राहुल के आगे झुकी सरकार, दागी अध्यादेश वापस
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : नाटकीय घटनाक्रम के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को ध्वनिमत से आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने की स्थिति में जनप्रतिनिधियों की सदस्यता बचाने के लिए लाए गए विवादित अध्यादेश को वापस लेने का फैसला किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात कर लौटने के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अध्यादेश वापस लेने का संकेत दिए जाने के ठीक अगले दिन मंत्रिमंडल ने बुधवार शाम को प्रधानमंत्री के सरकारी आवास पर मात्र 20 मिनट तक चली बैठक में कांग्रेस के कुछ सहयोगियों के नजरिए को दरकिनार करते हुए फैसले को अमली जामा पहना दिया।
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं के सामने घोषणा की कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 मिनट तक चली बैठक की अध्यक्षता की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मंत्रिमंडल यू-टर्न का अर्थ यह नहीं है कि पूर्व में अध्यादेश को सहमति देने वाले प्रधानमंत्री के प्राधिकार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने नजरअंदाज किया है।
राहुल गांधी ने 27 सितंबर को जिस नाटकीय अंदाज में अध्यादेश को 'पूरी तरह बकवास' और 'फाड़कर फेंके जाने लायक' उसके बाद से आज का फैसला तय माना जा रहा था। सर्वोच्च न्यायालय के एक हालिया फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए लाया गया यह अध्यादेश अभी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास विचाराधीन है। सर्वोच्च न्यायालय ने दोषी ठहराए जाने के बाद जनप्रतिनिधियों को उनके संबंधित विधायिका की सदस्यता से अयोग्य करार देने की व्यवस्था दी है।
अध्यादेश वापस लेने का श्रेय संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) को देते हुए मनीष तिवारी ने कहा, 'लोकतंत्र सरकार का कोई अखंड व्यक्तिवादी पद्धति नहीं होती है। हम विभिन्न विचारों का सम्मान करते हैं और राहुल गांधी ने एक विचार को व्यक्त किया है।' तिवारी ने कहा कि गांधी का शुक्रवार को अध्यादेश के खिलाफ बिफरना संभवत: 'उस व्यापक फीडबैक पर आधारित था जो उन्हें हासिल हुआ होगा।' 'उन परिस्थितियों के आलोक में मंत्रिमंडल के फैसले पर पुनर्विचार किया गया और यह तय किया गया कि हम अध्यादेश और विधेयक दोनों ही वापस लेंगे।'
उन्होंने कहा, 'जहां तक विधेयक का संबंध है तो यह अब संसद की संपत्ति है। उपयुक्त समय पर उसे भी वापस लिया जाएगा।' लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार बुधवार को लिए गए फैसले से सहमत नहीं दिखे। बैठक से बाहर आते हुए उनके चेहरे पर नाराजगी के भाव सहज ही दिख रहे थे। केंद्रीय कृषि मंत्री ने संवाददाताओं से कहा, 'हमने (राकांपा) अपना विचार जता दिया है। मैंने जो भी कहा है वह पूरी तरह गोपनीय है। मैंने अपना विचार साफ तरह से रखा है।' इस मुद्दे पर यू-टर्न के पक्ष में नहीं दिख रहे नेशनल कान्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने भी कहा, 'वह भी मंत्रिमंडल का फैसला था और अब यह भी मंत्रिमंडल का फैसला है। मैं नाराज नहीं हूं, लेकिन मैं खुश भी नहीं।' अध्यादेश के वापस लेने की कवायद बुधवार सवेरे शुरू हुई। सबसे पहले राहुल गांधी अपनी बयानबाजी पर सफाई देने के लिए प्रधानमंत्री के सामने हाजिर हुए। राहुल-मनमोहन के बीच क्या बातचीत हुई इसका ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया गया है।
इसके कुछ घंटे बाद कांग्रेस कोर समूह की बैठक हुई जिसमें पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह व पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता शमिल हुए। इन्हीं नेताओं ने पिछले सप्ताह अध्यादेश को हरी झंडी भी दी थी। इसके थोड़ी ही देर बाद प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद मुखर्जी एक सप्ताह की तुर्की और बेल्जियम की यात्रा पर रवाना हो गए। अध्यादेश वापस लेने के सरकार के फैसले पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने बुधवार को कहा कि यह कदम देश के लिए 'देर आयद दुरुस्त आयद' की तरह है। भाजपा ने दावा किया कि सरकार ने उसके दबाव में यह कदम उठाया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल के फैसले का स्वागत किया। तृणमूल कांग्रेस ने भी सराहना की, लेकिन कहा कि मंत्रिमंडल द्वारा पुनर्विचार किया जाना 'परिवक्ता का अभाव' दर्शाता है। राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने कहा कि यदि अध्यादेश वापस होता है तो इससे यह साबित होगा कि देश में केंद्र सरकार से ज्यादा अहम गांधी खानदान है।
10 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार दिया था और कहा थ कि एक सांसद या विधायक को उस स्थिति में तत्काल अयोग्य करार दिया जाए जब उसे किसी अदालत द्वारा किसी आपराधिक मामले में दोषी पाते हुए दो वर्ष या उससे अधिक की सजा सुनाए। संप्रग सरकार द्वारा आनन फानन में अध्यादेश लाने को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रशीद मसूद और राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद को बचाने का प्रयास माना जा रहा था। मसूद को मंगलवार को चार वर्ष की सजा सुनाई गई है और लालू को चारा घोटाले के एक मामले में सोमवार को अदालत ने दोषी करार दिया है। उन्हें गुरुवार को सजा सुनाई जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में संसद की सदस्यता गंवाने वाले मसूद पहले राजनेता होंगे।