MeToo ने ली अकबर की बलि, विदेश राज्य मंत्री पद से दिया इस्तीफा, रमानी बोलीं- सुकुन मिला
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : करीब डेढ़ दर्जन महिला पत्रकारों द्वारा आपत्तिजनक व्यवहार और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए जाने के बाद पूर्व संपादक एम.जे. अकबर ने केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री के पद से बुधवार को इस्तीफा दे दिया। 'मी टू' अभियान के सामने आने के बाद भारतीय राजनीति में यह पहला इस्तीफा है। रमानी ने अकबर के इस्तीफे पर खुशी जताई है। रमानी ने ट्वीट कर लिखा, 'एक महिला होने के नाते मुझे एमजे अकबर के इस्तीफे से सुकून मिला है। मुझे उम्मीद है कि हमें अदालत में भी न्याय मिलेगा।'
इस्तीफे की घोषणा करते हुए संक्षिप्त बयान में अकबर ने कहा है, जैसा कि मैंने अदालत के जरिये न्याय लेने का निर्णय किया है इसलिए अब मैंने अपना पद छोड़ने का निर्णय लिया है, ताकि अपने खिलाफ लगे झूठे आरोपों को चुनौती दे सकूं। मैंने अपना इस्तीफा विदेश मंत्रालय को भेज दिया है। अकबर ने आगे कहा है, देश की सेवा करने का अवसर देने के लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूं।
कुछ यूं लिखी गई अकबर के इस्तीफे की पटकथा
माना तो यही जा रहा था कि भाजपा और सरकार ने शुरू में एमजे अकबर पर लगे आरोपों को व्यक्तिगत मामला बताकर इस्तीफा के लिए दबाव नहीं बनाने का फैसला लिया था, लेकिन जिस तरीके से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर सरकार को इस प्रकरण के कारण आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था उसके बाद पीएम नरेन्द्र मोदी ने हस्तक्षेप करते हुए अकबर को इस्तीफा देने का संदेश भेज ही दिया। गौरतलब है कि साढ़े चार साल के मोदी सरकार के कार्यकाल में आरोपों की वजह से किसी मंत्री का यह पहला इस्तीफा है। मंगलवार को एनएसए अजीत डोभाल ने विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर से मुलाकात की थी। सूत्रों के अनुसार, इस मीटिंग में उन्होंने अकबर को पीएम मोदी की इच्छा के बारे में बता दिया था। बुधवार को जिस तरह से अचानक अकबर ने इस्तीफा दिया उससे साफ हो गया कि इसकी पटकथा मंगलवार को ही लिखी जा चुकी थी।
असल में अकबर मध्य प्रदेश से ही राज्यसभा सांसद हैं और वहां नवंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। मंगलवार को ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा नारी शक्ति पर मीडिया से बात कर रहे थे और जैसे ही उनसे अकबर के बारे में सवाल पूछा गया तो वह पतली गली से निकल गए। इससे पार्टी और सरकार दोनों को अकबर के मुद्दे पर असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा था। अंतत: यह माना गया कि इसे अकबर की व्यक्तिगत लड़ाई बताकर उनसे किनारा करना संभव नहीं है। महिलाओं के विरूद्ध सरकार नहीं है, यह संदेश भी देना था। इसके अलावा अकबर ने जिस तरह इस प्रकरण में कोर्ट में केस किया, उससे भी सरकार पर सवाल उठ रहे थे। ऐसा संदेश गया कि सरकार की आड़ में अकबर उन सभी 20 महिलाओं के खिलाफ कानूनी लड़ाई का दबाव बना रहे हैं।
गुरुवार को मामले पर कोर्ट में सुनवाई भी शुरू होनी थी। इसलिए उससे पहले सरकार यह संदेश देना चाहती थी कि इस लड़ाई में वह किसी तरह अकबर के साथ नहीं है। जब से यह मामला सामने आया था, सरकार के अंदर एक वर्ग ऐसा था जो शुरू से इस पक्ष में था कि उन्हें अपने पद को छोड़ देना चाहिए। एम जे अकबर का मामला पिछले बुधवार को कैबिनेट मीटिंग के दौरान भी उठा था। तब कुछ मंत्रियों ने पूरे मामले पर चिंता जरूर जताई थी। तब अकबर नाइजीरिया दौरे पर थे। अकबर को लेकर सरकार में दो तरह के विचार थे। एक तबका ऐसा था जो यह मानता था कि इससे सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है और उन्हें तुरंत पद से हटने को कहा जाए। लेकिन दूसरा तबका तुरंत कड़े कदम उठाने के पक्ष में नहीं था। लेकिन तमाम सियासी गुणा-भाग कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अकबर से इस्तीफा देने को कह ही दिया।
मालूम हो कि पूर्व पत्रकार एमजे अकबर पर यौन उत्पीड़न का सबसे पहला आरोप वरिष्ठ पत्रकार प्रिया रमानी ने लगाया था। इसके बाद तकरीबन 15 से 18 महिला पत्रकार अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगा चुकी हैं। मालूम हो कि बीते 15 अक्टूबर को यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ एमजे अकबर ने नई दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में एक निजी आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था। अपनी याचिका में अकबर ने रमानी पर जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से उन्हें बदनाम करने का आरोप लगाया और इसके लिए उनके खिलाफ मानहानि से जुड़े दंडात्मक प्रावधान के तहत मुकदमा चलाने का अनुरोध किया है।
याचिका में कहा गया है कि आरोपों की भाषा और सुर पहली नज़र में ही मानहानिपूर्ण हैं और इन्होंने न केवल उनके (अकबर) सामाजिक संबंधों में उनकी प्रतिष्ठा और साख को नुकसान पहुंचाया है बल्कि समाज, मित्रों और सहयोगियों के बीच भी उनकी प्रतिष्ठा प्रभावित हुई है। आरोपों ने अपूरणीय क्षति पहुंचाई है। अपने खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर होने के बाद प्रिया रमानी ने कहा, मैं बेहद निराश हूं कि एक केंद्रीय मंत्री ने कई महिलाओं के व्यापक आरोपों को राजनीतिक षड्यंत्र बताते हुए ख़ारिज कर दिया।
रमानी ने कहा, मेरे खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दायर करके अकबर ने उनके खिलाफ लगाए कई महिलाओं के गंभीर आरोपों का जवाब देने के बजाय अपना रुख साफ कर दिया। वह डरा धमकाकर और प्रताड़ित करके उन्हें चुप कराना चाहते हैं। इस बीच प्रिया रमानी के समर्थन में द एशियन एज अखबार में काम कर चुकीं 20 महिला पत्रकार सामने आई हैं। इन पत्रकारों ने अपने हस्ताक्षर कर संयुक्त बयान में कहा है, रमानी अपनी लड़ाई में अकेली नहीं है। हम मानहानि के मामले में सुनवाई कर रही माननीय अदालत से आग्रह करते हैं कि याचिकाकर्ता के हाथों हममें से कुछ के यौन उत्पीड़न को लेकर और अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं की गवाही पर विचार किया जाए जो इस उत्पीड़न की गवाह थीं।
इन महिला पत्रकारों में मीनल बघेल, मनीषा पांडेय, तुषिता पटेल, कणिका गहलोत, सुपर्णा शर्मा, रमोला तलवार बादाम, होइहनु हौजेल, आयशा खान, कुशलरानी गुलाब, कनीजा गजारी, मालविका बनर्जी, एटी जयंती, हामिदा पार्कर, जोनाली बुरागोहैन, मीनाक्षी कुमार, सुजाता दत्ता सचदेवा, रेशमी चक्रवर्ती, किरण मनराल और संजरी चटर्जी शामिल हैं।