'बुआ' और 'बबुआ' को साथ लाने की बात पर ये क्या बोल गए मिश्रा!
सत्ता विमर्श ब्यूरो
लखनऊ/नई दिल्ली: बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश को एक मंच पर देखने की कईयों की हसरत फिलहाल पूरी होती नहीं दिख रही है। एक पोस्टर जारी हुआ जिसमें 'बुआ' और 'बबुआ' एक साथ दिखे। लगा सोनिया गांधी की विपक्ष को एक झण्डे तले लाने की कोशिशों को बल मिल गया। लेकिन 24 घण्टे भी नहीं बीते की पोस्टर को ही फर्जी बता दिया गया। दरअसल, 27 अगस्त को राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की पटना रैली को आधार बना कर एक पोस्टर बसपा के ट्विटर हैंडल से साझा किया गया। इसमें बुआ और बबुआ साथ साथ दिखे। बस यहीं से अटकलबाजियों का दौर शुरु हो गया,जिस पर अब पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने विराम लगा दिया है। साफ हो गया है कि यूपी के इन दो विपरीत धड़ों के बीच बर्फ नहीं पिघली है।
दरअसल, लालू की इस बड़ी रैली में विपक्ष के क्षेत्रिय क्षत्रपों को एकजुट दिखाने की कोशिश हो रही है। इसी सिलसिले में बसपा के ट्विटर हैंडल से पोस्टर पोस्ट किया गया। जिसमें मायावती के साथ पहली बार अखिलेश यादव की तस्वीर नजर आ रही है। हालांकि पहले ही बताया जा चुका है कि मायावती इस रैली में नहीं पहुंचेंगी और बसपा की तरफ से वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा शामिल होंगे...लेकिन पोस्टर ने जिज्ञासा बढ़ा दी थी। इन दोनों नेताओं के अलावा इस पोस्टर में राजद नेता लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार के भाजपा से हाथ मिलाने के बाद बगावती तेवर अपनाने वाले शरद यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तस्वीरें हैं।
फर्जी है पोस्टर: मिश्रा
लगने लगा था कि बसपा की दुश्मन नम्बर वन अब भाजपा है और सपा पीछे खिसक गई है। चूंकि बात राज्य से ऊपर उठ कर राष्ट्रीय स्तर पर छवि चमकाने की है, सो कहानी में नया ट्विस्ट आ गया है। मीडिया में खबर वायरल होने के बाद बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा सामने आये। उन्होंने आधिकारिक बयान जारी कर इस पोस्टर को फर्जी बताया। मिश्रा ने स्पष्ट किया है कि बसपा का आधिकारिक ट्विटर अकाउंट नहीं है। मिश्रा ने बयान जारी कर कहा, 'बीएसपी का कोई आधिकारिक ट्विटर अकाउंट नहीं है। बीएसपी के ट्विटर हैंडल के नाम से पोस्टर जारी करने का प्रश्न ही नहीं उठता है।'
क्योंकि सवाल सांझी विरासत का...
17 अगस्त को ही जदयू के बागी सांसद शरद यादव ने विपक्ष को एनडीए सरकार के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ने का खाका तैयार किया है। उनके मुताबिक संविधान की आत्मा यानी हम सबकी सांझी विरासत को साम्प्रदायिक ताकतों से बचाने के लिए विपक्ष को लामबंद होना ही होगा और इसलिए उनकी अपील पर सभी छोटे बड़े दल साथ खड़े होने को तैयार दिखे। इस अतिविशिष्ट कार्यक्रम में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी खुद पहुंचे और विश्वास दिलाया कि अगर विपक्ष एक साथ खड़ा हो जाए तो 'ये' दिखाई तक नहीं देंगे। ये से मतलब संघ और भाजपा से था।
ताजा प्रकरण बताता है कि परस्पर घोर विरोधी क्षेत्रीय क्षत्रपों को एक ही मंच पर जुटाना टेढ़ी खीर है। ये लोग एक बैठक में तो शामिल हो सकते हैं, लेकिन अपने ढर्रे से हटने को तैयार नहीं हैं। शायद मसला बचे-खुचे वोट बैंक का है या फिर नेतृत्व को लेकर स्पष्टता की कमी है।