पति के कारोबार से मेरी संपत्ति का कोई लेना-देना नहीं, आरोप राजनीति से प्रेरित: प्रियंका
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी पर अवैध तरीके से कमाए गए पैसे से हरियाणा में जमीन खरीदने का आरोप लगा था जिसका उन्होंने जवाब दिया है। उन्होंने गुरुवार को आरोपों का खंडन करते हुए बयान जारी किया कि हरियाणा में जमीन खरीदने के लिये सारा पैसा उन्होंने खुद भरा है। इस पैसे का उनके पति रॉबर्ट वाड्रा या उनकी किसी भी कंपनी से कोई संबंध नहीं है।
प्रियंका गांधी पर अवैध तरीके से कमाए गए पैसे से हरियाणा में जमीन खरीदने का आरोप लगा है जिसका उन्होंने गुरुवार को जवाब दिया। दरअसल, एक मीडिया रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया था कि रॉबर्ट वाड्रा को डीएलएफ से जो पैसा मिला, उसके एक हिस्से का इस्तेमाल उनकी पत्नी ने हरियाणा के फरीदाबाद में प्रॉपर्टी खरीदने के लिए किया।
गौरतलब है कि प्रियंका ने 2006 में हरियाणा के गांव अमीपुर में कृषि भूमि खरीदी थी। 5 एकड़ इस जमीन के लिये उन्होंने 15 लाख रुपये चुकाए थे। प्रियंका गांधी ने अपने बचाव में कहा है कि जमीन खरीदने के लिए उन्होंने दादी इंदिरा गांधी से विरासत में मिली रेंटल प्रॉपर्टी की आय का इस्तेमाल किया था।
उन्होंने आगे कहा कि उनके द्वारा खरीदी गई किसी भी प्रॉपर्टी के भुगतान का संबंध रॉबर्ट वाड्रा या उनकी कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी या DLF से नहीं है। प्रियंका ने यह भी कहा कि इस तरह के आरोप संदिग्ध दस्तावेजों पर आधारित हैं और यह उनकी छवि खराब करने की एक सोची-समझी राजनीतिक साजिश है।
इस बीच ढींगरा आयोग की रिपोर्ट में भी रॉबर्ट वाड्रा पर जमीन खरीद में धोखाधड़ी का आरोप है। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार द्वारा 2015 में गठित किए गए ढींगरा आयोग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने साल 2008 में हरियाणा में एक लैंड डील से अवैध रूप से 50.5 करोड़ रुपये का मुनाफा बनाया था, जबकि उस डील में उनका एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ था।
अंग्रेजी अखबार इकॉनोमिक टाइम्स के अनुसार, वाड्रा की कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए सांठगांठ की गई थी। ढींगरा आयोग को गुड़गांव के चार गांवों में लैंड यूज बदलने के लिए लाइसेंस दिए जाने की जांच करने को कहा गया था। इसमें वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए लाइसेंस की जांच भी शामिल थी। आयोग ने 31 अगस्त, 2016 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। आयोग की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने सीलबंद लिफाफे में पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया था।