्यादेश पर मुसीबत में मनमोहन सरकार
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश को वापस लेने का विचार कर रही यूपीए सरकार के लिए अब घटक दल मुसीबत का सबब बनते दिख रहे हैं। सहयोगी दलों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। ये सहयोगी महज कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की वजह से कैबिनेट के फैसले को पलटने के खिलाफ बताए जा रहे हैं। शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस मामले को लेकर यूपीए समन्वय समिति की बैठक की मांग की है।
एनसीपी प्रवक्ता और सांसद डीपी त्रिपाठी ने कहा, 'राहुल गांधी कांग्रेस के बारे में जो भी कहना चाहें उसके लिए वह स्वतंत्र हैं, लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार सिर्फ कांग्रेस की सरकार नहीं है। यह यूपीए की सरकार है और राहुल गांधी अच्छी तरह से जानते हैं कि हम यूपीए के सहयोगी हैं, कांग्रेस के अनुयायी नहीं।'
राहुल गांधी के तरीके पर सवाल उठाते हुए केंद्रीय मंत्री व एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष द्वारा अध्यादेश की आलोचना के बाद बनी स्थितियां सरकार की सेहत के लिए कतई ठीक नहीं हैं। इस मामले को बेहतर ढंग से संभाला जा सकता था। डीपी त्रिपाठी के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री व नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी इस मसले पर चर्चा के लिए यूपीए समन्वय समिति की बैठक बुलाने की मांग की है।
सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी ने अध्यादेश वापसी के प्रस्ताव का विरोध किया है। पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव ने दो टूक कहा कि जब तक किसी जनप्रतिनिधि को अंतिम रूप से दोषी नहीं ठहरा दिया जाता है, तब तक उसे सजा नहीं दी जा सकती। अगर किसी कांग्रेसी नेता के दबाव में सरकार अध्यादेश पर पीछे हटती है, तो यह गलत होगा। अध्यादेश को लेकर चल रही आपाधापी को लेकर माकपा नेता प्रकाश करात और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने भी एक बैठक की है।