राफेल पर कांग्रेस फिर हमलावर, कहा- फ्रांस सरकार से गारंटी मिली नहीं और चोर दरवाजे से बढ़ा दी गई कीमत
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : राफेल विमान सौदे को लेकर सामने आए नए तथ्यों के हवाला देकर कांग्रेस ने एक बार फिर मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस ने कहा है कि नए खुलासे से साफ है कि राफेल घोटाले में किस हद तक भ्रष्टाचार हुआ है। कांग्रेस ने पीएम मोदी पर सीधा हमला करते हुए कहा कि इस मामले में लगातार बोले जा रहे झूठ से संदेह की सूई सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर घूम रही है।
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता रणदीव सुरजेवाला ने गुरुवार को प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने राफेल का बेंचमार्क मूल्य 3 बिलियन यूरो यानी 22,743 करोड़ रुपए बढ़ा दिया। कांग्रेस ने रक्षा मंत्रालय में मई 2016 तक हेड ऑफ फाइनेंस रहे सुधांशु मोहंती की बात का हवाला देते हुए कहा कि राफेल लड़ाकू जहाजों के लिए बेंचमार्क मूल्य 5.2 बिलियन यूरो (39,422 करोड़ रुपए) से बढ़ाकर 8.2 बिलियन यूरो (62,166 करोड़ रूपए) करना मोदी सरकार के भ्रष्टाचार को दर्शाता है। कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 8.2 बिलियन यूरो का इतना बड़ा बेंचमार्क मूल्य स्वीकार ही क्यों किया?
राफेल डील से फ्रांस की सरकार द्वारा संप्रभु गारंटी की शर्त हटाने को लेकर भी कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरा है। कांग्रेस ने बताया कि 24 अगस्त, 2018 को प्रधानमंत्री मोदी ने एक कच्ची रसीद को स्वीकार कर लिया जिसे लेटर ऑफ कम्फर्ट कहते हैं और इसके साथ ही बैंक गारंटी/फ्रेंच गवर्नमेंट्स सोवरेन गारंटी की शर्त हटा ली गई। कांग्रेस ने पूछा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा सौदे की प्रक्रिया को ताक पर रखकर ‘बैंक गारंटी/फ्रेंच गवर्नमेंट्स सोवरेन गारंटी’ की शर्त हटाकर देशहित के साथ समझौता क्यों किया?
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इसे लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा, राफेल के पिटारे से एक नया जिन्न निकला है। फ्रांस सरकार की तरफ से डील के समर्थन में कोई गारंटी नहीं दी गई है। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री का कहना है कि फ्रांस की तरफ से आस्थावान रहने का एक पत्र दिया गया है। इस सौदे को सरकार से सरकार के बीच हुआ समझौता कहने के लिए क्या यह बात काफी है?
कांग्रेस ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत और फ्रांस के बीच मध्यस्थता की शर्त हटाकर इस डील को सप्लायर कंपनी डसॉल्ट एविएशन और भारत सरकार के बीच मध्यस्थता में परिवर्तित कर दिया। मोदी सरकार ने भारत में मध्यस्थता की शर्त हटा ली और यूनाईटेड नेशंस कमीशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड लॉज़ के तहत मध्यस्थता का स्थान जेनेवा, स्विट्जरलैंड ले जाने के लिए सहमत हो गई। साफ है कि इस पूरे सौदे में भारत को न केवल सुविधाजनक स्थान पर सौदा करने का नुकसान हुआ, अपितु इंडियन आर्बिट्रेशन कानून भी इस पर लागू नहीं होता। अब यह एक विदेशी अवार्ड बनकर रह गया। यदि समझौता भारत और फ्रेंच सरकार (आईजीए) के बीच है तो मध्यस्थता भारत और डसॉल्ट एविएशन के बीच किस प्रकार हो सकती है? प्रधानमंत्री मोदी ने देशहित के साथ समझौता क्यों किया? सुरजेवाला ने कहा कि इन तथ्यों से साफ है कि राफेल डील में हुई अनियमितता के मामले निकट भविष्य में खत्म नहीं होने वाले हैं।