कोलगेट में पीएम भी हैं साजिशकर्ता : पारेख
सत्ता विमर्श ब्यूरो
हैदराबाद/नई दिल्ली : कोल ब्लॉक आवंटन मामले में सीबीआई जांच का सामना कर रहे पूर्व कोयला सचिव प्रकाश चंद पारेख ने बुधवार को सनसनीखेज बयान में कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोयला मंत्रालय के प्रमुख के रूप में अंतिम निर्णय किया, जिससे उनका नाम भी साजिशकर्ता के रूप में होना चाहिए और मामले में उन्हें आरोपी बनाया जाना चाहिए। पारेख के इस बयान से राजनीतिक हलकों में नया तूफान खड़ा हो गया है। भाजपा नेता और पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख की यह टिप्पणी आश्चर्यजनक नहीं है कि प्रधानमंत्री को कोल ब्लॉक आवंटन मामले में साजिशकर्ता के रूप में माना जाना चाहिए। सिन्हा ने कहा कि पारेख को अब सार्वजनिक करना चाहिए कि उस समय कितने आवंटन हुए जब प्रधानमंत्री कोयला मंत्रालय के प्रभारी थे।
पारेख ने कहा कि अगर कोई साजिश हुई है तब इसमें कई लोग शामिल हैं। इनमें केएम बिड़ला हैं, जिन्होंने अर्जी लगाई थी। इसमें मैं भी हूं जिसने मामले को देखा था और सिफारिश की थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं जिनके पास उस समय कोयला मंत्री का प्रभार था और जिन्होंने अंतिम निर्णय किया था। इसीलिए अगर साजिश हुई है तो हम सभी को आरोपी बनाया जाना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या प्रधानमंत्री का नाम 'पहले साजिशकर्ता' के रूप में लिया जाना चाहिए? उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से। उन्होंने ही अंतिम निर्णय किया था। जवाबदेही प्रधानमंत्री की थी, क्योंकि वे मेरी सिफारिशों को खारिज कर सकते थे। कोयला मंत्री के नाते यह पूरी तरह उनकी जवाबदेही थी।
पारेख ने कहा कि सीबीआई को यदि यह लगता है कि कोई साजिश हुई है तो उन्होंने बिड़ला और मुझे ही क्यों चुना? उसने प्रधानमंत्री का नाम क्यों नहीं लिया। अगर साजिश हुई है तो जो भी इससे जुड़ा है, वह साजिश का हिस्सा है। सीबीआई ने 8 साल पहले ओडिशा में दो कोयला खानों के आवंटन में कथित अनियमितता के सिलिसिले में आपराधिक साजिश तथा भ्रष्टाचार निरोधक कानून की विभिन्न धाराओं के तहत कुमार मंगलम बिड़ला, पारेख तथा अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। पारेख के इस बयान को आधार बनाकर भाजपा तथा वाम दलों ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधा है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री इस विवादास्पद आवंटन की जवाबदेही से नहीं बच सकते हैं क्योंकि उस समय कोयला मंत्रालय उनके ही पास था। इन पार्टियों ने इस मामले में निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की मांग की है।
यह पूछे जाने पर कि क्या सीबीआई ने प्रधानमंत्री का नाम जानबूझकर छोड़ दिया है, पूर्व नौकरशाह ने कहा कि यह प्रश्न सीबीआई से पूछा जाना चाहिए कि उनका नाम क्यों छोड़ा गया। यहां सीबीआई अदालत में ताजा प्राथमिकी दर्ज करने के बाद एजेंसी की टीम ने मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद तथा भुवनेश्वर में करीब छह परिसरों की तलाशी ली। जिन परिसरों की तलाशी ली, उसमें हिंडालको के कार्यालय तथा हैदराबाद के सिकंदराबाद में पारेख का आवास शामिल है। अपने खिलाफ आरोप को आधारहीन बताते हुए पारेख ने कहा कि उन्हें सरकार के निर्णय में कुछ भी गलती नहीं दिखती। जो भी निर्णय किए गए वे निष्पक्ष तथा सही थे। मुझे नहीं पता कि आखिर सीबीआई को इसमें साजिश क्यों नजर आ रही है। उन्होंने यह भी कहा कि सीबीआई को तत्कालीन कोयला राज्यमंत्री डी. नारायण राव का नाम निश्चित रूप से लेना चाहिए क्योंकि फाइल उनके जरिए ही आगे गई थी। पारेख ने दावा किया कि सीबीआई निष्पक्ष और सही निर्णय तथा गलत निर्णय के बीच अंतर करने में विफल रही।
पारेख ने दावा किया कि कोयला मंत्री शिबू सोरेन ने इस विचार का विरोध किया था, लेकिन जब उन्होंने सरकार से इस्तीफा दे दिया तो प्रधानमंत्री ने इस विचार को मंजूरी दी और उनसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए नोट तैयार करने को कहा। पारेख ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय कानून में बदलाव लाने के लिए अध्यादेश लाने का विरोध किया और संसद में विधेयक लाने को तरजीह दी।
भाजपा नेता और पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि पारेख के लिए बोलने का समय आ गया है। उन्होंने कम बोला है, उन्हें अब साफ-साफ कहना चाहिए, सार्वजनिक तौर पर कहना चाहिए कि उस समय (जब प्रधानमंत्री कोयला मंत्रालय के प्रभारी थे) कितनी फाइलें निपटाई गईं। सिन्हा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय से प्रधानमंत्री कार्यालय में कितनी चिट मिलीं और प्रधानमंत्री कार्यालय ने वे निर्देश कोल ब्लॉक आवंटन के लिए कोयला मंत्रालय को दिए।